अयोध्या: आस्था का प्रतीक है आस्तीकन मेला
अयोध्या: आस्था का प्रतीक है आस्तीकन मेला


अयोध्या, 3 अगस्त (हि.स.)।

अयोध्या जनपद मुख्यालय से 32 किलोमीटर दक्षिण, इनायतनगर-बीकापुर मार्ग पर स्थित पौराणिक आस्तीक आश्रम में इन दिनों आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। सदियों पुरानी मान्यताओं और लोक विश्वास के साथ जुड़ा आस्तीकन मेला आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं का विश्वास है कि बाबा आस्तीक की पूजा से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और नाग देवता के कोप से मुक्ति मिलती है।

श्रावण मास से रक्षाबंधन तक चलता है मेला

यह मेला श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से आरंभ होकर पूर्णिमा (रक्षाबंधन) तक चलता है। विशेष रूप से दशमी तिथि को यहां बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दराज के जिलों से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस दौरान आश्रम परिसर में श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत वातावरण रहता है।

'बरौआ' की अनोखी परंपरा

आस्तीक आश्रम की खासियत है 'बरौआ' की परंपरा, जो अष्टमी तिथि से दशमी तक 24 गांवों में मनाई जाती है। इस दौरान इन गांवों में महिलाएं जांता-कांड़ी (चक्की) नहीं चलातीं और पुरुष हल, कुदाल या ट्रैक्टर का उपयोग नहीं करते। लोक मान्यता है कि इस नियम का उल्लंघन करने पर बाबा आस्तीक नाराज होकर नाग का रूप धारण कर दंड देते हैं।

पुजारी पर होती है बाबा की सवारी

नाग पंचमी और दशमी के दिन बाबा आस्तीक की सवारी उनके पुजारी पर होती है। परंपरा के अनुसार पुजारी अपने गांव बीरबल पुरवा से पूजा-अर्चना करने के बाद खेतों के रास्ते दौड़ते हुए आश्रम तक आते हैं और मंदिर के सामने स्थित तालाब में कूदकर स्नान करते हैं। स्नान के उपरांत बाबा आस्तीक ऋषि की विशेष पूजा की जाती है। इस अवसर पर मंत्रोचार करते पुरोहितों की आवाज़ और श्रद्धालुओं के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठता है।

पौराणिक कथा से जुड़ा है आस्तीक आश्रम

श्रीमद्भागवत और महाभारत दोनों में ही ऋषि आस्तीक का उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार, महाराज परीक्षित की मृत्यु सर्पदंश से होने पर उनके पुत्र जनमेजय ने सर्पों के विनाश के लिए सर्पसत्र यज्ञ किया। यज्ञ में सभी सर्प भस्म हो रहे थे, तब तक्षक नाग देवराज इंद्र के सिंहासन से लिपट गया। जब मंत्रोचार से तक्षक को भी यज्ञ में खींचा जाने लगा, तब इंद्रासन हिल उठा। देवताओं के निवेदन पर ऋषि आस्तीक ने तक्षक को क्षमा प्रदान की। तभी से यह मान्यता चली कि आस्तीक मुनि की पूजा से नागों के क्रोध से मुक्ति मिलती है।

सांप के काटने पर भी पहुंचते हैं श्रद्धालु

क्षेत्रीय मान्यता है कि सांप के काटने की स्थिति में भी लोग आश्रम आकर बाबा आस्तीक से प्रार्थना करते हैं। श्रद्धालु यहां से मंत्र फूंकी सरसों लेकर जाते हैं और घर में बिखेरते हैं। विश्वास है कि इससे घर में सांप-बिच्छू नहीं आते।

आज लगा बड़ा मेला

रविवार को दशमी तिथि पर आस्तीक आश्रम में बड़ा मेला आयोजित हुआ। मेले में प्रदेश के दर्जनों जिलों से आए मिठाई, लकड़ी, वर्तन, साज-सज्जा के सामान की दुकानें सज चुकी हैं। साथ ही सर्कस, मौत का कुआं, गगनचुंबी झूले जैसे आकर्षण भी लोगों को लुभा रहे हैं। आस्था, लोक परंपरा और पौराणिक इतिहास के अनूठे संगम के कारण आस्तीकन मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सांस्कृतिक विरासत का भी जीवंत प्रतीक है।

हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय