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डॉ. आशीष वशिष्ठ
अयोध्या में श्रीराम मंदिर संपूर्ण विश्व में रचने-बसने वाले सनातनियों की शताब्दियों की प्रतीक्षा, संयम, धैर्य, अनुशासन और आस्था का प्रतीक है। यह राम नहीं, राष्ट्र मंदिर है। विरोधी भले ही सनातन और राम मंदिर का विरोध करते रहें लेकिन करोड़ों सनातनियों के हृदय में उनके आराध्य भगवान श्रीराम रचते-बसते हैं। भगवान राम के मंदिर को वह अपना पूजास्थल ही नहीं, बल्कि उसे अपना सबसे बड़ा तीर्थ मानते हैं। मुख्य मंदिर यानी अपनी जन्मभूमि पर नवनिर्मित मंदिर के भूतल में कोटि-कोटि भक्तों के आराध्य रामलला तो पहले से ही प्रतिष्ठित हैं, अब आगामी पांच जून को इसी मंदिर के प्रथम तल पर राम दरबार के साथ परकोटे के बाकी छह मंदिरों की भी प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इनमें गणेशजी, भगवान शिव, देवी भगवती, हनुमान जी, भगवान सूर्य, देवी अन्नपूर्णा और शेष अवतार के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा होगी। यह आयोजन अयोध्या के धार्मिक इतिहास में एक और महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ने जा रहा है। त्रिदिवसीय प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पांच जून को गंगा दशहरा के पावन पर्व के दिन पूर्णाहुति के साथ संपन्न होगा। श्रीराम दरबार प्रतिष्ठित होने के साथ रामलला से राजाराम तक की यात्रा पूर्ण होगी। इसी बीच राम जन्मभूमि मंदिर के शिखरों पर सोने की परत चढ़ाने का कार्य हो रहा है। यह कार्य मंदिर की भव्यता में चार चांद लगाएगा।
राम राष्ट्र की संस्कृति हैं, राम राष्ट्र के प्राण हैं, राम के मंदिर का मतलब भारत का नवनिर्माण है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का स्वर्णिम और ऐतिहासिक अवसर सनातनधर्मियों को कड़े संघर्ष से प्राप्त हुआ है, जिसका 550 सालों से अधिक का इतिहास है। इसमें 70 से अधिक बार का संघर्ष, जिसमें से अधिकतर मुगल आक्रांताओं द्वारा भारतवासियों और हमारे मंदिरों पर हमले का रक्तरजिंत इतिहास शामिल है। अनगिनत आन्दोलनों के बाद अंततः 22 जनवरी, 2024 के दिन हिन्दू समाज को अपने आराध्य प्रभु श्रीराम को जन्म भूमि पर निर्मित भव्य मंदिर में पुनर्स्थापित करने का गौरव प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्य यजमान बनकर मंदिर में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा की। यह दिन भारत की आस्था, अस्मिता, स्वाभिमान और गौरव की पुनर्स्थापना का दिन के तौर पर अंकित है।
अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस गोरखनाथ मठ के महंत हैं, उसी से अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी। योगी के गुरु महंत अवेद्यनाथ 12 सितंबर 2014 को ब्रह्मलीन हुए। गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ के पास मंदिर आंदोलन के दौरान दो सबसे अधिक अहम पदों राम जन्म भूमि यज्ञ समिति और राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष की जिम्मेदारी थी। ये दायित्व इस बात का प्रमाण है कि आजादी के आंदोलन के बाद देश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने वाले राम मंदिर आंदोलन में उनका क्या कद था? महंत अवैद्यनाथ के गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ थे। योगी आदित्यनाथ भी इस आंदोलन को मुखरता प्रदान करते रहे हैं। वो कहते रहे हैं कि ‘राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं...मेरे लिए जीवन का मिशन है’। पांच जून को प्राण प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मंदिर परिसर में उपस्थित रहेंगे। विशेष बात यह है कि पांच जून को मुख्यमंत्री का जन्मदिन भी है।
हिन्दू बहुल देश में प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली को मुक्त करवाने में जिस तरह के अवरोध उत्पन्न किए गए वे अकल्पनीय हैं। यदि सोमनाथ के साथ ही राम जन्मभूमि का मसला भी तत्कालीन नेहरू सरकार सुलझा लेती तब शायद इसे लेकर राजनीति करने का किसी को अवसर नहीं मिलता। लेकिन आजादी से लेकर आजतक कांग्रेस ने राम के नाम पर घिनौनी राजनीति का प्रदर्शन किया है। एक ऐसी राजनीति जिसने राम मंदिर मुद्दे को उलझाने का काम किया। वर्ष 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने इस मामले में हलफनामा दाखिल कर सेतु समुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु को तोड़ कर तय वर्तमान मार्ग से ही लागू किए जाने पर जोर देते हुए कहा था कि भगवान राम के अस्तित्व में होने के बारे में कोई पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। ये भी कहा था कि रामायण महज कल्पित कथा है। वर्तमान में, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन में शामिल घटक दलों के कई नेता राम मंदिर और सनातन धर्म पर आपत्तिजनक बयानबाजी करने से बाज नहीं आते।
स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा है। उनका वह वक्तव्य सही मायने में एक संदेश था जिसमें राजनीति नहीं थी। सही बात तो ये है कि राम मंदिर का विरोध करने वालों ने ही इसे वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बना दिया। कांग्रेस और अन्य कुछ दल मुस्लिम मतों के कारण इस मुद्दे पर हिंदुओं के न्यायोचित दावों की अनदेखी करते रहे। प्रतिक्रिया स्वरूप इस मामले ने दूसरा मोड़ ले लिया। लेकिन दुर्भाग्य है कि देश की बहुसंख्यक आबादी के आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि को अवैध कब्जे से मुक्त करवाने का कार्य न्यायालय के निर्णय से संभव हो सका। और वह प्रक्रिया भी वर्षों नहीं दशकों तक चली। सबसे बड़ी बात ये हुई कि बाबरी ढांचे की तरफदारी मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही साथ धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार बने हिन्दू नेतागण भी करते रहे।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि, शताब्दियों का संघर्ष अब अयोध्या में प्रत्यक्ष साकार रूप में फलीभूत होता दर्शित हो रहा है। भारत के कण-कण में राम हैं। राम मंदिर में राम दरबार के साथ परकोटे के बाकी छह मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा भारत की सुप्त आत्मा को जागृत करने का काम करेगी। राम मंदिर के निर्माण से सशक्त राष्ट्र का निर्माण होने वाला है। भारत की जय जयकार दुनिया में हो रही है। यह वास्तव में भारत की सुप्त आत्मा है। यही भारत को दुनिया के अंदर सर्वशक्तिशाली बनाएगी। भारत के प्रत्येक व्यक्ति के मन में जो रामभक्ति है वहीं राष्ट्रभक्ति है। राजनीति तोड़ने का कार्य करती है, धर्म जोड़ता है। राम मंदिर ने देश को जोड़ दिया है। अभी हाल ही में ऑपरेशन सिन्दूर में हमारे सैनिकों ने जिस पराक्रम का प्रदर्शन किया है उससे न केवल शत्रु बल्कि पूरी दुनिया अचम्भित है। ये बढ़ते हुए सशक्त भारत की एक झलक मात्र है।
राष्ट्रीय अस्मिता और अखण्डता भी अयोध्या से जुड़ी है। श्रीराम मंदिर केवल धार्मिक आस्था का प्रश्न नहीं है, इसके साथ भावी सामाजिक संरचना की संकल्पना भी जुड़ी है। व्यक्ति और राष्ट्र का चरित्र निर्माण, कालसापेक्ष किन्तु कालातीत दर्शन और दृष्टि का सृजन बीज राम मंदिर निर्माण और उसकी भव्यता में निहित है। राम मंदिर का दूसरा पहलू राष्ट्र मंदिर के रूप में स्थापित है और इस भावना के अनुरूप यह परिसर आस्था के साथ राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय एकता और समाज निर्माण के प्रति भी महनीय भूमिका का निर्वहन करने को तैयार है। विश्वभर में रचने और बसने वाले हिन्दू धर्मावलम्बी राम मंदिर की दूसरी प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर उत्साहित हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि पांच जून की तिथि विश्व इतिहास में सदा के लिए अमर रहेगी। श्रीराम मंदिर के शिखर की स्वर्णिम आभा से सम्पूर्ण विश्व में सुख, समृद्धि, शांति, सद्भावना और सहिष्णुता का प्रकाश फैले और भारत फिर एक बार विश्व गुरु के तौर पर स्थापित हो, यही कामना है।
(लेखक, राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद