छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से ममता सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं
ममता बनर्जी


कोलकाता, 18 जून (हि. स.)। पश्चिम बंगाल सरकार को एक जुलाई तक छठे वेतन आयोग की सिफारिशें अपनी आधिकारिक पोर्टल पर प्रकाशित करनी होंगी। कलकत्ता हाईकोर्ट की एकल पीठ के इस आदेश के बाद अब राज्य सरकार के लिए यह मामला एक और 'पेंडोरा बॉक्स' खोलने जैसा साबित हो सकता है।

राज्य सरकार के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते (डीए) के बकाए भुगतान को लेकर पहले से ही कानूनी लड़ाई चल रही है। अब यदि छठे वेतन आयोग की सिफारिशें अदालत में किए गए दावों से मेल नहीं खातीं, तो सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। अदालत ने इस बात पर भी सवाल उठाया है कि ये सिफारिशें कोई गोपनीय दस्तावेज नहीं हैं जिन्हें सार्वजनिक करने से रोका जाए।

राज्य सरकारी कर्मचारियों के संयुक्त मंच के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने जान-बूझकर इतनी लंबी अवधि तक सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया। उनके मुताबिक, महंगाई भत्ते को लेकर मामला पहले राज्य प्रशासनिक अधिकरण से शुरू होकर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इन कानूनी लड़ाइयों के दौरान राज्य सरकार लगातार यह दावा करती रही कि वह छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू कर रही है। अब जब सिफारिशें सार्वजनिक होंगी, तो असलियत सामने आ सकेगी।

फोरम के पदाधिकारियों ने बुधवार‌ को बताया कि आमतौर पर किसी वेतन आयोग को गठन के छह महीने के भीतर अपनी सिफारिशें देनी होती हैं, जिसे अधिकतम नौ महीने या एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। लेकिन छठे वेतन आयोग ने अपनी सिफारिशें राज्य सरकार को 30 महीने बाद सौंपीं, और उसके बाद भी इन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया।

इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक राज्य सरकार की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि वह एक जुलाई तक सिफारिशें प्रकाशित करेगी या हाईकोर्ट के एकल पीठ के आदेश को ऊपरी अदालत में चुनौती देगी।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट की एकल पीठ की न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने मंगलवार को यह आदेश सुनाया था। उन्होंने साफ कहा कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशें सार्वजनिक दस्तावेज हैं और इन्हें सार्वजनिक डोमेन से बाहर नहीं रखा जा सकता।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर