गाँव के बच्चों ने सड़क पर पड़े गोबर से बनाई ऊर्जा, सस्ते और पोर्टेबल बायोगैस प्लांट से उबाला आलू
उरई, 25 अगस्त (हि.स.)। विज्ञान में नवाचार की एक अनूठी मिसाल पेश करते हुए ग्राम पंचायत मलकपुरा के स्कूली बच्चों ने एक सस्ता, पोर्टेबल और कारगर बायोगैस प्लांट विकसित किया है। इस प्लांट में भरे गए गोबर से अब ज्वलनशील गैस निकलने लगी है, जिसका इस्तेमाल कर
गैस गोबर प्लांट


उरई, 25 अगस्त (हि.स.)। विज्ञान में नवाचार की एक अनूठी मिसाल पेश करते हुए ग्राम पंचायत मलकपुरा के स्कूली बच्चों ने एक सस्ता, पोर्टेबल और कारगर बायोगैस प्लांट विकसित किया है। इस प्लांट में भरे गए गोबर से अब ज्वलनशील गैस निकलने लगी है, जिसका इस्तेमाल करके बच्चों ने पहली बार आलू उबालकर अपने प्रोजेक्ट की सफलता साबित कर दी है।

इस प्रोजेक्ट को बनाने के पीछे का उद्देश्य गाँवों में बिखरे पड़े गोबर के उपयोग को बढ़ावा देना है। गाँवों में गोबर की कोई कमी नहीं है, लेकिन पारंपरिक बायोगैस प्लांट्स की ऊँची लागत, बनाने में आने वाली मुश्किलें और सफलता की अनिश्चितता के चलते उनका चलन लगभग खत्म हो गया है। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए उच्चतर प्राथमिक विद्यालय मलकपुरा के कक्षा 7 और 8 के छात्र-छात्राओं ने एक नया मॉडल तैयार किया। यह प्लांट पारंपरिक संयंत्रों के मुकाबले लगभग आधी लागत में तैयार हुआ है और इसकी सफलता की दर पूरी है।

यह प्लास्टिक के टैंक से बना है, जिसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। पारंपरिक सीमेंट-कंक्रीट के प्लांट्स की तुलना में इसकी लागत काफी कम है। इसे बनाने के लिए विशेष मिस्त्रियों की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे इसका रख-रखाव और निर्माण सरल है। लगभग 2 क्यूबिक मीटर क्षमता वाले इस प्लांट में 28 जून को पहली बार गोबर भरा गया था। कुछ दिनों के भीतर ही इसमें से ज्वलनशील मीथेन गैस निकलने लगी। इस गैस का इस्तेमाल करते हुए बच्चों ने एक विशेष चूल्हे पर आलू उबाले, जिसमें महज 7 मिनट का समय लगा।

इस प्रोजेक्ट की सफलता पूरे समुदाय के सहयोग का नतीजा है। प्लांट के लिए जरूरी टैंक पंचायत सचिव जितेंद्र पटेल ने उपलब्ध कराया, जबकि विशेष चूल्हा ग्राम कैथी की उमा वर्मा ने दिया। प्रोजेक्ट में भाग लेने वाले बच्चों ने भी अपने पैसे जोड़कर इसमें योगदान दिया।

तकनीकी मार्गदर्शन के लिए जनपद में नेडा के परियोजना अधिकारी राकेश पाण्डेय, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक सीताराम मीणा और आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर डॉ. सुनील ने बच्चों की मदद की।

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हिन्दुस्थान समाचार / विशाल कुमार वर्मा