Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
उच्च न्यायालय की महिला वकील ने अपने पूर्व आईपीएस पिता के यूपी पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी को सही ठहराने के आदेश को चुनौती दी
प्रयागराज,10 अगस्त (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विभागीय जांच अधिकारी द्वारा पुलिस कांस्टेबल को दोषी करार देते हुए दंड की संस्तुति कर दी थी। इस संस्तुति के आधार पर सिपाही को अनुशासनिक अधिकारी ने कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया था। बर्खास्तगी को सिपाही तौसीफ़ ने अपील में पूर्व आई जी रहे राकेश सिंह के समक्ष चुनौती दी, परन्तु उसे वहां से भी सफलता नहीं मिली।
पूर्व आई जी की वकील बेटी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सिपाही के बर्खास्तगी को इस आधार पर चुनौती दी कि जांच अधिकारी ने जांच कर दंड की संस्तुति कर कानूनी गलती की है। उसे दंड की संस्तुति करने का अधिकार नहीं है। उच्च न्यायालय ने दंड आदेश में खामियां पाईं, फैसला सुनाया कि प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था और बरेली पुलिस कांस्टेबल तौफीक अहमद को बहाल करने का आदेश दिया।
मामले के अनुसार कांस्टेबल तौफीक अहमद पर 2023 में छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था, लेकिन निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया था। पूर्व आई जी राकेश की बेटी अनुरा सिंह अहमद की वकील बनीं, उन्होंने बर्खास्तगी में हुई प्रक्रियागत खामियों का हवाला दिया।
जनवरी 2023 में, त्रिवेणी एक्सप्रेस में यात्रा कर रही एक 17 वर्षीय लड़की ने कांस्टेबल तौफीक अहमद पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। लड़की के पिता की शिकायत पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, निचली अदालत ने बाद में अहमद को बरी कर दिया, लेकिन पुलिस विभाग ने उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया।
बर्खास्तगी के खिलाफ अहमद की अपील को तत्कालीन बरेली रेंज के आईजी राकेश सिंह ने खारिज कर दिया था। इसे चुनौती देते हुए, याची सिपाही ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
उच्च न्यायालय में अनुरा ने तर्क दिया कि विभागीय जांच और बर्खास्तगी आदेश त्रुटिपूर्ण थे और कानूनी आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं थे। कार्यवाही के दौरान, उनके पिता, जिन्होंने बर्खास्तगी आदेश सही होने की पुष्टि की थी, वह सही नहीं था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अंततः विभागीय कार्यवाही को रद्द कर दिया और बरेली पुलिस को अहमद को बहाल करने का आदेश दिया। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश में खामी के चलते बहाली का आदेश दिया था, इस कारण न्यायालय ने विभागीय अनुशासनिक अधिकारी को कहा है कि यदि वो चाहे तो पुनः जांच अधिकारी नियुक्त कर तीन माह में प्रक्रिया पूरी करें। यह आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने पारित किया है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे