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जगदलपुर, 27 अगस्त (हि.स.)। बस्तर में श्रीगणेश पूजा की परंपरा हजारों साल पुराना है। बारसूर का श्रीगणेश मंदिर ऐतिहासिक है, यहां सबसे बड़ी प्रतिमा होने के साथ ही श्रीगणेश की जुडवा प्रतिमा केवल यही है । दुनिया के एकलौते ऐसे मंदिर बारसूर जहां श्रीगणेशजी की जुड़वां प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह मंदिर बारसूर में स्थित है। बालू पत्थरों से निर्मित गणेश की दो विशालकाय प्रतिमाएं हैं, बड़ी मूर्ति लगभग साढ़े सात फीट की है और छोटी की ऊंचाई साढ़े पांच फीट है। एक ही मंदिर में श्रीगणेश की दो मूर्तियों का होना विलक्षण है। माना जाता है कि यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी श्रीगणेश प्रतिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर को यहां के राजा ने अपनी बेटी के लिए बाणासुर ने बनवाया था।
दंतेवाडा जिले के ढोलकस की पहाडिय़ों तीन हजार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थापित 6 फीट की श्रीगणेश की मूर्ति अकल्पनीय है, श्रीगणेशजी की यह प्रतिमा सैकड़ों साल पुरानी है। इस अद्भुत प्रतिमा को नागवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित किया गया था। गणपति जी की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए है। वहीं मूर्ति के नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए है। पुरात्वविदों का कहना है कि, ऐसी प्रतिमा पूरे बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं देखी गई है। इसी प्रकार इन्द्रावती नदी के किनारे छिन्दगांव शिवालय के बाहर बारहवीं शताब्दी की एक गणेश प्रतिमा स्थापित है। वहीं भोरमदेवगुड़ी (बीजापुर) में श्रीगणेशजी की विशाल मूर्ति किरीट मुकुट धारण किए हुए हैं।
चित्रकोट रोड में बड़ांजी से छह किलोमीटर अन्दर इन्द्रावती नदी के किनारे छिन्दगांव है। इस गांव में एक प्राचीन शिव मन्दिर है, जो छिंदक नागवंशियों के शासनकाल में निर्मित हुआ था। यह पूर्वाभीमुख मन्दिर 5 फीट ऊंची जगह पर निर्मित है। मंदिर के बाहर एक श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित है। मन्दिर छिन्दक नागवंशियों के शासनकाल में 12 वीं सदी में निर्मित माना जाता है।
श्रीगणेशजी की एकदंत के हाेने के कारण काे जानना आवश्यक है।पाैराणिक मान्यता है कि भगवान परशुराम ने महादेव की तपस्या करके शक्तियां प्राप्त की थीं, और उन्हें धन्यवाद देने के लिए कैलाश पर्वत जा रहे थे। इस दाैरान श्रीगणेश ने कैलाश का रास्ता रोका, जिसके बाद भगवान परशुराम और गणपति बप्पा के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान, परशुराम के फरसे से श्रीगणेशजी का एक दांत टूट गया, इस घटना के बाद ही भगवान श्रीगणेशजी को 'एकदंत' के नाम से जाना जाने लगा।
बस्तर के इतिहास संस्कृति एवं परंपरा के जानकार रूद्र नारायण पानीग्राही ने बताया कि, बस्तर में नाग और नलवंशी राजाओं के काल से श्रीगणेश पूजा का इतिहास है। उन्होंने कहा कि पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ढोलकस शिखर पर स्थापित दुर्लभ श्रीगणेश प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। इससे पता चलता है कि बस्तर संभाग में श्रीगणेश पूजा का इतिहास बहुत प्राचीन है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे