डायन प्रथा सहित अन्य कुप्रथाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया गया
पूर्वी सिंहभूम, 8 सितंबर (हि.स.)। आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से सोमवार को छोटा गदरा पंचायत में लोगों को संबोधित करते हुए डायन प्रथा, बलि प्रथा और ओझा-गुनी जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया गया। संघ के प्रतिनिधि सुनील आनंद ने कहा कि आ
समाज में अंधविश्वास खत्म करने का आह्वान : आनंद मार्ग प्रचारक संघ ने दिया संदेश


पूर्वी सिंहभूम, 8 सितंबर (हि.स.)।

आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से सोमवार को छोटा गदरा पंचायत में लोगों को संबोधित करते हुए डायन प्रथा, बलि प्रथा और ओझा-गुनी जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया गया।

संघ के प्रतिनिधि सुनील आनंद ने कहा कि आज भी समाज में अंधविश्वास गहराई से जकड़ा हुआ है, जिसके कारण लोग अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि तंत्र-मंत्र से किसी की हत्या या नुकसान नहीं किया जा सकता। यह केवल मानव कल्याण और आध्यात्मिक उत्थान के लिए है। मंत्र जाप से मानसिक और आत्मिक शक्ति बढ़ती है, जबकि हत्या या अनिष्ट करने की कोई शक्ति इसमें नहीं होती। तंत्र का अर्थ है तरण और मुक्ति—जिस पथ पर चलकर मनुष्य परमात्मा का अनुभव करता है। तंत्र के दो स्वरूप होते हैं—विद्या तंत्र और अविद्या तंत्र। इसे सबसे पहले भगवान सदाशिव ने बताया।

सुनील आनंद ने कहा कि डायन प्रथा और बलि प्रथा को खत्म करने के लिए समाज को वैज्ञानिक, व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जागरूक करना जरूरी है। इन विषयों को शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाना होगा, तभी समाज सही मायने में सुधर पाएगा।

उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने भीतर स्थित परम चेतना को भक्ति और साधना के माध्यम से पहचानना चाहिए। परमात्मा मां और शिशु के समान संबंध रखते हैं। वह सभी के कल्याणकारी हैं—चाहे मित्र हों या शत्रु। इसलिए बलि देना या डायन बताकर किसी को प्रताड़ित करना पूरी तरह गलत है। यह अर्धविकसित समाज की मानसिक बीमारी है, जिसे भक्ति और आत्मबल से ही दूर किया जा सकता है।

उन्होंने स्पष्ट कहा कि ओझा-गुनी या झाड़-फूंक के चक्कर में फंसना व्यर्थ है। किसी को भी तंत्र-मंत्र से नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। यदि ऐसा होता तो ओझा-गुनी को देश की सीमा पर भेजकर दुश्मनों से लड़ा दिया जाता, परंतु यह संभव नहीं है क्योंकि ऐसी शक्तियां अस्तित्व में ही नहीं हैं।

सुनील आनंद ने लोगों से अपील की कि वे अपने आत्मबल को बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक भजन-कीर्तन और आध्यात्मिक साधना करें। यही मार्ग है जो मनुष्य को अंधविश्वास और भय से मुक्त कर सकता है और समाज को वास्तविक रूप से प्रगतिशील बना सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद पाठक