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डॉ. आशीष वशिष्ठ
चार दशक से ज्यादा समय तक नक्सलवाद का शिकार रहे छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले को अब वामपंथी उग्रवादियों (एलडब्ल्यूई) जिले की सूची से बाहर कर दिया गया है। अपने आप में ये बड़ी खबर है। दरअसल नरेन्द्र मोदी सरकार का लक्ष्य है कि मार्च 2026 तक भारत पूरी तरह से नक्सल मुक्त हो जाए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी कई बार सार्वजनिक मंच से इस बात को दोहरा चुके हैं। शाह अगस्त 2024 और दिसंबर 2024 में छत्तीसगढ़ के रायपुर और जगदलपुर में अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग मंचों से नक्सलियों को चेताते हुए कहा था कि हथियार डाल दें। हिंसा करोगे तो हमारे जवान निपटेंगे। उन्होंने एक डेडलाइन भी जारी की थी कि 31 मार्च 2026 तक पूरे देश से नक्सलवाद का खात्मा कर दिया जाएगा। शाह के डेडलाइन जारी करने के बाद से बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन काफी तेज हो गए हैं।
नक्सलवाद शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुई है। इसकी शुरुआत स्थानीय जमींदारों के खिलाफ विद्रोह के रूप में हुई, जिन्होंने भूमि विवाद को लेकर एक किसान की पिटाई की थी। यह आंदोलन जल्द ही पूर्वी भारत के छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे कम विकसित क्षेत्रों में फैल गया। वामपंथी उग्रवादियों (एलडब्ल्यूई) को दुनिया भर में माओवादी और भारत में नक्सलवादी के नाम से जाना जाता है। वे सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत सरकार को उखाड़ फेंकने और माओवादी सिद्धांतों पर आधारित साम्यवादी राज्य की स्थापना की वकालत करते हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और केरल राज्यों को वामपंथी उग्रवाद प्रभावित माना जाता है।
देश में भाजपा सरकार बनने के बाद 2015 में नक्सलवाद के खिलाफ विशेष अभियान चलाने की नीति बनाई गई। तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आठ सूत्री समाधान एक्शन प्लान बनाया। इसमें नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई और नक्सली इलाकों में विकास के काम एक साथ किए गए। नक्सलियों के खिलाफ राज्य सरकारों के विशेष बल, केंद्रीय सुरक्षा बलों, पुलिस ने मिलकर कार्रवाई की। इससे नक्सली घटनाओं में जबरदस्त कमी आयी। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जिसे भारत की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती कहा था, वही नक्सलवाद अब खत्म होता दिख रहा है। नक्सलियों ने नेपाल के पशुपति से आंध्र प्रदेश के तिरुपति तक एक रेड कॉरिडोर स्थापित करने की योजना बनाई थी। 2013 में लगभग 126 जिलों में नक्सली सक्रिय थे। वर्तमान में नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों की संख्या 12 से घटकर 6 हो गई। इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले- बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा, झारखंड का एक जिला- पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का एक जिला- गढ़चिरौली शामिल है।
वर्ष 2025 में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन में अब तक 287 नक्सली मारे जा चुके हैं। वहीं 865 ने समर्पण किया है और 830 गिरफ्तार हुए हैं। गत 21 मई को सुरक्षाबलों ने अबूझमाड़ में डेढ़ करोड़ के इनामी नंबला केशव उर्फ बसवराज को मार गिराया। वह तीन दशक से सक्रिय था। इसे नक्सलियों का हाफिज सईद भी कहा जाता है। नक्सलियों के सरदार बसवा राजू के ढेर होने के बाद माओवादियों का हौसला पस्त हो गया है। इस बड़े एनकाउंटर के बाद दक्षिण बस्तर डिवीजन में चार हार्डकोर नक्सलियों सहित 18 माओवादियों ने सरेंडर किया था। इसी तरह बीजापुर में 32 और तेलंगाना में 86 नक्सलियों ने सरेंडर किया था। बासव राजू की मौत के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने भी एक्स पर लिखा था कि महासचिव स्तर के बड़े नक्सली नेता को मारा गया है। इस कामयाबी को हासिल करने वाला ‘ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट’ भी सुर्खियों में है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नक्सलवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति के चलते वर्ष 2025 में अब तक 90 नक्सली मारे जा चुके हैं, 104 को गिरफ्तार किया गया है और 164 ने आत्मसमर्पण किया है। वर्ष 2024 में 290 नक्सलियों को न्यूट्रलाइज किया गया था, 1090 को गिरफ्तार किया गया और 881 ने आत्मसमर्पण किया था। अभी तक कुल 15 शीर्ष नक्सली नेताओं को न्यूट्रलाइज किया जा चुका है। वर्ष 2004 से 2014 के बीच नक्सली हिंसा की कुल 16,463 घटनाएं हुई थीं, जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2024 के बीच हिंसक घटनाओं की संख्या 53 प्रतिशत घटकर 7,744 रह गई हैं। इसी प्रकार, सुरक्षाबलों की मृत्यु की संख्या 1851 से 73 प्रतिशत घटकर 509 रह गई और नागरिकों की मृत्यु की संख्या 70 प्रतिशत की कमी के साथ 4766 से 1495 रह गई है।
वर्ष 2014 तक कुल 66 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन थे जबकि मोदी सरकार के पिछले 10 साल के कार्यकाल में इनकी संख्या बढ़कर 612 हो गई है। इसी प्रकार, 2014 में देश में 126 जिले नक्सल प्रभावित थे, लेकिन 2024 में सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या घटकर मात्र 12 रह गई है। पिछले 5 वर्षों में कुल 302 नए सुरक्षा कैंप और 68 नाइट लैंडिंग हेलीपैड बनाए गए हैं। नक्सली हिंसा में 2010 में 720 नागरिक मारे गए। 2024 में मरने वालों की संख्या घटकर 131 हो गई। नक्सली हिंसा में 2010 में 1005 नागरिक और सुरक्षा बल मारे गए। 2024 में 150 नागरिक और सुरक्षा बल मारे गए। यानी कि मरने वालों की संख्या में 85 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। नक्सली आर्थिक ढांचे जैसे कि रेलवे प्रॉपर्टी, पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर की इकाइयों, टेलीफोन एक्सचेंज, मोबाइल टॉवर, सड़क, स्कूल को निशाना बनाते रहे हैं। पर पिछले कुछ साल से इन घटनाओं मे कमी आई है। 2010 में हमले की ऐसे 365 मामले थे, जो 2024 में घटकर 25 रह गए।
पिछले एक दशक में मिली सफलता का श्रेय सुरक्षा रणनीति के साथ ही विकास योजनाओं में आई तेजी को भी जाता है। सरकार ने लक्षित विकास योजनाएं चलाईं, जिनसे लोगों का भरोसा दोबारा जीता जा सका। सड़क और मोबाइल नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाओं में काफी सुधार हुआ है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कामों ने स्थानीय लोगों के दिलों में जगह बनाई है। वहीं, 'रोशनी योजना' ने आदिवासी युवाओं को कौशल विकास और रोजगार प्राप्त करने में मदद की है। केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दबाव में नहीं आएगी, जो बंदूक उठाने वाले माओवादी उग्रवादियों का समर्थन करते हैं। पिछले एक दशक से सरकार ने माओवाद के खिलाफ एक मजबूत और बहुआयामी रणनीति अपनाई है, जो अब काफी असरदार साबित हो रही है। गृह मंत्रालय की 2017 में शुरू की गई 'समाधान' रणनीति ने जमीन पर बड़ा फर्क डाला है। इसमें सुरक्षा संबंधी कार्ययोजना के साथ-साथ विकास से जुड़ी पहल भी शामिल है।
नक्सलियों के खिलाफ अभियान मोदी सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रतीक है। इस से पहले कोई सरकार ऐसी इच्छाशक्ति दिखा नहीं पाई। ध्यान इस बात का रखना होगा क़ि नक्सलवाद फिर सिर न उठा पाए। इसके लिए प्रभावित इलाकों में अगला चरण लोकोन्मुखी सरकार, भूमि अधिकार, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आर्थिक उत्थान पर फोकस होना चाहिए। जमीनी लड़ाई में जीत केवल आधी सफलता है, अगला फोकस नक्सलियों के पुनर्वास और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने पर होना चाहिए। जिस तरह मोदी सरकार नक्सली समस्या को खत्म करने की दिशा मे तेजी से बढ़ रही है उम्मीद है कि वो 2026 में समस्या के स्थायी समाधान के साथ देश के सामने गर्व से खड़ी होगी।
(लेखक, राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद