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बलरामपुर, 24 जुलाई (हि.स.)। कन्हर और सिन्दूर नदी का संगम इन दिनों एक अलग ही मनमोहक दृश्य प्रस्तुत कर रहा है। आते जाते लोग ठहर कर इस दृश्य को देखने लग जाते हैं। तेज बारिश के कारण दोनों नदिया बलरामपुर में मिलती है। यहां का नजारा देखने लायक होता है।
उल्लेखनीय है कि, कन्हर नदी उत्तर सरगुजा की सबसे बड़ी नदी है। जो जशपुर जिले के एक पठार से निकलती है और अंततः उत्तर प्रदेश में बहने वाले सोन नदी में मिल जाती है। कन्हर नदी सोन नदी के प्रमुख सहायक नदियों में गिनी जाती है। ठीक इसी प्रकार सिन्दूर नदी भी कन्हर नदी की एक सहायक नदी है। सिंदूर नदी में कन्हर की तरह बारहमासी नदी हैं। कन्हर और सिंदूर दोनो ही नदी बलरामपुर जिले की जीवन रेखा मानी जाती हैं। इनके तट पर ही प्रायः पर्व त्यौहार तथा अन्य बड़े उत्सव संपन्न होते हैं। कन्हर नदी तो छत्तीसगढ़ तथा झारखंड की सीमा रेखा ही निर्धारित करती है जो अंत तक बनी रहती है। कन्हर नदी अपनी अन्य सहायक नदियों के साथ पश्चिम की ओर बहती हुई जहाँ पूरी तरह उत्तराभिमुख होती है वहां यह उत्तरप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ तीनों की सीमा रेखा बन जाती है।
अपने उद्गम से लेकर संगम तक कुछ स्थानों को छोड़ दें तो कन्हर नदी प्रायः आबादियों के बीच होकर ही बहती है। इसके दोनों तटों पर नगर और ग्राम बसे हुए है। उत्तर प्रदेश के आखिरी पूर्वी छोर पर अमवार नामक गांव में तो इस पर एक विशाल बांध का निर्माण उ.प्र. सरकार द्वारा किया गया है। इस पानी का उपयोग ताप विद्युत परियोजना के लिए किया जा रहा है। इस बांध के निर्माण से बलरामपुर जिले के पश्चिमी क्षेत्र के अनेक गांव भी प्रभावित हुए और लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। हालांकि सरकार ने विस्थापितों को भरपूर मुआवजा नियमानुसार दिया है। फिर भी विस्थापन का दर्द ती होता ही है। बहरहाल बरसात के इन दिनों में कन्हर और सिंदूर के मिलन का दृश्य देखने लायक होता है।
छत्तीसगढ़ का आखिरी उत्तरी नगर रामानुजगंज को स्पर्श करती कन्हर नदी जैसे ही पश्चिम की ओर आगे बढ़ती है मात्र कुछ किलोमीटर की दूरी पर इससे मिलने को बेताब सिंदूर नदी से इसका मिलन हो जाता है। दीनों नदियों के मिलने का यह दृश्य देखने लायक होता है। खासकर बरसात में कन्हर नदी का बैग सिंदूर नदी से कई गुना तेज होता है। ऐसे में जब बाड़ का पानी कनार में अपने पूरे उफान पर होता है तो संगम स्थल पर सिंदूर का पानी कन्हर नदी के उतरने तक लगभग हरसा जाता है। कहना चाहिए कि कन्हर में पूरी तरह समाहित होने के लिए तब सिंदूर नदी को देर तक इन्तजार करना होता है।
हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय