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-शांता कुमार ने दिया लावारिस धन के उपयोग का सुझाव
शिमला, 24 जुलाई (हि.स.)। पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार ने हिमाचल प्रदेश में आई भयंकर आपदा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से विशेष राहत की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह राज्य के इतिहास की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा है, जिसमें अब तक 140 लोगों की जान जा चुकी है और 40 लोग लापता हैं। हजारों परिवार बेघर हो चुके हैं, सैकड़ों सड़कें और बुनियादी ढांचा बर्बाद हो चुका है।
शांता कुमार ने वीरवार काे एक बयान में कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकारें राहत कार्यों में जुटी हैं, लेकिन मौजूदा प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। पूरे गांव उजड़ चुके हैं, लोगों के जीवन की पुर्नस्थापना एक बड़ा और खर्चीला काम है।
उन्होंने इस संकट से निपटने के लिए भारत सरकार के पास वर्षों से बिना दावेदार के पड़े लगभग ₹2 लाख करोड़ के लावारिस धन के उपयोग का सुझाव दिया। उनके अनुसार, यह धन बैंकों, डाकघरों, ईपीएफ खातों और बीमा कंपनियों में जमा है, जिसके वैधानिक दावेदार नहीं हैं और वर्षों से इस पर किसी ने कोई दावा नहीं किया है।
शांता कुमार ने बताया कि बैंकों में: ₹42,270 करोड़, डाकघरों में ₹32,273 करोड़, ईपीएफ खातों में ₹8,500 करोड़, भारतीय जीवन बीमा निगम में ₹20,062 करोड़ और अन्य संस्थानों में भी बड़ी राशि बिना दावेदार के पड़ी है। उन्होंने कहा कि अब इस धन को लेने परलोक से कोई नहीं आएगा, यह भारत का ही पैसा है और इसका सदुपयोग किया जाना चाहिए।
उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि इस लावारिस धन के उपयोग हेतु एक विशेष कानून बनाया जाए, ताकि किसी भी राष्ट्रीय आपदा की स्थिति में इस राशि से राहत प्रदान की जा सके।
शांता कुमार ने मांग की कि हिमाचल प्रदेश की आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए और इस निधि से कम से कम ₹20,000 करोड़ हिमाचल को राहत और पुनर्निर्माण के लिए दिए जाएं।
उन्होंने कहा कि हिमाचल जैसी आपदा से बढ़कर इस निधि के सदुपयोग का और कोई उपयुक्त समय नहीं हो सकता। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार और सभी सांसदों से अपील की कि वे इस मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष पूरी ताकत से उठाएं।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील शुक्ला