सिरसा : शिकायतकर्ता आरोपित नामित हुआ तो पूर्व में दिए उसके बयान व सामग्री सबूत के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं
कथित भर्ती मामले से जुड़े मामले में हाई कोर्ट का फैसला, सिरसा के गुरमीत सिंह की याचिका खारिज
सिरसा : शिकायतकर्ता आरोपित नामित हुआ तो पूर्व में दिए उसके बयान व सामग्री सबूत के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं


सिरसा, 3 सितंबर (हि.स.)। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा के सिरसा जिला निवासी गुरमीत सिंह की उस याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया है जिसमें उसने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर और सप्लीमेंट्री चार्जशीट रद्द करने की मांग की थी। हाई कोर्ट के जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने स्पष्ट किया है कि किसी आपराधिक मामले में यदि शिकायतकर्ता को बाद में आरोपित के रूप में नामित किया जाता है, तो उससे पूर्व दिए गए उसके बयान व सामग्री उसके खिलाफ सबूत के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा आठ जो लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित है, निजी व्यक्तियों पर भी समान रूप से लागू होती है।

इस धारा के तहत कार्रवाई तब भी की जा सकती है, जब किसी लोक सेवक को आरोपित के रूप में नामित न किया गया हो। मामला कथित भर्ती घोटाले से जुड़ा है।

गुरमीत सिंह ने 18 जनवरी 2017 को सिरसा जिले के ऐलनाबाद थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी कि छह लोगों ने उसके बेटे को चंडीगढ़ पुलिस में एएसआइ की नौकरी दिलाने का झांसा देकर उससे 42 लाख रुपये लिए। बाद में केवल दो लाख रुपये वापस किए गए, जबकि शेष राशि लौटाने से इंकार कर दिया गया।

शिकायत के अनुसार नौकरी नहीं मिलने और रकम वापसी से इंकार करने पर गुरमीत सिंह को कथित तौर पर झूठे केस में फंसाने की धमकी दी गई। शुरुआत में पुलिस ने दो आरोपितों नवराज और अजादविंदर सिंह के खिलाफ चार्जशीट दायर की। परंतु 2018 में उनकी जमानत सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने स्वयं गुरमीत सिंह की संलिप्तता पर सवाल उठाया और गहन जांच की जरूरत बताई। इसके बाद वर्षों तक दोबारा जांच और विभिन्न याचिकाओं पर कानूनी लड़ाई चली। आखिरकार 2025 में विशेष जांच दल गठित किया गया।

मार्च 2025 में एसआइटी ने अपनी सप्लीमेंट्री रिपोर्ट में गुरमीत सिंह को भी आरोपित बना दिया और गुरमीत सिंह ने इसे चुनौती दी और दलील दी कि उसे शिकायतकर्ता से आरोपित बनाना अनुच्छेद 20 (3) (आत्म-दोषारोपण से सुरक्षा) का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यदि नए साक्ष्य सामने आए तो किसी भी स्तर पर फर्दर इन्वेस्टिगेशन की जा सकती है। साथ ही यह भी माना कि गुरमीत सिंह ने कथित रिश्वत स्वयं दी थी और सात दिनों की कानूनी अवधि में इसकी सूचना भी नहीं दी थी, जिससे उसे पीसी एक्ट के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता।

अदालत ने गुरमीत सिंह को राहत देने से इंकार करते हुए पुलिस को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रविधानों के तहत आगे जांच करने के भी आदेश दिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / Dinesh Chand Sharma