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उदयपुर, 4 जून (हि.स.)। प्रसिद्ध चिंतक व विचारक, भारतीय जनसंघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा प्रदत्त एकात्म मानवदर्शन के साठ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में दो दिवसीय दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानवदर्शन - हीरक जयंती समारोह का आगाज उदयपुर भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सभागार में हुआ।
हीरक जयन्ती समारोह के उद्घाटन और प्रथम सत्र में राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि पंडित जी के दृष्टिकोण में राष्ट्र भौगोलिक सीमाओं से परे एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इकाई के रूप में देखने की आवश्यकता है। देवनानी ने कहा कि पंडित जी के लिए राष्ट्र निर्माण का आधार केवल सीमाएं नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना, स्वदेशी दृष्टिकोण और अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के कल्याण में निहित है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति समारोह समिति जयपुर, भूपाल नोबल्स संस्थान व राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में देवनानी ने कहा कि पंडितजी राजनीति में संयम, त्याग और नैतिकता के प्रबल पक्षधर थे और अंत्योदय को स्वतंत्र भारत की आत्मा मानते थे।
देवनानी ने कहा कि वर्तमान में राजनीति के स्तर में भी गिरावट आई है इसके लिए समाज का बदलता स्वरूप जिम्मेदार है समाज का स्वरूप ही जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर प्रतिबिम्बित होता है। स्वस्थ्य समाज और स्वस्थ्य सामाजिक परम्पराएं चहुओर स्वस्थ वातावरण तैयार करने का कार्य कर सकती है। प्रथम तकनीकी सत्र में एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष एवं मुख्य वक्ता प्रो. महेश चंद्र शर्मा ने ‘राजनीतिज्ञ पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ विषय पर विचार रखते हुए कहा कि पंडित जी राजनीति में रहते हुए भी उससे अलिप्त भाव बनाए रखने के पक्षधर थे। वे विचारों की प्रतिस्पर्धा के बाद भी समभाव और सहयोग की संस्कृति में विश्वास रखते थे।
स्वागत उद्बोधन में विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने पं. उपाध्याय के विचारों की वर्तमान परिदृश्य में प्रांसगिकता और आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि राष्ट्र का निर्माण सीमाओं से नहीं, बल्कि संबंधों, संवेदना और समर्पण से होता है।
हीरक जयन्ती समारोह कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए प्रो. मोहनलाल छीपा ने कहा कि पंडित जी की विचारधारा आज की चुनौतियों के समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। उन्होंने आह्वान किया कि दीनदयाल भाव केवल पुस्तक तक सीमित न रहकर प्रत्येक नागरिक के विचार और आचरण में समाहित हो। पहले दिन राजनीतिज्ञ पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पत्रकार और साहित्यकार के रूप में पंडित जी विषय पर डॉ. एस. एस. उपाध्याय, डॉ. इन्दूशेखर तत्पुरूष, गोपाल शर्मा ने, संस्थान एवं गैर-सरकारी संगठनों में दीनदयाल दर्शन की भूमिका पर अतुल जैन , प्रो मोहन लाल छीपा, दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के निदेशक प्रो. के. के. सिंह प्रो. महेन्द्र सिंह आगरिया, प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह रूपाखेड़ी ने विचार व्यक्त किए।
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हिन्दुस्थान समाचार / संदीप