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मुंबई,10 अगस्त ( हि.स.) । गणेशोत्सव केवल भक्ति का ही उत्सव नहीं है, बल्कि संस्कृति, परंपरा और प्रकृति के साथ संबंधों का भी प्रतीक है। हालाँकि, प्लास्टर ऑफ पेरिस, थर्मोकोल और रासायनिक रंगों के अत्यधिक उपयोग के कारण, यह त्योहार प्रदूषण से प्रभावित होने लगा है। इसी पृष्ठभूमि में, ठाणे के रामामारुति रोड स्थित कैलाश देसाले परिवार ने बप्पा के स्वागत के लिए पर्यावरण-अनुकूल आरा बनाने की पहल की है।
शिव समर्थ विद्यालय के पास स्थित उनकी कार्यशाला में पिछले कई वर्षों से गणपति माखर बनाए जा रहे हैं। कैलाश देसाले की पत्नी मनीषा और बेटे भाग्य और यश भी इस काम में उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। कटाई से लेकर फिटिंग तक, कढ़ाई से लेकर रंग-सज्जा तक - पूरा परिवार मिलकर कलात्मक रूप से माखर बनाता है।
भाग्य, एक चित्रकार, विभिन्न आकृतियाँ बनाते हैं, जबकि बाँसुरी वादक यश कलात्मक रूप से मंडप सजाते हैं। मराठी और हिंदी फिल्मों में सहायक कला निर्देशक के रूप में कैलास देसले का अनुभव मखारा के निर्माण में साफ़ दिखाई देता है।
इस वर्ष की सजावट का मुख्य आकर्षण बाँस की चटाई है। बाँस एक प्राकृतिक, टिकाऊ और तेज़ी से बढ़ने वाली सामग्री है, इसलिए इसे पर्यावरण-अनुकूल सजावट के लिए आदर्श माना जाता है। बाँस की चटाई पर रंग-रोगन, कढ़ाई, पत्ते, फूल और मिट्टी के दीये लगाकर मंदिर को आकार दिया गया है। पौराणिक छत्र, झूमर, कोंकण के किसी मंदिर की झलक, कपड़े के पर्दे और लकड़ी की पट्टियों से सजा सिंहासन - इन सबने आरा को और भी सुंदर बना दिया है।
कैलास देसले कहते हैं, त्योहार मनाते समय प्रकृति के प्रति जागरूक रहना ही सच्ची संस्कृति है। यह आरा सिर्फ़ सजावट नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए एक संदेश है।
बाजार में जहाँ थर्मोकोल और रासायनिक रंगों की धूम है, वहीं 'देसाले' परिवार द्वारा बाँस की चटाई से बनाया गया यह बप्पा दरबार पर्यावरण-अनुकूल गणेशोत्सव का एक सच्चा उदाहरण है।
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हिन्दुस्थान समाचार / रवीन्द्र शर्मा