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रायपुर, 11 दिसंबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आत्मसमर्पित नक्सलियों के खिलाफ दर्ज मामलों की समीक्षा और संभावित वापसी पर लिए गए कैबिनेट फैसले ने राजनीतिक सियासत तेज कर दी है। सरकार इसे पुनर्वास नीति को मजबूत बनाने की दिशा में बड़ा कदम बता रही है, वहीं पूर्व संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने इस निर्णय पर गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि झीरम घाटी और ताड़मेटला जैसे जघन्य नक्सली हमलों के बाद अपराधियों को माफ करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। उपाध्याय ने चेतावनी दी कि सरकार जिस स्थिति की तरफ बढ़ रही है, वह सुरक्षा और न्याय, दोनों के लिए बड़ा सवाल खड़ा करती है।
विकास उपाध्याय ने कहा कि नक्सलवाद से निपटने में पुनर्वास नीति का महत्वपूर्ण योगदान है। हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटने वालों को अवसर देना जरूरी है। उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार द्वारा पुनर्वास प्रक्रिया को मजबूत करने की पहल सही दिशा में कदम है।
विकास उपाध्याय ने चिंता जताई कि सरकार यदि गंभीर नक्सली अपराधों को वापस लेने की दिशा में आगे बढ़ती है, तो यह न्याय व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न होगा। उन्होंने कहा कि ताड़मेटला और झीरम घाटी जैसे बड़े हमलों के बाद ऐसी माफी या रियायतें स्वीकार्य नहीं हो सकती है।
उपाध्याय ने आरोप लगाया कि सरकार आत्मसमर्पण की आड़ में नक्सलियों को राहत देने का माहौल बना रही है। उन्होंने कहा कि नक्सलियों के घातक हमलों को देखते हुए उनके अपराधों को हल्के में लेना राज्य की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
हिन्दुस्थान समाचार / चन्द्र नारायण शुक्ल