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- डॉ प्रियंका सौरभ
किसी के भी जीवन की सबसे अमूल्य संपत्ति बचपन है। खेलना, पढ़ना, सीखना और सुरक्षित वातावरण में बड़े होना, हर बच्चे का अधिकार है। लेकिन बच्चों का शोषण, भीख मंगवाने के लिए उनका इस्तेमाल और उनकी मासूमियत का लाभ उठाना आज गंभीर सामाजिक समस्या बन चुका है। भीख मंगवाना व्यक्तिगत समस्या नहीं है; यह एक व्यवस्थित व्यवसाय बन चुका है। छोटे-बड़े शहरों में यह आम दृश्य है कि मासूम बच्चे हाथ में थाली, कपड़े या किसी वस्तु के साथ चलते हैं और लोग उनके मासूम चेहरों पर दया दिखा कर पैसे डाल देते हैं। यह न केवल बच्चों के बचपन को छीनता है, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी प्रभावित करता है। समाज की जागरूकता की कमी, लोगों का दया भाव और कुछ परिवारों की आर्थिक मजबूरी मिलकर इस समस्या को बढ़ावा देते हैं। यह सिर्फ गरीबी का नतीजा नहीं बल्कि बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन भी है।
बचपन किसी भी मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील हिस्सा होता है। यह वह समय है जब बच्चे सीखते हैं, अनुभव प्राप्त करते हैं और अपनी पहचान बनाते हैं। लेकिन जब बच्चों को भीख मंगवाने या किसी अन्य शोषण के लिए मजबूर किया जाता है, तो उनका विकास बाधित होता है। भीख मंगवाना कभी-कभी आर्थिक मजबूरी का नतीजा हो सकता है, लेकिन जब यह नियमित रूप से होता है और बच्चे को मजबूर किया जाता है, तो यह शोषण बन जाता है। मासूमियत का फायदा उठाकर बच्चों से पैसे कमाना एक नैतिक अपराध है। समाज की भूमिका यहां महत्वपूर्ण बन जाती है। लोग यह सोचकर पैसा देते हैं कि वे मदद कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे बच्चों के शोषण को प्रोत्साहित कर रहे हैं। माता-पिता और परिवार की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चों को इस तरह की गतिविधियों से बचाएं।
भारत में बाल श्रम और बच्चों से भीख मंगवाने को रोकने के लिए कई कानून हैं। बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम बच्चों को मजदूरी और शोषण से बचाने के लिए बनाया गया है। इसके अलावा, चाइल्डलाइन 1098 जैसी सेवाएँ 24x7 बच्चों की मदद के लिए उपलब्ध हैं। एनजीओ और सामाजिक संगठन भी सक्रिय रूप से बच्चों को शोषण से बचाने और उन्हें शिक्षा उपलब्ध कराने का काम कर रहे हैं। लेकिन वास्तविक चुनौती यह है कि कई बार बच्चे और उनके माता-पिता कानूनी संरचना से अनजान रहते हैं और शोषण नेटवर्क इतने संगठित होते हैं कि उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है। सरकार और समाज को मिलकर बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूकता फैलानी होगी और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन देना होगा।
समाज का दया भाव और सहानुभूति अक्सर बच्चों के शोषण का कारण बन जाती है। अगर लोग बच्चों को भीख देने के बजाय सही तरीके से मदद करें, तो वे शोषण को बढ़ने से रोक सकते हैं। स्थानीय समुदाय, स्कूल, माता-पिता और पड़ोसी मिलकर बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। बच्चों को सुरक्षित वातावरण, शिक्षा और खेलकूद का अवसर देना उनके विकास के लिए जरूरी है। समाज को यह समझना होगा कि केवल पैसे देना बच्चों की मदद नहीं है। सही कार्रवाई, जैसे एनजीओ, चाइल्ड लाइन और सामाजिक संस्थाओं को सूचित करना ही बच्चों को शोषण से बचा सकती है।
भीख मंगवाना कई जगहों पर आर्थिक व्यवसाय बन चुका है। कुछ परिवार और नेटवर्क मासूम बच्चों को इस्तेमाल करके पूरे दिन हजारों रुपये कमाते हैं। यह सिर्फ बच्चों की मासूमियत का फायदा उठाना नहीं है, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करना भी है। पैसा देने वाले लोग यह सोचते हैं कि वे दया कर रहे हैं लेकिन असल में वे इस प्रणाली को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। यह एक चक्र बन जाता है, जिसमें बच्चों का शोषण जारी रहता है। बच्चों के भविष्य और समाज की नैतिक जिम्मेदारी के लिहाज से यह गंभीर समस्या है।
इस समस्या का समाधान समाज, सरकार और नागरिकों के मिलकर काम करने में है। बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा के लिए कदम उठाना जरूरी है।
पैसे देने की बजाय मदद करें। बच्चों को भीख देने के बजाय उन्हें शिक्षा, खेल और सुरक्षित वातावरण उपलब्ध करवाएं। बच्चों की सुरक्षा के लिए चाइल्ड लाइन (1098) और मान्यता प्राप्त एनजीओ से संपर्क करें। समाज में बच्चों के अधिकारों और शोषण की समस्या के बारे में जागरूकता बढ़ाएं। स्कूल, माता-पिता और पड़ोसी मिलकर बच्चों के सुरक्षित वातावरण को सुनिश्चित करें। सिर्फ दया भाव या छोटे पैसों से बच्चों की मदद नहीं होगी। सही कार्रवाई, जागरूकता और कानूनी उपाय ही उन्हें बचा सकते हैं। समाज, सरकार और नागरिकों के मिलकर सही कदम उठाने से ही इस समस्या का समाधान संभव है। जागरूकता, शिक्षा और सहयोग से ही हम बच्चों को उनका बचपन वापस दिला सकते हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की नींव रख सकते हैं।
(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश