आखिरकार अमेरिकी मीडिया क्यों अलाप रहा राफेल विरोधी राग
विक्रम उपाध्याय भारत और पाकिस्तान के बीच फिलहाल शांति है। युद्ध में हार और जीत के आकलन के बीच कुछ कहानियां राफेल की भी सुनवाई जा रही हैं। खासकर फ्रांस से प्राप्त राफेल जेट को लेकर अमेरिकी मीडिया में बहुत सारी बातें बिना सिर-पैर की हो रही हैं। पाकिस
विक्रम उपाध्याय


विक्रम उपाध्याय

भारत और पाकिस्तान के बीच फिलहाल शांति है। युद्ध में हार और जीत के आकलन के बीच कुछ कहानियां राफेल की भी सुनवाई जा रही हैं। खासकर फ्रांस से प्राप्त राफेल जेट को लेकर अमेरिकी मीडिया में बहुत सारी बातें बिना सिर-पैर की हो रही हैं। पाकिस्तान ने 7 मई को यह दावा किया था कि उसने तीन राफेल समेत भारत के पांच जंगी जहाजों को गिरा दिया। पाकिस्तान अपने इन दावों के लेकर खुद ही हंसी का पात्र बना, उसके रक्षा मंत्री से एक विदेशी मीडिया ने जब पूछा कि सबूत क्या है, तो उन्होंने जवाब दिया कि सोशल मीडिया में सब चल रहा है। यही नहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपनी पार्लियामेंट में यहां तक कह दिया कि पाकिस्तान चाहता तो 12 भारतीय जेट गिरा सकता था, मेहरबानी कर के पांच ही गिराया। जिस देश के हुक्मरान इतने नादान और मूर्ख हों, उस देश का भविष्य क्या हो सकता है। अब यही मूर्खता विदेशी मीडिया के कुछ अन्य प्लेटफार्म से भी हो रही है।

द वाशिंगटन पोस्ट, द न्यूयॉर्क टाइम्स और सीएनएन चैनल जैसे बड़े मीडिया हाउस पाकिस्तान के भोपू बने हैं। वह कुछ मनगढ़ंत खबरों के जरिए अमेरिकी हित साधने की कोशिश कर रहे हैं। विश्लेषण की जरूरत है। कहीं यह अमेरिकी हथियार के सौदागरों के एजेंट तो नहीं बन रहे हैं। सीएनएन ने राफेल के गिरने की खबर पाकिस्तानी रक्षा सूत्रों से चला दी, जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने पांच भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया है, जिनमें तीन राफेल जेट, एक मिग-29 और एक सुखोई 30 फाइटर जेट शामिल हैं। अपनी खबर को पुष्ट दिखाने के लिए सीएनएन ने एक कथित अनजान फ्रांसीसी खुफिया अधिकारी का हवाला भी दे दिया, जिसने कथित रूप से यह स्वीकार किया कि भारतीय वायु सेना को दिए गए राफेल लड़ाकू विमानों में से एक को पाकिस्तान ने मार गिराया है।

रॉयटर्स ने भी दो अनजाने अमेरिकी अधिकारियों का हवाला देते हुए यह खबर चला दी कि चीन निर्मित पाकिस्तानी लड़ाकू विमान ने कम से कम दो भारतीय सैन्य विमानों को मार गिराया। इस मामले में न्यूयॉर्क टाइम्स भी पीछे नहीं रहा। इस अमेरिकी मीडिया ने भी वही अज्ञात स्रोत का सहारा लिया और खबर चला दी कि भारत ने कम से कम दो विमान खो दिए हैं। बस उसने राफेल का नाम नहीं लिया। वाशिंगटन पोस्ट ने तो एक फ्रांसीसी विशेषज्ञ का भी हवाला दे दिया है, जो बकौल अखबार के यह स्वीकार करता है कि भारत ने मिराज-2000 और राफेल विमान खो दिए हैं। मालूम हो कि राफेल और मिराज दोनों दोनों फ्रांसीसी हैं।

अमेरिकी मीडिया के इस रुख पर सवाल उठाना लाजिमी है कि जब अभी तक पाकिस्तान ने जहाज गिराए जाने के कोई ठोस सबूत नहीं दिए हैं और ना भारत ने इस संबंध में कोई पुष्टि की है। फिर अमेरिकी मीडिया अज्ञात स्रोतों का हवाला देकर इतनी बड़ी खबर क्यों चला रहा है। क्या उनके उद्देश्य कुछ और हैं? कहीं यह अमेरिकी लड़ाकू विमानों की मार्केटिंग का फंडा तो नहीं है। यह सबको खबर है कि भारत समेत कई देश इस समय लड़ाकू विमानों की खरीदारी के लिए इच्छुक हैं। दुनिया एयरोस्पेस बाजार बहुत बड़ा है और अरबों खरबों डॉलर के सौदे होने हैं। चूंकि अमेरिका भी लड़ाकू विमानों का सौदागर है और वह अपने एफ-35 जेट के लिए कई देशों में लामबंदी कर रहा है। इसलिए उसके लिए सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी फ्रांसीसी राफेल ही है। राफेल के खिलाफ खबरें उसी कंपटीशन का हिस्सा हो सकती हैं।

भारत राफेल के लिए सौदे कर चुका है। भारतीय वायुसेना को कुल 114 लड़ाकू विमान खरीदने हैं। अभी तक भारत 36 राफेल विमानों की डिलीवरी प्राप्त कर चुका है। बाकी विमान भारत को अभी और लेने हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल के गिरने की खबर चलाने के पीछे एक मकसद यही हो सकता है कि राफेल की छवि पर ही सवाल खड़ा कर दिया जाए और एफ-35 जैसे 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को प्रमोट किया जाए, ताकि इसकी मांग बढ़े। इसीलिए संभवतः अज्ञात स्रोतों पर आधारित खबरें चलाई और दिखाई जा रही हैं।

केवल भारत ही नहीं कई यूरोपीय देश, कनाडा और जापान भी फाइटर जेट के सौदे करने वाले हैं। ये सभी अमेरिकी हथियारों के विकल्प ढूंढ रहे हैं ।

कुछ देशों ने तो विकल्प ढूंढ भी लिए हैं। जैसे पुर्तगाल और कनाडा एफ-35 लड़ाकू विमानों के सौदे से पीछे हटने पर विचार कर रहे हैं। नवनिर्वाचित कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने अपनी पहली की पहली विदेश यात्रा ही फ्रांस जाकर की। ओटावा एफ-35 के बजाय फ्रांसीसी राफेल खरीदने पर विचार कर रहा है।

भौगौलिक और कूटनीतिक कारणों से इस समय चीन और रूस के लड़ाकू विमानों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं। चीन मुख्य रूप से पाकिस्तान को ही अपना सैन्य उत्पाद बेच रहा है। पाकिस्तान के 80 फीसदी से अधिक सैन्य साजो सामान चीन के ही बने हुए हैं। हालांकि भारत रूस का बहुत महत्वपूर्ण सामरिक पार्टनर है, लेकिन भारत नए रूसी फाइटर जेट्स खरीदने के प्रति इच्छुक नहीं है। इस समय अमेरिकी एफ 35, फ्रांसीसी राफेल और यूरोफाइटर टाइफून के बीच ही प्रमुख रूप से कंपटीशन है। इसलिए अपने बाजार के लिए ऑपरेशन सिंदूर का उपयोग अमेरिका कर सकता है। पाकिस्तान के आईएसपीआर ने 11 मई को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट रूप से कहा कि भारत का कोई भी पायलट पाकिस्तान में नहीं है। भारत के डीजीएमओ ने भी कहा कि पाकिस्तान में घुसने वाले सभी भारतीय पायलट सकुशल लौट आए, तो फिर अमेरिकी मीडिया क्यों राफेल गिरने की खबरों को प्राथमिकता दे रहा है।

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद