ग्राम रोजगार सेवकों को चार माह से वेतन नहीं मिलने से केंद्र सरकार के प्रति रोष
धर्मशाला, 12 मई (हि.स.)। पंचायतों में तैनात ग्राम रोजगार सेवकों को पिछले करीब तीन-चार माह से वेतन नहीं मिलने से उनमें केंद्र सरकार के प्रति रोष बढ़ गया है। उनका कहना है कि वेतन न मिलने के कारण महंगाई के इस दौरान में उन्हें परिवार का पालन-पोषण करने में
ग्राम रोजगार सेवकों को चार माह से वेतन नहीं मिलने से केंद्र सरकार के प्रति रोष


धर्मशाला, 12 मई (हि.स.)। पंचायतों में तैनात ग्राम रोजगार सेवकों को पिछले करीब तीन-चार माह से वेतन नहीं मिलने से उनमें केंद्र सरकार के प्रति रोष बढ़ गया है। उनका कहना है कि वेतन न मिलने के कारण महंगाई के इस दौरान में उन्हें परिवार का पालन-पोषण करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ गया है।

सोमवार को ग्राम रोजगार सेवक जिला कांगड़ा के पूर्व अध्यक्ष साहिब सिंह ने बताया कि केंद्र से बजट का प्रावधान न किए जाने से प्रदेश सरकार भी इस मामले में गंभीर नही है। उन्होंने कहा कि रोजगार सेवक को बच्चों की पढ़ाई और परिवार का पालन पोषण का खर्च उठा के लिए ऋण लेने पर मजबूर होना पड़ गया है। सेवक उदारी की जिंदगी जीने को मजबूर हो चुके है।

उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में ग्रामीण रोजगार सेवकों की संख्या 1034 के करीब है। पंचायत के विकास कार्यों में इनका अहम योगदान है। हर ग्राम रोजगार सेवक दो से तीन पंचायतों का जिम्मा संभाले हुए है। इसके बावजूद इन्हें समय पर वेतन नहीं मिल रहा। केंद्र से पैसा नहीं आने के कारण प्रदेश सरकार ने भी अपना शेयर नहीं डाला है, जिसके चलते जीआरएस को वेतन के लिए तरसना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश की विभिन्न ग्राम पंचायतों में मनरेगा कार्यों को सही ढंग से संचालित करने के लिए ग्राम रोजगार सेवक अपना महत्व पूर्ण योगदान दे रहे है। पंचायतों में तैनात करीब 1034 जीआरएस को वेतन के लिए राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट के तहत अलग से बजट आता था, जो कि पिछले कुछ माह से बंद पड़ा है। इसके चलते इन्हें मासिक वेतन भुगतान करने में देरी हो रही है। इसके चलते इन ग्राम रोजगार सेवकों को करीब तीन माह से वेतन नहीं मिला है। उन्होंने प्रदेश सरकार और विभाग से मांग की है कि उन्हें जल्द से जल्द वेतन मुहैया करवाया जाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वे जल्द से बजट का प्रावधान करे ताकि उनकी परेशानियों का अंत हो सके।

हिन्दुस्थान समाचार / सतिंदर धलारिया