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सियाराम पांडेय 'शांत'
आसमान में उड़ना हर किसी का सपना होता है। मनुष्य के पास उड़ने के लिए पंख भले न हों लेकिन उसके पास उम्मीदों के पंख तो हैं ही और जब हौसलों का साथ हो, मन में उल्लास हो तो संसार को जीतना आसान हो जाता है। आकाश तक विकास की ऊंची छलांग तो लगाई ही जा सकती है। दीपावली के उमंग और उल्लास भरे पुनीत अवसर पर उड़ान योजना के नौ साल पूरे हो गए। विमान सेवा को आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21 अक्टूबर, 2016 को यह योजना शुरू की थी। हालांकि इस योजना के तहत पहली उड़ान 27 अप्रैल 2017 को शिमला से दिल्ली के लिए शुरू हुई थी। यह योजना 10 साल के लिए शुरू की गई थी लेकिन अब इसकी अवधि दस साल और बढ़ा दी गई है।
निश्चित ही इसका लाभ न केवल विमानन क्षेत्र को मिलेगा बल्कि मध्यमवर्गीय समाज भी इससे बहुत हद तक लाभान्वित हो सकेगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 2025-26 के बजटीय भाषण पर गौर करें तो आगामी साल में इस योजना में 120 नए गंतव्य शामिल किए जाएंगे, जिससे 4 करोड़ अतिरिक्त यात्रियों को सस्ती हवाई सेवा का लाभ मिल सकेगा। इस निमित्त भले ही उन्होंने नागरिक उड्डयन मंत्रालय के लिए कुल परिव्यय का खुलासा नहीं किया लेकिन बजट में 2025-26 में उड़ान योजना के लिए 540 करोड़ रुपये के आवंटन की घोषणा तो शुरू की ही थी।
उड़ान योजना के तहत अब तक 625 उड़ान मार्ग चालू किए गए हैं जो पूरे भारत में 90 हवाई अड्डों को जोड़ते हैं, जिनमें 2 जल हवाई अड्डे और 15 हेलीपोर्ट भी शामिल हैं। इस योजना से उड़ान के अंतर्गत 1.49 करोड़ से अधिक यात्री किफायती क्षेत्रीय हवाई यात्रा का लाभ उठा चुके हैं। भारत के हवाई अड्डा नेटवर्क पर विचार करें तो वर्ष 2014 तक देश में 74 हवाई अड्डे थे जो बढ़कर 159 हो गए हैं। हवाई अड्डों तक पहुंच गया जो एक दशक में दोगुने से भी अधिक है। वंचित एवं दूरदराज के क्षेत्रों में वायु संपर्क बढ़ाने के लिए सरकार ने व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (वीजीएफ) के रूप में 4,023.37 करोड़ रुपये बांटे हैं।
उड़ान योजना से जाहिर तौर पर क्षेत्रीय पर्यटन को गति मिली है। स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बढ़ी है और व्यापार को मजबूती मिली है। टियर-2 और टियर-3 शहरों में आर्थिक विकास में उछाल आई है। आकाश को छूना देश के अधिकांश लोगों का सपना हुआ करता था लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसमें अपना एक और सपना जोड़ दिया और वह सपना था कि हवाई सेवा इतनी सस्ती होनी चाहिए कि उसमें चप्पल पहनने वाला आम नागरिक भी सफर कर सके। 'उड़े देश का आम नागरिक' के स्लोगन के साथ जब यह योजना शुरू हुई तो उनके विरोधियों ने इसका उपहास भी किया लेकिन जब नीति और नीयत साफ हो तो संकल्प अपनी सिद्धि को प्राप्त करता ही है। उड़ान योजना के साथ भी कमोबेश ऐसा ही कुछ हुआ। यह कहने में शायद ही किसी को संकोच हो कि इस योजना ने तब से अब तक भारत के क्षेत्रीय वायु संपर्क परिदृश्य को बदल दिया है।
अनगिनत नागरिकों के लिए आसमान खोलना किसी उपलब्धि से कम नहीं है। इसके लिए सरकार को काफी कुछ व्यय भार झेलना भी पड़ा। किफायती किराया सुनिश्चित करने के लिए एयरलाइनों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी पड़ी हवाई किराये की सीमा निर्धारित करनी पड़ी। कम आकर्षक बाजारों में उड़ानें संचालित करने के लिए एयरलाइनों को आकर्षित करने की दिशा में भी सरकार को अनेक प्रयास करने पड़े। केंद्र सरकार ने प्रथम तीन सालों के लिए आरसीएस हवाई अड्डों पर खरीदे जाने वाले एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) पर उत्पाद शुल्क 2 प्रतिशत तक सीमित किया। एयरलाइन्स को अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए कोड शेयरिंग समझौते के लिए प्रोत्साहित करने में वह पीछे नहीं रही। इस क्रम में राज्य सरकारों का सहयोग भी कमतर नहीं आंका जा सकता। राज्यों ने दस वर्षों के लिए एटीएफ पर वैट को 1 प्रतिशत या उससे कम करने तथा सुरक्षा, अग्निशमन सेवाओं और उपयोगिता सेवाओं जैसी आवश्यक सेवाएं कम दरों पर उपलब्ध कराई। सहयोग की इस युति ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया है, जहां एयरलाइन्स कंपनियां लंबे समय से उपेक्षित क्षेत्रों में भी सेवाएं प्रदान करने का साहस नहीं जुटा पाईं, वहां भी अब बदस्तूर फल-फूल रही हैं।
योजना अपने प्रारंभ से विस्तार तक अनेक चरणों से गुजरी और हर चरण में उसने भारत के क्षेत्रीय हवाई संपर्क के दायरे में इजाफा ही किया है। पहली उड़ान 27 अप्रैल, 2017 को (शिमला-दिल्ली) रवाना हुई। इसमें 5 एयरलाइन संचालकों को 70 हवाई अड्डों के लिए 128 मार्ग आवंटित किये गये इनमें 36 नये हवाई अड्डे भी शामिल रहे। उड़ान का दूसरा चरण साल 2018 में शुरू हुआ जिसमें 73 कम जुड़ाव वाले और ऐसे क्षेत्र जिनसे जुड़ाव नहीं था, उन हवाई अड्डों को शामिल किया गया। यह पहला मौका था जब हेलीपैड भी उड़ान नेटवर्क का हिस्सा बने। उड़ान योजना की तीसरा चरण 2019 में शुरू हुआ जिसमें पर्यटन मंत्रालय से समन्वय स्थापित कर अनेक पर्यटन मार्ग शुरू किए गए। जल हवाई अड्डों को जोड़ने सस्ती और किफायती वायु सेवा से जोड़ने के लिए समुद्री विमान परिचालन का भी सहयोग लिया गया। पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई मार्गों को इस योजना से जोड़ा गया। जाहिर है, इस योजना से न केवल पर्यटन कारोबार में वृद्धि हुई। रोजगार के मौके भी बढ़े हैं।
साल 2016 में जब यह योजना शुरू हुई थी तब 500 किमी की एक घंटे की यात्रा के लिए हवाई किराया 2,500 रुपये तक सीमित किया गया था। इस योजना के फलस्वरूप मुंद्रा (गुजरात) से अरुणाचल प्रदेश के तेजू तथा हिमाचल के कुल्लू से तमिलनाडु के सलेम तक उड़ान ने देशभर में 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जोड़ा। दरभंगा, प्रयागराज, हुबली, बेलगाम, कन्नूर हवाईअड्डे योजना के तहत ही अस्तित्व में आए। भविष्य में और भी हवाई अड्डे आएंगे। इससे आमजन को जो राहत मिली है। उनके श्रम, समय और धन की जो बचत हुई है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह योजना देश के किसानों, मजदूरों को लक्ष्य करके बनाई गई थी, इसलिए भी इसका महत्व सहज बढ़ जाता है। उड़ान योजना सही मायने में आम आदमी के सपनों की उड़ान है, उसे और आगे बढ़ाने का निर्णय न केवल सराहनीय है बल्कि इस प्रक्रिया को और सरल, सहज बनाने और वायु क्षेत्र का दायरा बढ़ाने की जरूरत है, जिससे गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोग भी योजना से लाभान्वित हो सकें।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश