Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का हालिया निर्णय, जिसमें उसने बांग्लादेश की नई सरकार बनने तक अगली किस्त जारी करने से इनकार किया है, इसके माध्यम से बता दिया है कि यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उस गहरी चिंता का प्रतीक है जो इस देश के शासन तंत्र की नीतिगत सड़ांध और नैतिक गिरावट को देख रही है।
वस्तुत: आईएमएफ ने बांग्लादेश को बड़ा झटका दिया है। संगठन ने साफ कर दिया है कि वह लोन की छठी किस्त तब तक जारी नहीं करेगा, जब तक बांग्लादेश में स्थायी, निर्वाचित और वैधानिक सरकार नहीं बन जाती। आईएमएफ ने जनवरी 2023 में बांग्लादेश के लिए 5.5 अरब डॉलर का पैकेज स्वीकृत किया था। इस राशि का उद्देश्य था; विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करना, मुद्रा ‘टका’ की गिरावट रोकना और बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण पाना। पाँच किस्तों में से 3.6 अरब डॉलर पहले ही जारी किए जा चुके हैं लेकिन करीब 800 मिलियन डॉलर की छठी किस्त रोक दी गई है।
अब आईएमएफ के इस फैसले को महज आर्थिक कदम मानना भूल होगी। यह एक प्रकार का राजनीतिक और नैतिक दबाव है, जो संकेत देता है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान बजट या बैलेंस शीट नहीं देखते बल्कि यह भी परखते हैं कि शासन में पारदर्शिता, नागरिक सुरक्षा और धार्मिक समानता का कितना पालन हो रहा है।
देश के भीतर प्रशासनिक रिश्वतखोरी की स्थिति भयावह है। पासपोर्ट सेवा में 75 प्रतिशत, वाहन पंजीकरण में 72 प्रतिशत और न्यायिक सेवाओं में 34 प्रतिशत लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है। यह स्थिति केवल आर्थिक नुकसान नहीं पहुंचाती बल्कि नागरिकों के बीच शासन के प्रति अविश्वास भी पैदा करती है। माना जा रहा है कि आईएमएफ का भरोसा टूटने का एक कारण यह भी है, क्योंकि किसी भी आर्थिक सुधार को लागू करने के लिए सबसे पहले प्रशासनिक ईमानदारी और पारदर्शिता चाहिए, जो ढाका में दुर्लभ है।
यूनुस सरकार पर बढ़ता दबाव
नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस, जिन्हें कभी गरीबों का मसीहा कहा गया, आज उसी मंच पर आलोचना का केंद्र बने हुए हैं। साल 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद यूनुस ने सेना समर्थित अंतरिम सरकार का नेतृत्व संभाला लेकिन वह न तो आर्थिक स्थिरता दे पाए न राजनीतिक भरोसा। आईएमएफ, विश्व बैंक और विदेशी निवेशक, सभी ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वे केवल एक लोकतांत्रिक, जनादेश-आधारित सरकार के साथ ही दीर्घकालिक सहयोग करेंगे।
धार्मिक उत्पीड़न और आर्थिक अस्थिरता
बांग्लादेश की आर्थिक गिरावट केवल वित्तीय अनुशासन की कमी से नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता और धार्मिक उत्पीड़न से भी जुड़ी है। जब किसी समाज में भय का वातावरण होता है, जब नागरिकों को सुरक्षा नहीं मिलती, तो निवेशकों का भरोसा भी डगमगाने लगता है। आईएमएफ और अन्य वैश्विक संस्थान इन संकेतों को गंभीरता से लेते हैं। हिंदू समुदाय, जो बांग्लादेश की कुल आबादी का लगभग 8 प्रतिशत है, ऐतिहासिक रूप से व्यापार, शिक्षा और पेशेवर वर्गों में प्रमुख भूमिका निभाता रहा है। जब इस समुदाय को निशाना बनाया जाता है, तो स्थानीय बाजार और उत्पादन चक्र कमजोर पड़ते हैं। उद्योग-धंधों में अस्थिरता आती है और उपभोक्ता विश्वास टूटता है। यह सीधे जीडीपी और रोजगार दर को प्रभावित करता है।
भय और उत्पीड़न के बीच जीता हिंदू अल्पसंख्यक
बांग्लादेश का सामाजिक संकट उसकी अर्थव्यवस्था जितना ही गंभीर है। देश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय पर लगातार हमले हो रहे हैं। साल 2025 में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हिंसा अपने चरम पर रही। वर्ष के पहले छह महीनों में ही 250 से अधिक हमले, 27 हत्याएँ, और 60 से ज़्यादा मंदिरों पर हमले हुए।
साल 2023 में 302 घटनाएँ, जबकि साल 2024 में (दिसंबर तक) 2,200 से अधिक मामले दर्ज हुए। अगस्त 2024 से अगस्त 2025 के बीच 1,700 से अधिक दर्ज घटनाएँ, कम से कम 23 ज्ञात मौतें और 150 से अधिक मंदिरों को नुक़सान की पुष्टि अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में हुई। जिनमें सैकड़ों हिंदू परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। मानवाधिकार संगठन “हिंदू बौद्ध ख्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल” के अनुसार पिछले एक वर्ष में 1,045 घटनाओं में 45 लोगों की हत्या हुई, 479 घायल हुए और 102 मंदिरों या व्यवसायों को नुकसान पहुंचाया गया। यह स्थिति केवल धार्मिक असहिष्णुता नहीं, बल्कि शासन की निष्क्रियता और सामाजिक नियंत्रण की विफलता का प्रमाण है।
सामाजिक न्याय और आर्थिक नीति का विघटन
आईएमएफ ने कई बार स्पष्ट किया है कि बांग्लादेश को वित्तीय सुधारों के साथ ही प्रशासनिक और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता है। आगे आईएमएफ का प्रतिनिधिमंडल 29 अक्टूबर से देश की दो सप्ताह की समीक्षा करेगा। यह दल बांग्लादेश बैंक, वित्त मंत्रालय और आर्थिक सुधार बोर्ड से मुलाकात करेगा और तय करेगा कि सहायता की अगली किस्त जारी की जाए या नहीं।
भ्रष्टाचार और शासन की विश्वसनीयता का ह्रास
भ्रष्टाचार और अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा, दोनों बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय साख को चोट पहुंचा रहे हैं। विदेशी निवेशक अब ढाका को जोखिमपूर्ण बाजार मानने लगे हैं। वर्ष 2024 के अंत तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में 18 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि निर्यात वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत से घटकर 3.1 प्रतिशत रह गई। बांग्लादेश बैंक की रिपोर्ट बताती है कि विदेशी मुद्रा भंडार भी एक वर्ष में 39 अरब डॉलर से घटकर 22.5 अरब डॉलर पर आ गया है।
बांग्लादेश की मौजूदा परिस्थिति दिखाती है कि किसी भी देश की आर्थिक नीतियाँ धर्म और राजनीति से अलग नहीं रह सकतीं। जब शासन एक वर्ग के प्रति पक्षपाती हो, कानून व्यवस्था चरमपंथियों के नियंत्रण में आ जाए और प्रशासनिक संस्थाएँ भ्रष्टाचार से ग्रस्त हों, तो अर्थव्यवस्था अपने आप ढहने लगती है। दरअसल, यहां हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार केवल एक मानवाधिकार संकट नहीं है, यह उस आर्थिक प्रणाली की विफलता है जो समान अवसर और सुरक्षा देने में असफल रही है। ऐसे में आईएमएफ का संदेश साफ नजर आता है कि “वित्तीय स्थिरता, सामाजिक न्याय से अलग नहीं हो सकती।”
अब आईएमएफ की इस रोक ने बांग्लादेश को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है। अगर देश अब भी सुधारों की राह नहीं अपनाता, तो आने वाले महीनों में विदेशी मुद्रा संकट, महंगाई और बेरोजगारी का विकराल रूप सामने आएगा। यहां लगता है, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का बांग्लादेश के लिए संदेश स्पष्ट है; उसे तय करना होगा कि वह किस दिशा में जाना चाहता है; एक ऐसा देश जो भ्रष्टाचार, धार्मिक कट्टरता और राजनीतिक हठ का प्रतीक बने या वह राष्ट्र जो अपनी गलतियों से सबक लेकर स्थायी विकास, सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तिकरण की राह चुने।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी