Enter your Email Address to subscribe to our newsletters

पूर्वी चंपारण,2 नवंबर (हि.स.)। लोक संस्कृति से जुड़े सामा चकेवा बिहार झारखंड और नेपाल में बहुत ही पवित्र त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। यह भाई बहन के अनूठे रिश्ते को मजबूत करता है। चकेवा के पीछे मान्यता है की दीपावली के बाद आने वाले भैया दूज के अवसर पर भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना कर यमराज की कुटाई की जाती है।
सामा चकेवा का पीछे कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण को एक पुत्र और एक पुत्री हुई,जिसमे पुत्र का नाम सामा और पुत्री का नाम चकेवा था। दोनों भाई बहनों में असीम प्रेम था दोनों दासियों के साथ अक्सर वृन्दावन जाकर ऋषि मुनियों के साथ खेला करते थे। उसकी दासी का नाम दिहुली था। दिहुली और समा चकेवा नाम बड़ा प्रमुखता से लिया जाता था। वह अपने जीवन में बहुत आनंदित थी। भगवान श्री कृष्ण की एक मंत्री जिसका नाम चूरक उर्फ़ चुंगला था। उसने चकेवा के विरुद्ध श्री कृष्णा का कान भरना शुरू कर दिया कि वृंदावन में एक तस्वीर के साथ अवैध संबंध की बात कही जिस पर आक्रोश में आकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुत्री को आजीवन पक्षी बनकर रहने का श्राप दे दिए।
राजकुमारी चकेवा मनुष्य से पक्षी बन गई। इस तरह की घटना को देखकर ऋषि मुनियों को बहुत दुख हुआ। वही भाई सामा को पता चला तो पिता श्री कृष्ण को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह टस से मस नहीं हुए। अंत में हार मान कर सामा अपने तपस्या में लीन हो गए। बाद में उनके तप से प्रसन्न हुये। इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा का मिलन हुआ। उसी की याद में आज भी सामा चकेवा का त्यौहार मनाने की परंपरा है।
इसके लिए पारंपरिक छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती है ,जिसे बहने डालियों में रखकर शाम होते ही भाई की दीर्घायु के लिए सहेलियों संग गीत गाकर भगवान से प्रार्थना करती है। कार्तिक पूर्णिमा के संध्या मिट्टी के बने सामा चकेवा को भाई घुटने के बल से तोड़ते है और फिर उसे गाजे बाजे के साथ तालाब या नदी में डूबो दिया जाता है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार