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रतलाम (मध्य प्रदेश), 18 अक्टूबर (हि.स.)। दीपोत्सव की रौनक के बीच रतलाम का मां महालक्ष्मी मंदिर इस बार भी अपनी अनोखी और भव्य सजावट के लिए चर्चा में है। मंदिर को फूलों से नहीं, बल्कि हीरों, जवाहरात और नोटों की मालाओं से सजाया गया है। गर्भगृह से लेकर दीवारों तक हर जगह मुद्रा और आभूषणों की चमक नजर आ रही है। किसी लड़ी में 10 रुपये के नोट हैं तो किसी में 500 के, यहां ऐसा लग रहा है जैसे कि पूरा मंदिर मानो कुबेर का खजाना बन गया हो।
मंदिर समिति के अनुसार, इस वर्ष करीब दो करोड़ रुपये की नकदी और आभूषणों से मंदिर को सजाया गया है। दीपोत्सव के पांच दिन पूरे होने के बाद यह सारा धन और आभूषण “प्रसादी” के रूप में दाताओं को लौटा दिया जाएगा। परंपरा के मुताबिक अब तक यहां से एक रुपये का भी हेरफेर नहीं हुआ है।
300 साल पुरानी परंपरा
महालक्ष्मी मंदिर के पुजारी अश्विनी पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है और रियासतकालीन विरासत का प्रतीक है। रतलाम के संस्थापक महाराजा रतन सिंह राठौर ने जब शहर की स्थापना की थी, तभी से दीपावली यहां राजकीय भव्यता के साथ मनाई जाती रही है। राजा अपनी प्रजा की समृद्धि, सुख और निरोगी जीवन की कामना करते हुए पांच दिन तक शाही खजाने के सोने-चांदी के आभूषण मां लक्ष्मी को अर्पित करते थे। इसी परंपरा ने समय के साथ स्वरूप बदला और अब श्रद्धालु अपने आभूषण, नकदी और नोट सजावट के लिए मंदिर में अर्पित करते हैं।
पं. अश्विनी पुजारी बताते हैं कि दीपावली प्रकाश पर्व के साथ ही धन और वैभव का त्योहार है। विष्णु भगवान की अर्धांगिनी महालक्ष्मी की पूजा इस पर्व का प्रमुख अंग है। श्रद्धालु मानते हैं कि जिस व्यक्ति का धन महालक्ष्मी के श्रृंगार में इस्तेमाल होता है, उसके घर में सुख, संपन्नता और धन की वर्षा होती है। यही कारण है कि रतलाम ही नहीं, पड़ोसी राज्यों से भी भक्त यहां पहुंचते हैं ताकि उनका धन “मां की आराधना” में काम आए।
इस साल 2 करोड़ की सजावट
मंदिर समिति के अनुसार, इस बार की सजावट में रतलाम, झाबुआ, मंदसौर, नीमच, गुजरात और राजस्थान से भी बड़ी संख्या में भक्तों ने योगदान दिया है। कई श्रद्धालुओं ने पांच लाख रुपये तक का दान किया। लगभग 1000 भक्तों ने मिलकर इस बार की सजावट को आकार दिया है। हर दान की ऑनलाइन एंट्री और डिजिटल रिकॉर्डिंग की गई है। नोट गिनने की मशीनों का प्रयोग हुआ और नकदी जमा करने वालों का नाम, पता, फोटो और मोबाइल नंबर दर्ज किया गया है। हर दाता को डिजिटल टोकन दिया गया है, जिस पर मंदिर की सील लगी है। दीपोत्सव के पांचवें दिन यही टोकन दिखाकर दाता अपनी धनराशि “प्रसाद” के रूप में वापस प्राप्त करते हैं।
उल्लेखनीय है कि महालक्ष्मी मंदिर की सजावट का काम दीपावली से एक सप्ताह पहले शुरू हो जाता है। शरद पूर्णिमा से ही भक्तों द्वारा रुपये और गहनों का आगमन शुरू हो जाता है। मंदिर को 1, 10, 20, 50, 100 और 500 रुपये के नए नोटों से सजाया जाता है। इन नोटों से वंदनवार, झालरें और दीवार सजावट तैयार की जाती है। गर्भगृह को खजाने की तरह सजाया जाता है, जहां मां महालक्ष्मी आठ स्वरूपों में विराजमान हैं, आद्य लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, लक्ष्मीनारायण, धन लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी और ऐश्वर्य लक्ष्मी। मंदिर में मां लक्ष्मी की मूर्ति के साथ भगवान गणेश और माता सरस्वती की भी प्रतिमाएं हैं। लक्ष्मी जी के हाथ में धन की थैली है, जो समृद्धि और वैभव का प्रतीक मानी जाती है।
मंदिर की आभा और सजावट इतनी भव्य होती है कि दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि इस मंदिर में मां लक्ष्मी का साक्षात वास है। दीपावली की रात यहां विशेष महालक्ष्मी पूजन और आरती होती है, जिसमें हजारों दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर में सीसीटीवी और पुलिस बल की तैनाती की गई है। हर दान की एंट्री रजिस्टर और ऑनलाइन सिस्टम दोनों में होती है ताकि किसी भी प्रकार की अनियमितता न हो। दूसरी ओर दीपोत्सव के दौरान यह मंदिर देश का पहला ऐसा स्थल बन जाता है जो पांच दिन तक नोटों और आभूषणों से सजा रहता है, और जहां धन की वर्षा आस्था में बदल जाती है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी