बीएचयू वैज्ञानिकों ने नील-हरित शैवाल में खोजा महत्वपूर्ण उत्तरजीविता तंत्र
फोटो प्रतीक


—अब पता चलेगा आधारभूत जलीय जीव तेजी से प्रदूषित होती जल प्रणालियों में कैसे पनपते हैं

वाराणसी, 27 अक्टूबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वैज्ञानिकों ने नील-हरित शैवाल (सायनोबैक्टीरिया) पर किए गए एक अनूठे अध्ययन में उनके भीतर मौजूद एक अहम उत्तरजीविता तंत्र का खुलासा किया है। इस शोध से पता चला है कि सायनोबैक्टीरिया विषाक्त पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए प्रकाश के रंग का उपयोग एक आंतरिक संकेत के रूप में करते हैं।

शोध टीम में शामिल अंजलि गुप्ता, सपना तिवारी और डॉ. शैलेंद्र प्रताप सिंह की यह खोज प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फ्री रेडिकल बायोलॉजी एंड मेडिसिन में प्रकाशित हुई है। अध्ययन में बताया गया है कि सायनोबैक्टीरिया में पाया जाने वाला एक एकल प्रकाश संवेदक प्रोटीन हाइड्रोजन पेरोक्साइड जैसे विषैले अणुओं से होने वाली ऑक्सीडेटिव क्षति के विरुद्ध कोशिकाओं की रक्षा प्रणाली को नियंत्रित करता है।

शोध दल के प्रमुख डॉ. शैलेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार, “यह खोज यह समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि आधारभूत जलीय जीव तेजी से प्रदूषित हो रही जल प्रणालियों में कैसे टिके रहते हैं। हमने पाया कि प्रकाश केवल ऊर्जा का स्रोत नहीं है, बल्कि यह इन सूक्ष्म जीवों के लिए जीवन रक्षा का संकेत भी बन जाता है।” यह अध्ययन फ्रेमीला डिप्लोसिफॉन नामक सायनोबैक्टीरियम पर केंद्रित था, जो प्रकाश के अनुसार अपने वर्णक रंग को बदलने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। इस प्रक्रिया को क्रोमैटिक एक्लिमेशन कहा जाता है।

टीम ने पाया कि केंद्रीय प्रकाश संवेदक प्रोटीन आरसीएई न केवल हरे और लाल प्रकाश के बीच अंतर समझने में मदद करता है, बल्कि यह कोशिका की सम्पूर्ण रक्षा प्रणाली का मुख्य समन्वयक भी है। शोध में यह भी सामने आया कि जब सायनोबैक्टीरिया विभिन्न रंगों के प्रकाश के सम्पर्क में आते हैं, तो आरसीएई प्रोटीन उनके भीतर रासायनिक संकेतों को बदलकर ऑक्सीडेटिव तनाव के विरुद्ध रक्षा रणनीति को सक्रिय करता है। यह प्रणाली उन्हें हाइड्रोजन पेरोक्साइड जैसे प्रदूषकों से होने वाली क्षति से बचाती है।

डॉ. सिंह ने बताया कि सायनोबैक्टीरिया जल-जीव पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वे ऑक्सीजन उत्पादन, नाइट्रोजन स्थिरीकरण और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण जैसी प्रक्रियाओं में मुख्य भूमिका निभाते हैं। इसलिए, इनकी अनुकूलन क्षमता को समझना पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए अहम है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खोज भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण और पारिस्थितिकी संरक्षण के नए रास्ते खोल सकती है। यदि यह समझ लिया जाए कि सायनोबैक्टीरिया प्रकाश संकेतों का उपयोग तनाव से निपटने के लिए कैसे करते हैं, तो वैज्ञानिक सम्पूर्ण जलीय पारिस्थितिक तंत्र की प्रतिक्रिया को बदलते प्रकाश और प्रदूषण स्तरों के संदर्भ में बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। शोध का अगला चरण इस बात पर केंद्रित होगा कि इस प्रकाश-आधारित संकेतन प्रणाली का उपयोग प्राकृतिक सूक्ष्मजीव समुदायों में हाइड्रोजन पेरोक्साइड प्रदूषण की निगरानी और उसे कम करने में कैसे किया जा सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी