हिमाचल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : सरकारी जमीन पर कब्जा अब नहीं होगा वैध, धारा 163-ए के प्रावधानों को किया रद्द
हिमाचल हाईकोर्ट फाइल फोटो


शिमला, 05 अगस्त (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी जमीन पर बढ़ते अवैध कब्जों को लेकर बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए को असंवैधानिक घोषित करते हुए तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है। यह धारा सरकार को सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को जमीन नियमित करने का अधिकार देती थी। कोर्ट ने कहा है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 यानी कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि जो लोग कानून का पालन करते हैं और सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं करते, उन्हें उन लोगों के बराबर नहीं माना जा सकता जो अवैध तरीके से सरकारी भूमि पर काबिज हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसी नीति अवैध कब्जों को बढ़ावा देती है और ईमानदार नागरिकों के साथ अन्याय है। संविधान का अनुच्छेद 14 धोखाधड़ी और अवैधता को संरक्षण नहीं देता और राज्य सरकार की ऐसी कोई भी नीति असंवैधानिक है जो कब्जों को वैध करने की पैरवी करे।

इस मामले की सुनवाई पूनम गुप्ता और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार केस में हुई थी। याचिकाकर्ता ने 23 साल पहले राज्य सरकार द्वारा बनाई गई कब्जा नियमितीकरण नीति की वैधता को चुनौती दी थी। वर्ष 2002 में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कब्जा हटाने की प्रक्रिया जारी रखने को कहा था लेकिन कब्जाधारियों को पट्टा देने से मना कर दिया था। इसके बावजूद प्रदेश सरकारों ने इस नीति को आगे बढ़ाया। वर्ष 2002 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में संशोधन कर धारा 163-ए जोड़ी और सरकारी भूमि पर कब्जा करने वालों से आवेदन मांगे। इस नीति के तहत करीब एक लाख पैंसठ हजार लोगों ने जमीन के नियमितीकरण के लिए आवेदन किए थे। इन्हीं आवेदनों को लेकर हाईकोर्ट में लंबी कानूनी प्रक्रिया चली और अंततः अदालत ने 8 जनवरी 2025 को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे अब सुनाया गया है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि सभी सरकारी जमीनों से अवैध कब्जे हटाए जाएं और यह प्रक्रिया 28 फरवरी 2026 तक पूरी की जाए। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि अवैध कब्जों को हटाने और ढांचे तोड़ने की पूरी लागत कब्जाधारियों से वसूली जाए। साथ ही खाली कराई गई जमीन की तारबंदी और सीमा चिन्हीकरण भी कब्जाधारियों के खर्च पर हो। कब्जे हटाने के बाद उस भूमि पर पर्यावरणीय कार्यों जैसे वनीकरण के लिए कब्जाधारियों से वसूली गई राशि का उपयोग किया जाए।

जहां कब्जे वाली भूमि पर फलदार पौधे हैं, वहां फलों को नीलामी के जरिए बेचा जाएगा और यदि नीलामी संभव न हो तो उन्हें वन्यजीवों के लिए छोड़ दिया जाएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना अनुमति के वन भूमि पर बागवानी गतिविधियां जैसे सेब के बगीचे लगाना, वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 का उल्लंघन है। ऐसे सभी बागानों को हटाकर वहां फिर से वन प्रजातियों के पौधे लगाए जाएं।

हाईकोर्ट ने इस फैसले के अनुपालन के लिए महाधिवक्ता को आदेश दिया है कि इसकी प्रतियां मुख्य सचिव, सभी उपायुक्तों, वन और राजस्व विभाग के अधिकारियों को भेजी जाएं। साथ ही समयसीमा के भीतर अनुपालन रिपोर्ट भी दाखिल की जाए।

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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा