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जयपुर, 25 अगस्त (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग के 41 साल पुराने उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके तहत याचिकाकर्ता की कांस्टेबल पद से सेवाएं समाप्त कर दी गई थी। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्त परिलाभ के लिए उसकी सेवानिवृत्ति की उम्र तक सेवा में मानने को कहा है। जस्टिस आनंद शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश रमेश की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने और बाद में उसकी अपील खारिज करने के दौरान निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। वहीं समान मामले में वह अदालत से बरी भी हो गया। ऐसे में उसका बर्खास्तगी आदेश और अपीलीय अधिकारी का आदेश रद्द किया जाता है।
याचिका में अधिवक्ता संदीप भगवती ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता साल 1979 में कांस्टेबल नियुक्त हुआ था। वहीं विभाग में उसके खिलाफ शिकायत दी गई कि उसका वास्तविक नाम मोहन लाल है और उसने अपने भाई रमेश के दस्तावेजों से नौकरी हासिल की है। इस शिकायत पर विभाग ने जनवरी, 1984 में उसे निलंबित और बाद में जून माह में बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ पेश विभागीय अपील भी नवंबर, 1984 में खारिज कर दी गई। याचिका में कहा गया कि उसे 17 सीसीए के तहत छोटा दंड देने के बजाए बर्खास्तगी जैसा बडा दंड दिया गया। इस दौरान उसे सुनवाई का भी पूर्ण अवसर नहीं दिया गया। इसके अलावा समान आरोप में उसके खिलाफ आपराधिक मामला भी चला। जिस पर सुनवाई करते हुए 31 मार्च, 2000 को कोर्ट ने उसे बरी कर दिया। इसके बाद उसने साल 2002 में यह याचिका दायर की। इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता ने करीब 18 साल की देरी से याचिका दायर की है। विभागीय अपील के आदेश को तत्काल चुनौती नहीं दी गई। ऐसे में देरी के आधार पर याचिका को खारिज किया जाए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने और विभागीय अपीलीय आदेश को रद्द करते हुए उसे सेवानिवृत्ति की उम्र तक सेवा में मानने को कहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक