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जयपुर, 12 अगस्त (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने एमबीबीएस पाठ्यक्रम के बीच छात्रा की दुर्घटना में देखने के सौ फीसदी क्षमता समाप्त होने के मामले में दिव्यांगजन आयुक्त और नेत्र विशेषज्ञ को शामिल करते हुए एम्स दिल्ली, की कमेटी गठित करने को कहा है। अदालत ने कहा कि यह कमेटी देखे की याचिकाकर्ता अपनी शेष पढाई कैसे पूरी कर सकती है। वहीं यदि कमेटी की रिपोर्ट याचिकाकर्ता के पक्ष में आती है तो उसे एमबीबीएस पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश अंकिता सिंगोदिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि यह आदेश विशेष परिस्थितियों में दिया गया है। ऐसे में यह 40 फीसदी से अधिक दिव्यांग अन्य उम्मीदवारों के लिए मिसाल नहीं बनेगा। अदालत ने याचिकाकर्ता की दृढ़ता और समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि पूरी तरह से दिव्यांग होने के बाद भी वह एमबीबीएस करना चाहती है, जबकि वह शपथ पत्र पेश कर कह चुकी है कि डिग्री लेने के बाद वह चिकित्सक के रूप में काम नहीं करेगी।
याचिका में अधिवक्ता एसपी शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता ने अगस्त, 2014 में एमबीबीएस में प्रवेश लिया था। वहीं दो साल अध्ययन करने के बाद अप्रैल, 2017 में सड़क दुर्घटना में उसके सिर में फ्रैक्चर हो गया और उसकी सौ फीसदी दृष्टि चली गई। इसके बाद जून, 2020 में एक मेडिकल बोर्ड ने उसे पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति देने की सिफारिश की, लेकिन दूसरे बोर्ड ने विपरीत राय देते हुए कहा कि वह चिकित्सक का कर्तव्य प्रभावी ढंग से नहीं निभा पाएगी। इसके चलते जनवरी, 2021 में उसे पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया कि वह सहयोगी के जरिए अपना पाठ्यक्रम पूरा करना चाहती है। ऐसे कई चिकित्सक हैं, जो पूर्ण दिव्यांग होने के बाद भी इस पेशे में हैं। वहीं वह पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद बतौर चिकित्सक काम भी नहीं करेगी, लेकिन वह यह कोर्स पूरा करना चाहती है। दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि चालीस फीसदी से अधिक दिव्यांग अभ्यर्थी का एमबीबीएस में प्रवेश नहीं हो सकता। इसके अलावा एमबीबीएस कोर्स में सर्जरी और प्रैक्टिकल प्रशिक्षण जरूरी है, लेकिन पूर्ण रूप से दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है।
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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक