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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
देशवासियों के रहन-सहन और खान-पान में तेजी से बदलाव आ रहा है। लोगों की प्राथमिकताएं चाहे शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण, सभी जगह बदलाव का दौर चल रहा है। बदलती प्राथमिकताएं सेहत पर भारी पड़ने लगी है तो गंभीर चिंता का कारण भी बनती जा रही है। बदलाव को इसी तरह से भली-भांति समझा जा सकता है कि प्राथमिकताओं में वाहन, दवा और जंक फूड प्रमुखता लेते जा रहे हैं। यूनिसेफ की पिछले दिनों जारी रिपोर्ट के अनुसार बदलाव का यह दौर शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में नेक टू नेक देखा जा रहा है। अनाज का स्थान जंक फूड ले चुका है। ग्रामीण क्षेत्र में जंक फूड का उपयोग जहां 10 प्रतिशत हो गया है वहीं, अनाज उपयोग 5.4 प्रतिशत रह गया है। इसी तरह से शहरी क्षेत्र में जंक फूड की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत हो गई है तो अनाज पर खर्च का प्रतिशत केवल केवल 4 प्रतिशत रह गया है। वाहन आदि पर व्यय ग्रामीण क्षेत्र में 7.8 फीसदी हो गया है तो शहरी क्षेत्र में कुछ ही अधिक 8.2 प्रतिशत हो गया है। यह रहन-सहन व खान-पान के बदलाव की तस्वीर है। साइड-इफेक्ट यह कि अनाज से ज्यादा खर्च स्वास्थ्य यानी की इलाज पर ग्रामीण क्षेत्र में 6.5 प्रतिशत तो शहरी क्षेत्र में इससे कुछ कम 5.9 प्रतिशत होने लगा है। शिक्षा पर खर्च में ग्रामीण क्षेत्र जहां 3.8 प्रतिशत पर अटका है वहीं शहरी क्षेत्र 6 प्रतिशत है। निश्चित रुप से शहरी क्षेत्र में शिक्षा प्राथमिकता बनी हुई है।
यूनिसेफ की चिंता यह नहीं है कि किस पर कितना व्यय हो रहा है। चिंता का कारण यह है कि जंक-फूड के साइड-इफेक्ट सामने आने लगे हैं। आज अधिक कैलोरी वाले जंक-फूड पेट भरने का प्रमुख साधन बन गया है। साइड इफेक्ट देखिये कि बच्चों से लेकर बड़ों तक देश में मोटापा तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसी तरह से मोटापा के कारण होने वाली बीमारियों के साथ आज की युवा पीढ़ी हृदय रोग की शिकार होती जा रही है। दुुनिया के देशों में जहां डायबिटिज यानी मधुमेह की गिरफ्त को कम करने में जुटे हैं वहीं हमारे देश में मधुमेह की गिरफ्त लगातार मजबूत होती जा रही है। मधुमेह से ग्रसित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही अन्य बीमारियों की पकड़ अधिक होती जा रही है।
जंक फूड के चलते इम्यूनिटी प्रभावित हो रही है। अधिक कैलोरी के कारण शरीर थुलथुल होता जा रहा है। हालांकि मोटापे की समस्या से समूची दुनिया जूझ रही है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार डिब्बाबंद खाने के चलते साल 2030 तक देश में 2.7 करोड़ से अधिक बच्चे मोटापे की चपेट में आने की आशंका व्यक्त की जा रही है। बच्चे हो या बड़े सबकी पंसद बर्गर, पिज्जा, चिप्स, कुरकुरे, मैगी, बिस्कुट और इसी तरह से डिब्बाबंद खाद्य सामग्री के साथ जूस और सॉफ्ट ड्रिंक पसंद बनते जा रहे हैं। इसका एक तो बड़ा कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में समाज रुप से बढ़ती मार्केटिंग सुविधा, चंद मिनट से लेकर कुछ मिनटों में ही सामग्री की उपलब्धता, फिर स्वाद और आक्रामक विज्ञापनों के मोहजाल के कारण पैक्ड खाद्य सामग्री के प्रति तेजी से रुझान बढ़ा है। आकर्षक नाम, आकर्षक आउटलेट, वेल अरेंज्ड डिलिवरी सिस्टम व गिग वर्कर्स की टीम द्वारा आर्डर के साथ ही चंद मिनटों में उपलब्धता और इसके साथ ही इंस्टेट खाने की आदत के कारण यह सब हो रहा है।
चिंता का कारण है कि खाना जो पौष्टिकता और समयानुकूल होता था वह अब कहीं खो गया है। अब स्वाद और इंस्टेट खाने का मोह होने लगा है। एक अन्य कारण शहरों में अध्ययन के लिए जाने, पीजी और लाइब्रेरी की कल्चर ने युवाओं का जंक फूड की गिरफ्त में अधिक ले लिया है। कौन खाना बनाए- के चक्कर में एक फोन पर सहज उपलब्धता को देखते हुए भी जंक फूड को बढ़ावा मिला है। फिर यह शहरों से गांवों तक पहुंच गई है जिससे गांवों में भी जंक फूड आम होता जा रहा है।
यूनिसेफ ही नहीं समूची दुनिया की चिंता का कारण यह है कि खानपान और रहन-सहन की बदलती प्रवृति स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। आज समूची दुनिया मोटापा की समस्या को लेकर गंभीर है तो हृदय रोग की गिरफ्त में कम आयु के भी आने लगे हैं। अब तो साइलेंट अटैक का दौर और चल गया है और संभलने तक का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में पंरपरागत खानपान की और लौटना ही होगा। पिछले दिनों ही अधिक कैलोरी और मोटापे की लगातार विकराल होती समस्या के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं लोगों से अधिक तैलीय खाद्य पदार्थ के उपयोग को कम करने के लिए देशवासियों से आग्रह कर चुके हैं। राजस्थान की सरकार ने एक बड़ा निर्णय करते हुए सरकारी बैठकों में चना-मूंगफली का उपयोग शुरु कर दिया है। यह विश्वव्यापी समस्या है, ऐसे में लोगों की आदत में बदलाव के समग्र प्रयास करने होंगे। यह मालूम होने के बावजूद लोगों द्वारा जंकफूड का उपयोग बढ़ रहा है, इस आदत को बदलना होगा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश