सेवानिवृत्ति के बाद भी शुरू की जा सकती है विभागीय कार्यवाही
मथुरा में ओवरहेड टैंक हादसे में आरोपी सेवानिवृत अधीक्षण अभियंता को राहत देने से इनकार प्रयागराज, 11 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है। न
सेवानिवृत्ति के बाद भी शुरू की जा सकती है विभागीय कार्यवाही


मथुरा में ओवरहेड टैंक हादसे में आरोपी सेवानिवृत अधीक्षण अभियंता को राहत देने से इनकार

प्रयागराज, 11 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है। न्यायालय ने मथुरा में ओवरहेड टैंक के गिरने से दो महिलाओं की मौत और 11 लोगों के घायल होने के मामले में सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता को राहत देने से इन्कार कर दिया है।

सेवानिवृत्त अभियंता ने सेवानिवृत्ति के बाद उनके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही और आरोप पत्र को चुनौती दी थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने योगेश कुमार शर्मा की याचिका पर दिया।

मथुरा के कृष्ण बिहार कॉलोनी में 30 जुन 2024 को ओवरहेड टैंक गिरा था। इस हादसे में दो महिलाओं की मौत हो गई और 11 लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद एक चार सदस्यीय समिति ने जांच की और 24 जुलाई 2024 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में पाया गया कि याची के सात अक्तूबर 2020 से 8 जून 2022 तक के कार्यकाल के दौरान टैंक का लगभग 45 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा हुआ था। इस आधार पर 30 अप्रैल 2023 को सेवानिवृत्त हुए याची के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई। याची पर यूपी सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है। उन पर कार्यों का सही ढंग से गुणवत्ता परक कार्य न कराने और लापरवाही बरतने का आरोप है। याची ने आरोप पत्र और अनुशासनात्मक कार्यवाही को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि सेवानिवृत्ति के बाद जांच शुरू करने के लिए राज्यपाल की अनुमति आवश्यक है जबकि ऐसा नहीं किया गया। यह भी कहा गया कि याची के कार्यकाल के दौरान सिर्फ 25 प्रतिशत कार्य ही हुआ था। वहीं, जल निगम के वकील का कहना था कि नियमावली में राज्यपाल या राज्य सरकार के स्थान पर निगम या निदेशक मंडल को कार्यवाही के लिए प्रतिस्थापित किया गया है।

उच्च न्यायालय ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि कार्य के प्रतिशत के विवाद का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि अंतिम निर्माण कार्य याची के कार्यकाल में पूरा हुआ था। उनके पास मानक की जांच करने का अवसर था। इसके बाद वह ऐसा करने में विफल रहे। कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यवाही के लिए निदेशक मंडल ही सक्षम प्राधिकारी है। कोर्ट ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद याची के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे