आगरा -भालूओं कों ठिठुरन से बचाने की कवायद शुरू
आगरा, 8 दिसंबर (हि.स.)। आगरा में वाइल्डलाइफ एसओएस एवं वन विभाग के संयुक्त देखरेख में भालू संरक्षण एवं पुनर्वास केंद्र संचालित है। शीतकालीन ऋतु के चलते इस केंद्र में रह रहे भालुओं की तीमारदारी और मौसम अनरूप उनके संरक्षण के लिए कई इंतजाम प्रारंभ कर
भालू संरक्षण एवं पुनर्वास केंद्र


भालू संरक्षण आगरा


आगरा, 8 दिसंबर (हि.स.)।

आगरा में वाइल्डलाइफ एसओएस एवं वन विभाग के संयुक्त देखरेख में भालू संरक्षण एवं पुनर्वास केंद्र संचालित है। शीतकालीन ऋतु के चलते इस केंद्र में रह रहे भालुओं की तीमारदारी और मौसम अनरूप उनके संरक्षण के लिए कई इंतजाम प्रारंभ कर दिए गए हैं।

वाइल्डलाइफ एसओएस के मीडिया प्रभारी श्रेष्ठ पचौरी ने बताया कि शीतकालीन ऋतु प्रारंभ हो चुकी है और तापमान में निरंतर गिरावट हो रही है इसको देखते हुए संरक्षण गृह में भालुओं की सुविधाओं और भोजन में भी बदलाव किया गया है अब भालुओं को केंद्र की तरफ से अधिक प्रोटीन युक्त स्वास्थ्यवर्धक भोजन को और बढ़ाया गया है जिसमें गर्म दलिया, चिकन सूप और बॉयल्ड एग और कुछ अन्य खाद्य पदार्थ शामिल किए गए हैं। वृद्ध, बीमार और आर्थिराइटिस से पीड़ित भालूओं के लिए सुरक्षा के साथ हीटर की भी व्यवस्था की गयी है।उनको दिन के समय धूप में अधिक समय बिताने के लिए प्रेरित किया जाता है।

गौरतलब है कि इसकी शुरुआत आगरा में 1999 में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी, वर्ष 2002 में इस केंद्र को पहला भालू सौंपा गया था। तब से लेकर अब तक भालुओं के संरक्षण एवं उनके पुनर्वास के लिए कई प्रयास किए गए हैं। वर्तमान में इस केंद्र में 88 भालू सुरक्षित हैं।

स्लॉथ नस्ल भालुओं के संरक्षण का सबसे बड़ा केंद्र

श्रेष्ठ पचौरी ने बताया कि विश्व में भालू की लगभग 8 नस्लेँ पाई जाती है जिनमें स्लाथ नस्ल के 90% भालू भारत में निवास करते हैं।आगरा के कीठम भालू संरक्षण गृह में इन दिनों स्लाथ 88 भालू रह रहे हैं जिनमे 39 नर और 49 मादा हैं। इन भालुओं को देश के कोने-कोने से रेस्क्यू किया गया है।स्लाथ भालू दुनिया भर में पाई जाने वाली आठ भालू की प्रजातियों में से एक है।इनकी पहचान इनके लंबे, झबरा गहरे भूरे या काले बाल, चार इंच लंबे नाखून से होती है, नाखूंनो का उपयोग वह टीले से दीमक और चींटियों को बाहर निकालने के लिए करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में वे तटीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट और हिमालय बेस तक फैले हुए हैं।

कलंदरों और मादारियों से मुक्त कराए गए अधिकांश भालू :-

पचौरी ने बताया कि वाइल्डलाइफ एसओएस ने 628 से अधिक करतब दिखाने वाले भालुओं को बचाया है और उनका पुनर्वास किया है। जिन्हें वाइल्ड लाइफ एसओएस के आगरा, भोपाल, पश्चिम बंगाल और बंगलुरू के केंद्रों पर संरक्षण और पुनर्वास हेतु भेजा गया है गया । भारत के जंगलों में छह से करीब 10 हजार स्लाथ भालू ही बचे हैं। पिछले 30 वर्षों में इनकी संख्या में करीब 50% की कमी आई है इसलिए इनके संरक्षण के लिए यह केंद्र स्थापित किए गए।

केंद्र पर पिछले 24 वर्षों में नहीं जन्मा कोई भालू का बच्चा:-

वर्ष 1999 में प्रारंभ हुए भालू संरक्षण एवं पुनर्वास केंद्र में वर्ष 2002 में पहला भालू संरक्षण हेतु आया था।तब से संरक्षण गृह में पिछले 24 सालों भालू की बिरादरी में एक भी नन्हे भालू ने जन्म नहीं लिया,जबकि यहां 39 नर और 49 मादा भालू हैं।

भालुओं का प्रजनन न होने की वजह

इसकी वजह बताते हुए वाइल्डलाइफ एसओएस के डायरेक्टर डा0 बैजू ने बताया कि इसकी वजह

वे कलंदर और मदारी है जिनके कब्जे में यह भालू करतब दिखाते थे। कलंदरों से मुक्त कराए गए इन भालुओं की नसबंदी पहले कलंदरों ने ही कर दी थी। जिससे वे प्रजनन काल में उत्तेजित न हों। कलंदर इन भालुओं को जंगलों से चुराकर लाते थे। भालू प्रजनन काल में ज्यादा उत्तेजित हो जाते हैं, फिर उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। इसी वजह से वाइल्ड लाइफ एसओएस के डायरेक्टर बैजू राम का कहना है कि यह संरक्षण गृह है। प्रजनन केंद्र नहीं, यहां मादा और नर भालू को अलग-अलग रखा जाता है। प्रजनन केंद्र के लिए सरकार से अनुमति चाहिए होती हैं, नियम होते हैं, प्रक्रिया होती है। इस बारे में अभी विचार नहीं है। यहां कुछ भालू ऐसे भी हैं, जिन्हें बचपन में रेस्क्यू कर लिया गया था। इस वजह से उनकी नसबंदी नहीं हो पाई थी। प्रजनन काल में ऐसे भालुओं को अलग रखा जाता है।

वन्य जीव अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित है भालू

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में इस प्रजाति को अनुसूची के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जो इन्हें बाघ, गैंडे और हाथियों के समान सुरक्षा प्रदान करता है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / Vivek Upadhyay