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जोधपुर, 24 अक्टूबर (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट की एकलपीठ ने भरण-पोषण (मेंटेनेंस) संबंधी एक मामले में फैमिली कोर्ट बीकानेर का 29 फरवरी 2020 का आदेश निरस्त कर दिया और पूरा मामला नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेज दिया। जस्टिस संदीप शाह ने महिला की ओर से दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट मामले के समस्त साक्ष्यों व सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुरूप मेंटेनेंस पर निर्णय दे। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट से तीन माह के भीतर फैसले की अपेक्षा की गई है।
दरअसल याचिकाकर्ता महिला और उसके पुत्र की ओर से 31 मई 2017 को भरण-पोषण के लिए अर्जी दी थी। इसमें पत्नी ने बताया कि 18 अक्टूबर 2000 को हिंदू रीति से विवाह ‘नाता’ हुआ। इससे 28 अगस्त 2001 को बेटे का जन्म हुआ। बाद में महिला ने दहेज प्रताडऩा का केस दर्ज करवाया। तत्पश्चात 12 अक्टूबर 2010 को दोनों पक्षों में समझौता हो गया। इसके बाद महिला की भरण-पोषण की अर्जी पर फैमिली कोर्ट ने पत्नी का मेंटेनेंस दावा खारिज कर दिया और पुत्र के लिए केवल वयस्क होने तक की अंतरिम राशि को यथावत माना।
फैमिली कोर्ट का कहना था कि पत्नी का पूर्व विवाह कोर्ट डिक्री से समाप्त नहीं हुआ, इसलिए वर्तमान विवाह शून्य है और पत्नी मेंटेनेंस की हकदार नहीं। पुत्र के 28 अगस्त 2019 को वयस्क होते ही आगे का मेंटेनेंस अस्वीकार किया गया। हालांकि, जो अंतरिम राशि मिल चुकी है उसे लौटाने की जरूरत नहीं। महिला ने इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का 29 फरवरी 2020 का आदेश रद्द करते हुए मामला वापस भेज दिया। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना डिक्लेरेशन के विवाह को स्वत: ‘शून्य’ मानकर पत्नी को मेंटेनेंस से वंचित नहीं किया जा सकता। फैमिली कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के मानकों को ध्यान में रखते हुए फैसला देने का निर्देश दिया गया है।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश