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--ट्रायल कोर्ट को सबूतों को साबित करने के लिए केस वापस
प्रयागराज, 12 जून (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म व हत्या के आरोपी को ट्रायल कोर्ट से मिली फांसी की सजा रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा ट्रायल में कई साक्ष्यों को साबित नहीं किया गया। इसलिए केस वापस किया जा रहा।
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के रेफरेंस को निस्तारित कर फर्रुखाबाद निवासी अभियुक्त शाहिद को राहत दी है। यह फैसला न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता तथा न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने सुनाया है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि ट्रायल कोर्ट का कर्तव्य था कि वह न्याय के उद्देश्यों को पूरा करते हुए धारा 311 सीआरपीसी के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर निष्पक्ष गवाह को बुलाए और उसकी व साक्ष्यों का परीक्षण करे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
मुकदमे से जुडे़ तथ्यों के अनुसार विशेष न्यायाधीश (पाक्सो एक्ट)/अपर सत्र न्यायाधीश ने फर्रूखाबाद के थाना कम्पिल में दर्ज केस में शाहिद को धारा 302, 201, 376 डीबी आईपीसी और धारा 5/6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (पाक्सो एक्ट) के तहत एक लाख रुपये जुर्माने के साथ ही फांसी की सजा 20 दिसंबर 2023 को सुनाई थी। अन्य अपराध में अलग सजा दी थी। साथ ही मौत की सजा की पु्ष्टि के लिए प्रकरण हाईकोर्ट को संदर्भित किया था।
अभियोजन का संक्षिप्त कथानक यह था कि 12 सितम्बर 2023 की सुबह करीब नौ बजे लगभग चार साल की पीड़िता अपने घर के बाहर खेलते समय लापता हो गई थी। परिवार के सदस्यों ने उसकी तलाश की लेकिन पता नहीं चल सका। शाम करीब छह बजे उसी गांव के नवाब आलम ने मुखबिर को बताया कि सुबह करीब 10 बजे उसने पीड़िता को शाहिद और उसके दोस्त डेरेन का पीछा करते हुए पोल्ट्री फार्म की ओर जाते देखा। इस सूचना पर मुखबिर ने साकिब, नूरुल हक व अन्य लोगों के साथ शाहिद के पोल्ट्री फार्म की ओर जाकर उसकी तलाश की। पोल्ट्री फार्म से 100-150 मीटर दूर पीड़िता का क्षत-विक्षत शव पड़ा मिला। 12-13 सितम्बर की रात 1.01 बजे लिखित तहरीर देकर एफआइआर दर्ज कराई गई।
कोर्ट ने कहा अभियोजन और साथ ही विद्वान ट्रायल कोर्ट ने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में त्रुटि की है। इसलिए अपील स्वीकार कर संदर्भ निस्तारित किया जाता है। प्रकरण में कुल आठ गवाह परीक्षित कराए गए थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे