आल्हा-ऊदल के शौर्य का प्रतीक कजली मेले का 10 अगस्त से होगा आगाज
महोबा में स्थापित आल्हा ऊदल की प्रतिमा


महोबा, 5 अगस्त (हि.स.)। वीरभूमि के नाम से विख्यात बुंदेलखंड की ऐतिहासिक नगरी महोबा में लगने वाला उत्तर भारत का मशहूर ऐतिहासिक कजली मेला वीर आल्हा-ऊदल के शौर्य, पराक्रम एवं मातृभूमि से प्रेम का प्रतीक है। 843 वर्ष पहले आल्हा ऊदल ने साधु वेश में दिल्ली के नरेश पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में पराजित किया था। तब से कजली मेला हर वर्ष विजयोत्सव के रूप में लगता चला आ रहा है। दस अगस्त से शुरू होने वाले इस मेले में बुंदेलखंड के हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर, जालौन के अलावा मध्य प्रदेश के कई जिलों से हजारों लोग शामिल होंगे।

वीरभूमि का ऐतिहासिक कजली मेला चंदेल राजा परमाल के शासन से जुड़ा है। बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने जानकारी देते हुए बताया कि सन 1182 में राजा परमाल की बेटी चंद्रावल सखियों के साथ भुजरियां विसर्जित करने कीरत सागर जा रही थीं। इसी दौरान दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण कर दिया था। वह बुंदेलखण्ड पर विजय प्राप्त करना चाहते थे। महोबा को चारों ओर से घेर लेने की सूचना कन्नौज में रह रहे आल्हा-ऊदल को मिली। आल्हा-ऊदल चचेरे भाई मलखान के साथ साधु वेश में महोबा पहुंचे।

कीरत सागर तट पर आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज चौहान के बीच भयंकर युद्ध हुआ। चौबीस घंटे चली लड़ाई में विजय प्राप्त होने के बाद राजा परमाल की बेटी चंद्रावलि ने सखियोंं के साथ कीरत सागर में भुजरियां विसर्जित की थीं। इसके बाद पूरे राज्य में जश्न मनाया गया था। तभी से विजयोत्सव के रूप में कजली मेला लगता चला आ रहा है।

नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी अवधेश कुमार ने बताया कि 10 अगस्त को नगर में शोभायात्रा का आयोजन होगा। जिसमें झांकियां आकर्षण का केंद्र रहेंगी। जिसके बाद प्रतिदिन 16 अगस्त तक सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / उपेन्द्र द्विवेदी