बांके बिहारी मंदिर मामला : सुप्रीम काेर्ट ने गठित की पूर्व जज की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय कमेटी
नई दिल्ली, 09 अगस्त (हि.स.)। उच्चतम न्यायालय ने वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व जज अशोक कुमार की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये कमेटी
सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली, 09 अगस्त (हि.स.)। उच्चतम न्यायालय ने वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व जज अशोक कुमार की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये कमेटी मंदिर के विकास के लिए योजना बनाएगी और मंदिर के लिए भूमि की खरीद के लिए समझौते की कोशिश करेगी। अगर कमेटी भूमि खरीद की कोशिश में असफल रहती है तो राज्य सरकार कानून के मुताबिक जरुरी अधिग्रहण करेगी।

उच्चतम न्यायालय ने जस्टिस अशोक कुमार के अलावा जिन्हें कमेटी का सदस्य बनाया है उनमें यूपी न्यायपालिका के पूर्व डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज मुकेश मिश्रा, मथुरा के डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज, मथुरा के मुंसिफ और सिविल जज, मथुरा के डीएम, एसएसपी, नगर निगम के आयुक्त, मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के साथ ही जस्टिस अशोक कुमार के जरिये नियुक्त एक आर्किटेक्ट, एएसआई का एक प्रतिनिधि और दोनों गोस्वामी समूहों के दो-दो प्रतिनिधि शामिल होंगे।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जस्टिस अशोक कुमार को मंदिर के फंड से दो लाख रुपए और यूपी न्यायपालिका के पूर्व डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज मुकेश मिश्रा को एक लाख रुपए का मानदेय हर महीने दिया जाएगा। कोर्ट ने साफ किया कि दोनों गोस्वामी समूहों के प्रतिनिधियों के अलावा किसी भी गोस्वामी को पूजा और प्रसाद चढ़ाने के अलावा कमेटी के काम में दखल का कोई अधिकार नहीं होगा।

दरअसल, उच्चतम न्यायालय कोर्ट बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में इलाहाबाद उच्चतम न्यायालय के आदेश को संशोधित करने की यूपी सरकार की मांग पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता देवेन्द्र नाथ गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि इस मामले में उन्हें पक्षकार बनाये बिना ही राज्य सरकार को 300 करोड़ रुपये दे दिए गए। सिब्बल ने पूछा था कि किसी दूसरी याचिका के जरिये किसी निजी मंदिर की कमाई को राज्य सरकार को कैसे दिया जा सकता है। तब यूपी सरकार ने कहा था कि राज्य सरकार ने बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया है और वो ट्रस्ट कॉरीडर के काम को देखेगी। यूपी सरकार ने कहा था कि पूरा पैसा ट्रस्ट के पास है न कि राज्य सरकार के पास। तब उच्चतम न्यायालय ने यूपी सरकार को ट्रस्ट के निर्माण संबंधी राज्य सरकार की अधिसूचना की प्रति दाखिल करने का निर्देश दिया।

यूपी सरकार कॉरीडोर विकसित करने के लिए 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत वहन करना चाहती है। लेकिन यूपी सरकार ने संबंधित जमीन खरीदने के लिए मंदिर के पैसों का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा था। बांके बिहारी जी ट्रस्ट के पास मंदिर के नाम पर फिक्स डिपॉजिट है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 8 नवंबर, 2023 को यूपी सरकार के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि कॉरीडोर को बनाया जाना चाहिए लेकिन इसमें मंदिर के फंड का उपयोग नहीं किया जाए। उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इसी आदेश को संशोधित करते हुए यूपी सरकार को प्रस्तावित भूमि का अधिग्रहण करने के लिए मंदिर के फिक्स डिपॉजिट में पड़ी राशि के इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी।

हिन्दुस्थान समाचार/संजय

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हिन्दुस्थान समाचार / अमरेश द्विवेदी