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प्रयागराज, 1 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी आपराधिक मामले का लम्बित होना अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सम्बंधित अधिकारियों को मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया है।
देवरिया के महेश सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा कि नियोक्ता को अनुकम्पा नियुक्ति देने के लिए अपने विवेकाधिकार का प्रयोग निष्पक्ष रूप से करना चाहिए। कोर्ट ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि याची को नियुक्ति पाने का अविभाज्य अधिकार नहीं है, लेकिन केवल आपराधिक मामले का लम्बित होना आमतौर पर एक उम्मीदवार को नियुक्ति से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है, विशेष रूप से अनुकम्पा नियुक्ति के मामले में।
याची की अनुकम्पा नियुक्ति के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसके खिलाफ एक आपराधिक मामला लम्बित था। जिला मजिस्ट्रेट के चरित्र प्रमाण पत्र में भी यह शर्त थी कि वह आपराधिक मामले के आने वाले परिणाम पर निर्भर करेगा। कोर्ट ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति का मूल उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है। पीठ ने कहा कि यदि नियुक्ति केवल मामूली आधार के लिए या केवल इस आधार पर स्थगित कर दी जाती है कि नियोक्ता मुकदमे के अंतिम परिणाम का इंतजार कर रहा है तो अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जहां नियमित नियुक्तियों में नियम सख्त होते हैं, वहीं अनुकम्पा नियुक्ति के मामलों में अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जहां डीएम की ओर से चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया गया है, वहां केवल आपराधिक मामले के लम्बित रहने से अनुकम्पा नियुक्ति की अस्वीकृति नहीं होनी चाहिए।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे