स्वदेशी की लौ : उपभोक्ता बना आत्मनिर्भरता का शिल्पकार
डॉ. मयंक चतुर्वेदी


डॉ. मयंक चतुर्वेदी

दिवाली की इस बार की जगमगाहट दीपों तक सीमित नहीं रही है, उसने भारतीय अर्थव्यवस्था के हर कोने में आत्मनिर्भरता की लौ जलाई। बाजारों की रौनक और उपभोक्ताओं के उमंग में इस बार जो बात सबसे अधिक झलकी, वह है ‘मेड इन इंडिया’ के प्रति अभूतपूर्व विश्वास। देश के व्यापारी, कारीगर और उपभोक्ता, तीनों एक साथ उस दिशा में चलते दिखाई दिए, जहाँ स्वदेशी विकल्प से अधिक प्राथमिकता बनता दिखा।

वस्‍तुत: कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की ताजा रिपोर्ट ने इस परिवर्तन को अंकों में पिरोकर सामने रखा है। त्योहारी सीजन में देशभर में लगभग 6.05 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ, जो अब तक का सबसे बड़ा आँकड़ा है। इसमें सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि 87 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ताओं ने विदेशी वस्तुओं के बजाय स्वदेशी उत्पादों को चुना। यह सीधे तौर पर भारत के आर्थिक उछाल का संकेत तो है ही साथ में आत्मनिर्भर भारत के विचार की वास्तविक विजय को भी दर्शाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का आह्वान किया था, तब ध्‍यान में आया था कि पीएम देशवासियों के माध्‍यम से भारतीय अस्मिता और स्थानीय उत्पादन के पुनरुद्धार को नई दिशा देना चाहते हैं। आज परिणाम भी उसी अनुरूप आया है, जैसा वे चाहते हैं। इस बार दीपावली के बाजारों में चीनी उत्पादों की चमक लगभग गायब रही, वहीं भारतीय वस्तुओं की बिक्री में पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर्ज हुई। दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, अहमदाबाद और जयपुर जैसे प्रमुख शहरों के बाजारों में स्थानीय उत्पादों की बहार थी। हर स्टॉल पर, हर दुकान में यह विश्वास झलक रहा था कि भारत की मिट्टी में बने उत्पाद किसी भी अंतरराष्ट्रीय ब्रांड से कम नहीं। यही वह स्वदेशी चेतना है जो उपभोक्ता व्यवहार को बदल रही है।

यहां इस सत्‍य को भी खुले मन से स्‍वीकार करना होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे प्रेरित संगठनों ने वर्षों से इस स्‍व से जुड़ी स्‍वदेशी चेतना को जीवित रखा है। “स्वदेशी खरीदो–देश बनाओ” जैसे अभियानों ने इस वर्ष जनांदोलन का रूप ले लिया। संघ के आर्थिक दर्शन का मूल ही यह है कि आत्मनिर्भरता सिर्फ उद्योग तक सीमित नहीं है, यह राष्ट्र निर्माण का आधार है। यही कारण है कि इस बार दीपावली के उत्सवों में सांस्कृतिक भावना के साथ आर्थिक स्वराज का भाव भी उतना ही प्रबल दिखा है। आरएसएस से प्रेरित संगठनों ने ‘स्वदेशी उत्सव’ और ‘हस्तशिल्प मेले’ जैसे आयोजन कर यह संदेश दिया कि स्वदेशी केवल व्यापार नहीं, बल्कि विचार है। स्वदेशी जागरण मंच के अनुसार, यह दौर भारत की आर्थिक स्वराज यात्रा का नया अध्याय है। उनका मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति कुछ वर्षों तक निरंतर बनी रही, तो भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि एक सशक्त निर्यातक राष्ट्र के रूप में भी दुनिया के सामने खड़ा होगा।

मोदी सरकार की नीतियाँ भी इसी दिशा में गूँथी हुई हैं; प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टैंड अप इंडिया, वोकल फॉर लोकल, और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने स्वदेशी भावना को संस्थागत रूप दिया है। इन योजनाओं ने छोटे व्यापारियों और ग्रामीण उद्यमियों को सशक्त बनाया है, जो अब त्योहारी अर्थव्यवस्था के केंद्र में हैं।

कैट ने बताया है कि कैसे “छोटे व्यापारियों की ऐतिहासिक वापसी” हुई है। इस वर्ष कुल बिक्री में 85 प्रतिशत योगदान गैर-कारपोरेट और पारंपरिक बाजारों से आया। दिल्ली के सदर बाजार, चांदनी चौक, शास्त्री नगर और लाजपत नगर जैसे इलाकों में पैर रखने की जगह नहीं थी। पहले जहाँ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स बिक्री पर हावी रहते थे, इस बार उपभोक्ताओं ने स्थानीय दुकानों से खरीदारी का अनुभव फिर अपनाया। यह प्रवृत्ति बताती है कि डिजिटल युग में भी पारंपरिक बाजारों की आत्मा जीवित है। खरीदारी के आँकड़े भी इस बदलाव की गवाही देते हैं; किराना और एफएमसीजी उत्पादों ने कुल बिक्री में 12%, सोना-चाँदी ने 10%, इलेक्ट्रॉनिक्स ने 8% और रेडीमेड परिधानों ने 7% योगदान दिया। यह विविधता दर्शाती है कि भारतीय उपभोग शहरी सीमाओं को पार कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था तक फैल चुका है।

इस वर्ष ग्रामीण और अर्ध-शहरी बाजारों ने 28 प्रतिशत भागीदारी दी। यह आँकड़ा ग्रामीण भारत की बढ़ती क्रयशक्ति और स्थानीय उत्पादन की सशक्तता का प्रमाण है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आरंभ की गई योजनाओं ने गाँव-गाँव में छोटे उद्योगों और स्वयं सहायता समूहों को मजबूत किया है। आज ग्रामीण महिलाएँ दीपावली सजावट से लेकर मिठाई पैकेजिंग तक, अनेक उत्पाद तैयार कर रही हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित हुआ है और मांग–पूर्ति का पूरा चक्र अब स्वदेशी ढाँचे में घूम रहा है।

इस बार ट्रेडर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 8.6 और कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 8.4 तक पहुँच गया, जो पिछले दशक का सर्वोच्च स्तर है। यह आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि व्यापारी और उपभोक्ता दोनों भविष्य को लेकर आश्वस्त हैं। 72 प्रतिशत व्यापारियों ने माना है कि जीएसटी दरों के तर्कसंगत पुनर्गठन और डिजिटल भुगतान प्रोत्साहन ने इस उछाल में निर्णायक भूमिका निभाई। सरकार की पारदर्शी नीतियों ने व्यापार वातावरण में स्थिरता और विश्वास लौटाया है। त्योहारी सीजन में वस्तुओं के साथ सेवा क्षेत्र ने भी शानदार प्रदर्शन किया। पैकेजिंग, ट्रैवल, होटल, ईवेंट मैनेजमेंट और डिलीवरी नेटवर्क में लगभग 65,000 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। साथ ही, लगभग 50 लाख अस्थायी रोजगार सृजित हुए, जिनमें बड़ी संख्या में युवा और महिलाएँ शामिल थीं। इससे यह स्पष्ट हुआ कि आत्मनिर्भर भारत का भाव निर्माण तक सीमित नहीं रहा है, सेवा और सृजन दोनों में बराबर प्रवाहित है।

कहना होगा कि यह वर्ष भारत की आर्थिक यात्रा का मील का पत्थर है। अब खुदरा व्यापार केवल उपभोग का प्रतीक नहीं रहा, वह आत्मविश्वास और राष्ट्रभाव का परिचायक बन गया है। भारतीय उपभोक्ता अब “ब्रांड वैल्यू” नहीं, बल्कि “भारतीय मूल्य” को प्राथमिकता दे रहा है। मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संयुक्त स्वदेशी दृष्टि ने भारत की आर्थिक दिशा को एक नया अर्थ दिया है, जहाँ हर छोटा दुकानदार, हर ग्रामीण उद्यमी और हर जागरूक उपभोक्ता मिलकर आत्मनिर्भर भारत की मशाल थामे हुए है। यह वह रोशनी है जो बताती है कि भारत अब किसी और के उजाले का मोहताज नहीं, वह आज अपनी ही लौ से जगमगाने वाला देश बन चुका है। दिवाली की जगमगाहट में इस बार एक नई लौ दिखी है, वह है आत्मनिर्भर भारत की लौ। हर बाजार में ‘मेड इन इंडिया’ की चमक दिख रही है। यह केवल व्यापार का उत्थान नहीं है, यह तो भारतीय उपभोक्ता की चेतना का पुनर्जागरण है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी