बेहतर जल प्रबंधन से बढेगी रबी फसलो की पैदावार:डा.अंशु गंगवार
पूर्वी चंपारण,02 दिसंबर (हि.स.)।ससमय व बेहतर जल प्रबंधन से रबी फसलो की पैदावार बढेगी।उक्त बाते पूर्वी चंपारण जिले क् परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि अभियंत्रण विशेषज्ञ डॉ. अंशू गंगवार ने किसानो को बताया। उन्होने कहा कि फसलों की उचित वृद्ध
रबी फसलो का फोटो


किसानो को जल प्रबंधन की  जानकारी देते वैज्ञानिक


पूर्वी चंपारण,02 दिसंबर (हि.स.)।ससमय व बेहतर जल प्रबंधन से रबी फसलो की पैदावार बढेगी।उक्त बाते पूर्वी चंपारण जिले क् परसौनी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि अभियंत्रण विशेषज्ञ डॉ. अंशू गंगवार ने किसानो को बताया।

उन्होने कहा कि फसलों की उचित वृद्धि व विकास और बेहतर उत्पादन के लिए पानी बहुत आवश्यक है। पौधों के लिए आवश्यक कई प्रकार के खनिज तत्व, रासायनिक यौगिक मिट्टी में मौजूद रहते हैं। लेकिन पौधे उन्हें ग्रहण नहीं कर पाते। ऐसे में पानी भूमि में पोषक तत्वों को घुलनशील बनाता है,जिससे पौधे पोषक तत्वों को अवशोषण कर पौधों के हरे हिस्से में पहुचानें में सहायता करती है।

वैज्ञानिक गंगवार ने बताया कि किसानों के फसलों को दो कार्यों के लिए जल की आवश्यकता है। एक तो पौधों की संरचना के लिए तो दूसरा वाष्पोत्सर्जन के लिए। उन्होंने बताया कि पौधे की संरचना को बढ़ाने में कुल जल का एक प्रतिशत भाग ही व्यय होता है। शेष 66 प्रतिशत वाष्पोत्सर्जन द्वारा वातावरण ग्रहण कर लेता है। ऐसे आवश्यता से अधिक पानी और कम पानी भी पौधे की वृद्धि और उसके विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए किसान भाई को जरूरत के अनुसार ही फसलो की सिंचाई करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि पूरे खेत की सिंचाई करके पानी बर्बाद करने के बजाय किसान केवल जड़ क्षेत्र की सिंचाई करे तो पौधे के विकार बेहतर ढंग से होगा। डॉ. गंगवार ने रबी मौसम में उगाई जाने वाली मुख्य फसलों में सिंचाई प्रबंधन के बारे में बताते हुए कहा कि गेहूं, मसूर, सरसों, मक्का एवं आलू की फसलों में उचित जल प्रबंधन ना होने से पैदावार प्रभावित होती है। गेहूं में जल प्रबंधन एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। गेहूं की सिंचाई मिट्टी में नमी की मात्रा, पौधों में जल की मांग व मौसम पर निर्भर करता है। गेहूं की फसल के लिए 3-4 सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद, दूसरी 40-45, तीसरी 65-70, चौथी 90-95 दिनों के बाद किसान कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि मसूर की फसल में जल प्रबंधन मसूर सामान्यता पानी की कमी वाली स्थितियों में बोयी जाती है। हालांकि शीतकालीन वर्षा नहीं होने के कारण सिंचाई की आवश्यक पड़ती है। बेहतर उत्पादन के लिए फली बनने के समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। मसूर फसल के लिए सिंचित क्षेत्रों में बुवाई के 45-60 दिन बाद एक हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। लेकिन वर्षा होने की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। उन्होने कहा कि स्प्रिंकलर सिंचाई विधि से गेहूँ और मसूर में सिंचाई करना सर्वोतम होता है। सरसों की फसल में जल प्रबंधन किसान पहली सिंचाई 30-35 दिन पर कर सकते हैं। इसके बाद अगर मौसम शुष्क रहे तथा वर्षा नहीं होने की स्थिति में 60-70 दिन की अवस्था में जिस समय फली का विकास एवं फली में दाना भर रहा हो तब किसान सिंचाई कर सकते है। रबी मौसम में मक्का में 4-5 सिंचाई करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रथम सिंचाई बुआई के 25-30 दिन, दूसरी 55-60 दिन तीसरी 75-80 दिन, चौथी 110-115 दिन तथा पांचवी 120-125 दिन बाद करनी चाहिए। अगर आवश्यकता हो तो अतिरिक्त सिंचाई खेत की नमी के अनुसार करना उपयुक्त होगा।

उन्होंने कहा कि आलू की बुवाई करते समय मिट्टी में नमी की मात्रा कम है तो सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए। अन्यथा 12 से 15 दिन बाद ही पहली सिंचाई करें। खासकर जब आलू 2 से 5% जमाव हो जाए, तब पहली सिंचाई करनी चाहिए। अंकुरण निकलने के समय आवश्यकतानुसार 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। आलू की खुदाई के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर दें। उन्होने कहा कि सिंचाई करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है, जैसे अगर कूड में सिंचाई कर रहे हैं तो एक तिहाई को सूखा रहना चाहिए और दो तिहाई कूड में ही पानी चलाएं। ऐसा करने से कूड बैठेगा नहीं, आलू की फसल से अच्छा उत्पादन मिलेगा।

उन्होंने मक्का और आलू की फसल में ड्रीप सिंचाई तकनीकी से सिंचाई करने की सलाह दी। स्प्रिंकलर और ड्रीप सिंचाई तकनीकी से कई तरह के लाभ है,जैसे पानी और पोषक तत्वों की बचत, मिट्टी के कटाव में कमी, और फसल के बेहतर विकास और पैदावार शामिल हैं।उन्होने किसानो को बताया कि स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकी अपना कर वे रबी फसलो को पाले से आसानी से सुरक्षित कर सकते है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार