मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला : कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा - न्यायाधीश खून के प्यासे नहीं होने चाहिए
कोलकाता, 07 अगस्त (हि.स.)। कलकत्ता हाई कोर्ट की जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच ने अपने एक अहम फैसले में जलपाईगुड़ी सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है। यह सजा अफताब आलम नामक युवक को अपने मामा की हत्या और डकैती के जुर्म म
कलकत्ता हाई कोर्ट


कोलकाता, 07 अगस्त (हि.स.)। कलकत्ता हाई कोर्ट की जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच ने अपने एक अहम फैसले में जलपाईगुड़ी सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है। यह सजा अफताब आलम नामक युवक को अपने मामा की हत्या और डकैती के जुर्म में दी गई थी।

न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य ने कहा कि दंड की अवधारणा अब प्रतिशोध की भावना से नहीं, बल्कि सुधार के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को कभी भी खून के प्यासे नहीं होना चाहिए। हत्यारों को फांसी देना उनके लिए कोई अच्छाई नहीं लाता।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अफताब को आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, जिसमें कम से कम 20 वर्षों तक वह रिहा नहीं किया जा सकता, जब तक कि अदालत को कोई विशेष कारण प्रस्तुत न किया जाए।

फैसले में कहा गया कि 1980 के 'बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य' के ऐतिहासिक निर्णय में भी यह चेतावनी दी गई थी कि न्यायपालिका को मौत की सजा देते समय अत्यधिक संवेदनशीलता बरतनी चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि “जेलों” का नाम “सुधारगृह” रखने का औचित्य यही है कि समाज अब प्रतिशोध की बजाय अपराधी को सुधारने की नीति को प्राथमिकता दे रहा है।

फैसले में कहा गया कि अफताब की उम्र अभी 20 के दशक में है और उसके पुनर्वास की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। साथ ही यह अपराध ‘दुर्लभतम से दुर्लभ’ श्रेणी में नहीं आता।

राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक ने मृत्युदंड को कायम रखने की मांग की थी, लेकिन अदालत ने माना कि राज्य यह साबित नहीं कर सका कि अपराधी में सुधार की कोई संभावना नहीं है।

फैसले में यह भी कहा गया कि अगर किसी को फांसी दे दी जाती है और बाद में कोई नया प्रमाण सामने आता है, तो उस गलती को सुधारा नहीं जा सकता। इसी कारण अदालत ने मृत्यु दंड को अस्वीकार कर उसे आजीवन कारावास में बदल दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर