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डॉ. मयंक चतुर्वेदी
सत्य सदैव सत्य ही रहता है। वह बदलता नहीं। इसी तरह से जो असत्य या झूठ है, उसे आप कितना भी ढांकने की कोशिश करें, वह एक न एक दिन अवश्य सामने आता ही है। सत्य का अर्थ ही है ‘सते हितम्’ यानि सभी का कल्याण। इसलिए भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जहां सबसे पहले सर्वे भवन्तु सुखिनः अर्थात् सभी सुखी रहें की मंगलकामना की गई। यही कारण है कि आज पाकिस्तान जैसे आतंकवाद को प्रश्रय देनेवाले देशों का झूठ दुनिया जान रही है और भारत को अपना भरपूर समर्थन दे रही है। इन्हीं समर्थन देनेवालों में एक नाम सामने आया है अमेरिकी वायुसेना के पूर्व पायलट डेल स्टार्क का ।
उन्होंने गत दिवस एक पोस्ट में कहा, अगर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तो वह अपना सारा पैसा भारतीयों पर लगा देंगे। जैसा कि सभी को पता है कि भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में नौ स्थानों पर जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) से जुड़े आतंकी शिविरों पर सटीक हमले किए हैं और उसके बाद से लगातार भारत-पाकिस्तान को ईंट का जवाब अपने आग्नेयास्त्र रूपी पत्थरों से दे रहा है। जब शांतिवार्ता की बात करके पाकिस्तान अपने कहे से मुकरा तब भी उसे उसी कठोर भाषा में जवाब दिया गया जैसा कि एक प्रभावी और संप्रभू देश को देना चाहिए। ऐसे में स्टार्क, जिन्होंने 2000 के दशक में अफगानिस्तान में भी सेवा की है, वह जब यह लिखते हैं कि जैसा कि उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अपने एक पोस्ट में लिखा, मैंने अपने करियर के दौरान भारतीय और पाकिस्तानी दोनों ही लड़ाकू पायलटों के साथ उड़ान भरी है। मैं बस इतना ही कहूंगा कि अगर यह सिलसिला जारी रहा तो मैं भारतीयों के पक्ष में ही रहूंगा।
आखिर उनकी कही, इस बात के मायने क्या हैं? इसके मायने हैं कि भारत को लेकर वैश्विक छवि बहुत साफ-सुथरी है। भारत की जो वैश्विक छवि सामने से उभरती है, वह यही है कि भारत कभी किसी के साथ गलत नहीं करता। वह सदैव न्याय और सत्य के मार्ग पर सतत चल रहा है। उल्लेखनीय है कि इस अमेरिकी वायुसेना के पूर्व पायलट डेल स्टार्क का पूरा जीवन अपने देश की सेवा में गुजरा है। स्वभाविक तौर पर उसे अनेक सैन्य और सेवा मिशन में सहभागी बनने का अवसर भी मिला, जिन्हें समय-समय पर अमेरिका ने दुनिया भर में चलाया। जैसा कि ईरान, अफगानिस्तान, अफ्रिका, सीरिया एवं अन्य देश। इन सभी में रहते हुए, आते-जाते तत्कालीन समय के दौरान दुनिया भर के लोगों एवं विशेषज्ञों से इनका मिलना हुआ। उनमें भारतीय भी रहे।
इसी प्रकार से डेल स्टार्क अमेरिका में रहनेवाले भारतीयों को भी लम्बे समय से देख रहे हैं। उनके बारे में जो आंकड़े बीच-बीच में आते हैं, उनका भी वे अध्ययन करते ही हैं। जैसा कि एक आंकड़ा यह है, हालांकि यह पिछले साल का है, जिसमें बताया गया कि अमेरिका में भारतीय समुदाय की आबादी अमेरिकी जनसंख्या का केवल 1.5 प्रतिशत हैं, फिर भी उसका अमेरिकी समाज के विभिन्न पहलुओं पर बड़ा और सकारात्मक प्रभाव जारी है। भारतीय अमेरिकी समुदाय की ओर से संचालित नवाचार (इनोवेशन) देश की अर्थव्यवस्था की निचली पंक्ति तक पहुंच रहा है और यह आर्थिक विकास के अगले चरण के लिए आधार तैयार कर रहा है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट 'इंडियास्पोरा इम्पैक्ट रिपोर्ट- स्मॉल कम्युनिटी एंड बिग कंट्रीब्यूशंस' भारतीय प्रवासियों के प्रभाव पर गहरा प्रकाश डालती है। जिसमें कि अमेरिका में सार्वजनिक सेवा, व्यवसाय, संस्कृति और नवाचार पर विशेष ध्यान दिया गया है।इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मूल के सीईओ 16 फॉर्च्यून, 500 कंपनियों के प्रमुख हैं। ये लीडर्स सामूहिक रूप से 2.7 मिलियन अमेरिकियों को रोजगार देते हैं और लगभग एक ट्रिलियन राजस्व उत्पन्न करते हैं।
भारतीय-अमेरिकियों की स्टार्टअप जगत में महत्वपूर्ण उपस्थिति यहां साफ तौर पर दिखाई दे रही है, जिसमें कि 648 अमेरिकी यूनिकॉर्न में से 72 के सह-संस्थापक कोई न कोई भारतीय हैं। कैम्ब्रिज मोबाइल टेलीमैटिक्स और सोल्यूजेन जैसी ये कंपनियां 55,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार देती हैं और इनकी कीमत 195 बिलियन अमरीकी डॉलर है। पेशे में यहां भारतीय अप्रत्यक्ष रूप से 11-12 मिलियन अमेरिकी नौकरियों का सृजन करते हैं। रिपलिंग और लेसवर्क जैसे स्टार्टअप तकनीक और सीरियल उद्यमियों की अनेक सफल कहानियां हैं, जिन्होंने दुनिया भर में अपने लिए एक विशेष जगह बनाई है। एक अन्य उदाहरण कैम्ब्रिज मोबाइल टेलीमैटिक्स है, जो एक कंपनी है जो अमेरिकी सड़कों पर ड्राइवरों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए लाखों उपकरणों से डेटा एकत्र करने के लिए एआई का उपयोग करती है। इनोवेसर एक सिलिकॉन वैली स्टार्टअप है जो विश्लेषणात्मक तकनीक के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा डेटा का लाभ उठा रहा है और अमेरिका को स्वास्थ्य सेवा लागत में एक बिलियन डॉलर से अधिक की बचत करने में मदद कर रहा है।
दूसरी ओर भारतीय अमेरिकियों के पास अमेरिका के सभी होटलों में से लगभग 60 प्रतिशत का स्वामित्व है, जो आतिथ्य उद्योग पर उनके गहन प्रभाव का प्रमाण है। लगभग 60 प्रतिशत अमेरिकी होटल भारतीय प्रवासियों के स्वामित्व में हैं, जो आतिथ्य राजस्व में $700 बिलियन कमाते हैं और चार मिलियन नौकरियां पैदा करते हैं। इतना ही नहीं यहां रह रहे भारतीय अमेरिका के सभी आयकरों का लगभग 5-6 प्रतिशत (यानी, 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 300 बिलियन अमरीकी डॉलर) का भुगतान करते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में देखें तो अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 25 प्रतिशत भारतीय हैं। भारतीय मूल के लगभग 22,000 फैकल्टी मेंबर अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं, जो सभी फुलटाइम फैकल्टी का लगभग 2.6 प्रतिशत है। इस तरह भारत प्रतिभा के शुद्ध निर्यातक के रूप में उभरा है। यहां देखा यह जा रहा है कि आज जो अमेरिका में रिसर्च, इनोवेशन और शिक्षा जगत है, उसमें भारतीय प्रवासियों के योगदान के कारण ही सबसे अधिक प्रगति हुई है, जिसे स्वयं अमेरिकन सरकार खुलकर स्वीकार करती है।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि योग दुनिया भर में आज स्वास्थ्य भूमिका के रूप में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जिसमें कि अमेरिका कोई अपवाद नहीं है। यहां 2025 में हर 10 में से दो अमेरिकी नागरिक योग का अभ्यास करते आपको मिल जाते हैं। इतना ही नहीं चाहे यहां की पिछली सरकारें रही हों या वर्तमान डोनाल्ड ट्रंप की सरकार हो, इसमें भारतीय अमेरिकी सीनेटर, प्रतिनिधि और मेयर के रूप में अपनी सत्ता में और राजनीति के माध्यम से समाज सेवा में आज महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं और लोकतांत्रिक क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। पिछले दशक में ज्यादा से ज्यादा भारतीय अमेरिकी इसमें शामिल हो रहे हैं। इसी प्रकार की अनेक कहानियां आज यहां सफलता के प्रतिमान गढ़ रही हैं।
वास्तव में यह सभी कुछ इन अमेरिकी वायुसेना के पूर्व पायलट डेल स्टार्क जैसे अनेकों लोगों के सामने है, जिसमें साफ दिखाई देता है कि एक भारतीय उनके देश के विकास में अपना कितना बड़ा योगदान देता है। फिर उनके सेवा में रहते हुए जो अनुभव रहे हैं, वे उन्हें उनकी अंतरात्मा से इतना अधिक उत्साहित और प्रेरित करते हैं कि वह (भारत-पाकिस्तान) दो देशों के बीच चल रहे संघर्ष में भारत का साथ देने और उसको अपना सब कुछ दे देने के लिए तैयार हैं। वास्तव में यही भारतीयों की और भारत की विश्व व्यापी ताकत है।
कहना होगा कि डेल स्टार्क ऐसा कहने वाले आज अकेले नहीं हैं। भारत और पाकिस्तान के तनाव के बीच अमेरिकी पत्रकार और वॉल स्ट्रीट जर्नल की पूर्व रिपोर्टर आसरा नोमानी भी हैं, जिनके दोस्त पत्रकार डैनियल पर्ल का अपहरण और हत्या बहावलपुर में की थी। जिन आतंकियों ने उनके दोस्त को मारा था, भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में उस समय के कई आतंकी मारे गए हैं। इसी प्रकार से उनके जैसे विश्व भर में अनेकों लोग हैं, जिनका जन्म भारत में नहीं हुआ, वे किसी भारतीय परिवार से नहीं, किंतु फिर भी वे मानवता के हित में भारत के समर्थन में आज खुलकर सामने आए हैं और अनेक ऐसे भी हैं जोकि अपना सब कुछ दे देना चाहते हैं।(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी