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जयपुर, 30 जुलाई (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं पाथेय कण पत्रिका के संरक्षक माणकचंद (भाईजी) का बुधवार को एसएमएस अस्पताल में निधन हो गया। वे 83 वर्ष के थे एवं विगत एक माह से किडनी की बीमारी का इलाज ले रहे थे। बुधवार शाम को झालाना मोक्षधाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार में माणकचंद्र के छोटे भाई कमल चरखा समेत अनेक गणमान्य बंधु शामिल हुए। इससे पूर्व पाथेय भवन में उनकी देह अंतिम दर्शन के लिए रखी गई, जहां राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, शिक्षा मंत्री मदन दिलावर और उद्योग मंत्री राज्यवर्धनसिंह राठौड़ समेत अनेक गणमान्य लोगों ने अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उनके निधन से संघ परिवार, पाथेय परिवार एवं राष्ट्रवादी पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उनका तपस्वी जीवन और कार्यों की प्रेरणा सदैव स्मरणीय रहेगी।
स्थित प्रज्ञ थे, जीया तपस्वी जीवन: माणकचंद ने अपना सम्पूर्ण जीवन संघ कार्य को समर्पित करते हुए प्रचारक जीवन की कठिन साधना की। माणकचंद का जन्म 2 नवम्बर 1942 को नागौर जिले के कसारी-बड़ा गांव में हुआ था। 1966 में वे पूर्णकालिक प्रचारक बने और छह दशक तक राजस्थान सहित विभिन्न स्थानों पर संगठनात्मक, बौद्धिक एवं वैचारिक कार्य में संलग्न रहे।
वे पाथेय कण पत्रिका के प्रबंध संपादक के रूप में 34 वर्षों तक सक्रिय रहे। उन्होंने 1989 से पाथेय कण में प्रबंध संपादक की भूमिका निभाई और वैचारिक पत्रकारिता को नई दिशा दी। उनके संपादकीय नेतृत्व में यह पत्रिका भारतीय विचारधारा की मुखर और प्रतिष्ठित आवाज बनी। आपातकाल के कालखंड में उन्होंने जेल यात्रा भी की और वैचारिक प्रतिबद्धता से कभी विचलित नहीं हुए। संघ के प्रति उनका समर्पण, अनुशासन, संयम, सादगी और संतुलित दृष्टिकोण ने नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है। पाथेय कण के माध्यम से उन्होंने राष्ट्र निर्माण हेतु वैचारिक चेतना का दीप प्रज्वलित किया, जो दीर्घकाल तक स्मरणीय रहेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर