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रांची, 12 जून (हि.स.)। झारखड राज्य वन विकास निगम की अपील पर झारखंड हाई कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने गुरुवार को झारखंड राज्य वन विकास निगम की अपील को स्वीकृत कर लिया है। साथ ही, प्रार्थियों को नियमित करने के एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया है। झारखंड राज्य वन विकास निगम की ओर से अधिवक्ता रूपेश सिंह ने पैरवी की। मामले में झारखंड वन विकास निगम की ओर से सात अलग-अलग अपील दाखिल की गई थी।
दरअसल, प्रतिवादियों की नियुक्ति बिहार राज्य वन विकास निगम के अंतर्गत वन उत्पाद ओवरसीयर के रूप में एकीकृत बिहार के समय संविदा के आधार पर वर्ष 1987-88 में केवल तीन माह के लिए हुई थी, लेकिन ये कर्मी कुछ कारणों से वर्ष 2003 तक अपनी सेवा देते रहे थे। झारखंड गठन के बाद बिहार राज्य वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक की ओर से झारखंड वन विकास निगम को एक पत्र भेजा गया था जिसमें ऐसे लोगों की सूची दी गई थी जो तीन माह के लिए नियुक्त हुए थे लेकिन किसी कारण से वर्ष 2003 तक कार्य कर रहे थे, इन्हें नौकरी से हटाने को कहा गया था। इसके बाद उनकी सेवा समाप्त कर दी गई थी. जिसे कर्मियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट में उनकी रिट याचिका एवं अपील दोनों खारिज हो गई थी। इसके बाद उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी एसएलपी खारिज हो गई।
हालांकि कुछ अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के आर्टिकल 32 के तहत रिट पिटीशन दाखिल किया था। बाद में वापस ले लिया, लेकिन इसमें सुप्रीम कोर्ट ने ऑब्जरवेशन दिया था कि वह अपना पक्ष झारखंड हाई कोर्ट में उठाएं। इसके बाद वर्ष 2014 में पुनः हटाए गए कर्मियों की ओर से हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की गई। कोर्ट ने झारखंड के नियमावली 2015 के तहत उनके नियमितीकरण को कंसीडर करने का निर्देश सरकार को दिया था, लेकिन झारखंड वन विकास निगम ने इन कर्मियों को नियमित नहीं किया था। जिस पर कर्मियों ने अपनी नियमितीकरण को लेकर हाई कोर्ट की एकल पीठ में फिर से चुनौती दी। एकल पीठ ने वर्ष 2024 में उनके पक्ष में फैसला सुनते हुए नियमित करने का आदेश दिया, जिसे झारखंड राज्य वन विकास निगम ने हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर चुनौती दी थी।
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हिन्दुस्थान समाचार / विकाश कुमार पांडे