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नई दिल्ली, 25 जुलाई (हि.स.)। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने शुक्रवार को जनपद संपदा प्रभाग के स्थापना दिवस के साथ तीज उत्सव का आयोजन किया। इस मौके पर आईजीएनसीए परिसर में ‘तीज मेला’ के साथ रंगारंग कार्यक्रम हुए। इस उत्सव में जीवंत परंपराओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों के माध्यम से रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिनमें प्रदर्शनी, लोक नृत्य और पारंपरिक बाज़ार प्रमुख रहे, जो विशेष रूप से पंजाब की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर करते हैं।
‘फुलकारी: पंजाब के रंग’ नामक प्रदर्शनी और ‘पंजाब के लोक नृत्य’ नामक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन के विशेष आकर्षण रहे।
आयोजन के परिचर्चा वाले हिस्से में राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य डेलीना खोंगदुप की मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रही। दिल्ली विश्वविद्यालय में मानव विज्ञान विभाग की प्रोफेसर सुभद्रा मित्र चन्ना विशिष्ट अतिथि थीं। शिक्षाविद्, कथावाचक और लेखिका मालविका जोशी, समारोह की विशिष्ट अतिथि रहीं।
अध्यक्षीय संबोधन में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि हरियाली तीज पारिवारिक एकता का प्रतीक है। उन्होंने इस त्योहार से जुड़ी कथा का उल्लेख करते हुए कहा कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने को 108 व्रत किए, जो पारिवारिक जीवन में समर्पण और साथ के गहरे महत्व को दर्शाता है। आज के समय में, जब पारिवारिक रिश्ते टूटन की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे त्योहार हमें भावनात्मक और सामाजिक रूप से जोड़े रखते हैं। डॉ. जोशी ने आगे कहा कि परिवार और पर्यावरण एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं और तीज जैसे उत्सव इन संबंधों में हमें जड़ से जोड़े रखते हैं।
प्रो. सुभद्रा मित्र चन्ना ने तीज के गहरे दार्शनिक और सामाजिक अर्थों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह उत्सव प्रायः अकादमिक जगत में उपेक्षित रहा है, जबकि इसमें गहन प्रतीकात्मक मूल्य निहित हैं। उन्होंने बताया कि यह पर्व भगवान शिव और पार्वती के प्रतीकात्मक विवाह का उत्सव है, जो पुरुष (स्थिर, नियंत्रक ऊर्जा) और प्रकृति (सृजनशील, गतिशील ऊर्जा) के संतुलन का द्योतक है। वर्षा ऋतु में मनाया जाने वाला यह पर्व, एक ओर पुनरुत्पादन और उर्वरता का प्रतीक है, तो दूसरी ओर यह दर्शाता है कि अनियंत्रित ऊर्जा विनाशकारी भी हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समय और जीवन के चक्र को चिह्नित करने वाले सांस्कृतिक संकेतक भी हैं, खासकर उन समाजों में जहां आधुनिक कैलेंडर या तकनीक का प्रयोग सीमित था। आज भी ग्रामीण भारत में लोग समय और घटनाओं का उल्लेख त्योहारों के माध्यम से करते हैं।
डेलीना खोंगदुप ने देश की सांस्कृतिक विविधता और जीवंत परंपराओं को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि यद्यपि मेघालय में तीज नहीं मनाई जाती, परंतु सावन माह में मनाया जाने वाला ‘बेहदीनखलम’ पर्व भारतीय त्योहारों की निरंतरता का प्रतीक है। उन्होंने पुरुषों से महिलाओं के समान भागीदार बनने का आह्वान किया और वर्षों में विकसित पूर्वग्रहों को चुनौती देने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन और अपराधों के प्रति सजग रहने का आग्रह भी किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी