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गौरव अवस्थी
क्या, के विक्रम राव नहीं रहे! अभी कल ही तो उन्होंने व्हाट्सएप पर अपना आलेख भेजा था। कल ही क्यों? उनके आलेख नियमित आते ही रहते थे। खास मुद्दों पर। खास परिस्थितियों पर। पत्रकारिता के इतिहास पर और अपनी आपबीती पर भी। उनके लेख इतिहास और भूगोल बताते थे। नीति और सिद्धांत के मार्गदर्शक दस्तावेज होते थे। पत्रकारिता की वह चलती फिरती पाठशाला थे। अरे! अरे!! मैं भी निरा बेवकूफ पाठशाला नहीं, विश्वविद्यालय थे। हम जैसे रिटायर हो चुके पत्रकारों के लिए भी वह प्रेरणा थे। इस मायने में भी कि कैसे आखिरी क्षण तक सदाचारिता के साथ सक्रिय बने रहा जाए...।
कहने को, वह इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे लेकिन पद से वह बहुत बड़े थे। अनुभव में, इंसानियत में और अपने से छोटों को प्रोत्साहित करने में भी। मेरा उनसे कभी प्रत्यक्ष परिचय नहीं हुआ। मिलना-मिलाना भी कभी नहीं हो पाया पर ऐसा भी नहीं कह सकते कि उनसे मेरा सघन परिचय नहीं। उनके 6 दशक पुराने सक्रिय पत्रकारीय इतिहास से परिचय जरूर था। उनके द्वारा भेजे गए लेख हमें उनसे रोज परिचित कराते थे। उनकी लेखनी, उनकी याददाश्त और उनकी रचनात्मक आंदोलनकारिता जबरदस्त थी। और यही उनसे मेरा परिचय प्रगाढ़ बनाता जा रहा था।
मैं व्यक्तिगत रूप से उनका मुरीद था। आप सोच रहे होंगे, मिलने पर तो कोई बनता नहीं। बिना मिले भी ऐसा कैसे हो सकता है? इसका एक कारण हमारी अपनी पत्रकारिता के जीवन का वह पन्ना है जो कभी धूमिल नहीं होने देंगे। जीवन के साथ भी-जीवन के बाद भी। वह राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार और हम जिला स्तर के कथित ब्यूरो चीफ। 15 साल पहले का एक वाकया हमें तो याद ही है। आज उनके न रहने पर यह वाकया आपकी यादों की पोटली में भी दर्ज करने को मन उद्यत है।
28 साल हम हिंदुस्तान में अपनी सेवा देकर पिछले साल फरवरी में रिटायर हुए। 26 साल हिंदुस्तान में रायबरेली में ही सेवाएं दीं। कोई 15 साल पुरानी बात है। तब नवीन जोशी जी स्थानीय संपादक थे। खबर थी पूर्व मंत्री (अब स्मृतिशेष) दल बहादुर कोरी ने विधायक रहते हुए दसवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की। यह खबर, फ्रंट पेज पर बॉक्स आइटम में तीन कॉलम में बाइलाइन छपी। पत्रकारों के लिए बाइलाइन खबर एक खास रिवॉर्ड है। खाना मिले ना मिले बाइलाइन लाइन खबर जरूर मिले। लखनऊ एडिशन में भी इस खबर को हूबहू जगह मिली।
फ्रंट पेज पर बाइलाइन खबर को लेकर मन ही मन लड्डू फूट ही रहे थे के सुबह 8 बजे एक अपरिचित नंबर से कॉल आई। कॉल रिसीव करते ही आवाज गूंजी- गौरव, मैं के विक्रम राव बोल रहा हूं...। एक अच्छी खबर के लिए तुम्हें बधाई, हमने नवीन से तुम्हारा नंबर लिया।' उनके 'नवीन' हमारे तब भी आदरणीय थे और आज भी। उनसे पत्रकारिता के जरूरी टिप्स समय-समय पर हमें ही क्यों हिंदुस्तान में कार्यरत सभी पत्रकारों को समय-समय पर मिलते ही रहे। तब संपादक सिखाते थे और अब केवल टोकते। के विक्रम राव जी का नाम ही काफी था। हमने फोन पर ही प्रणाम किया और आगे भी आशीर्वाद बनाए रखने की कामना-प्रार्थना की। हमारे व्यक्तिगत और हमारी पत्रकारिता के जीवन में वह दिन यादगार था, है और रहेगा भी। हमने तुरंत नंबर सेव किया। वह दिन और आज का दिन, जब-कब बात भी होती रही। उनसे मिलने का मन अक्षर करता ही रहता था पर व्यस्तता ने यह साध पूरी नहीं होने दी। वैसे व्हाट्सएप उनसे रोज मिलने का जरिया था ही। ज्यादा उनकी तरफ से और कभी-कभार मेरी।
आज, फेसबुक पर किसी की पोस्ट देखकर सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। अभी कल ही उन्होने एक लेख भेजा था। मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात का प्रसंग भी एक दिन पहले साझा किया था। वह ऐसे पत्रकार थे, जिन्होने जेल में भी दिन गुजारे। यातनाएं भी सहीं। जीवन के आखिरी क्षण तक सक्रिय रहते हुए जीवन को अलविदा भी कह दिया, जैसे कभी आपातकाल में संस्थागत पत्रकारिता को कहा था..।
पत्रकारिता के ऐसे अप्रतिम पुरोधा को कोटि-कोटि नमन। ईश्वर उन्हें अपनी चरण-शरण में लेंगे ही, हमारी प्रार्थना तो बस औपचारिकता ही होगी।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद