2500 वर्ष पुराना 'खजाना'! साल में सिर्फ 48 घंटे खुलता है, 363 दिन रहता है बंद सांची में तहखाना
दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव का हुआ शुभारंभ विदिशा, 30 नवंबर (हि.स.)। बौद्ध दर्शन कहता है, “जीवन अनित्य है, पर सत्य कभी नष्ट नहीं होता।” इसी सत्य का जीवंत प्रमाण बने सांची के प्राचीन स्तूप आज भी शांत पहाड़ियों पर उसी स्थिरता के साथ खड़े हैं, जैसे 250
सांची महोत्‍सव आरंभ


दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव का हुआ शुभारंभ

विदिशा, 30 नवंबर (हि.स.)। बौद्ध दर्शन कहता है, “जीवन अनित्य है, पर सत्य कभी नष्ट नहीं होता।” इसी सत्य का जीवंत प्रमाण बने सांची के प्राचीन स्तूप आज भी शांत पहाड़ियों पर उसी स्थिरता के साथ खड़े हैं, जैसे 2500 वर्ष पहले खड़े हुए थे। विदिशा से लगभग नौ किलोमीटर दूर स्थित सांची सिर्फ पत्थरों की शिल्पकला भर नहीं है, यह बौद्ध धम्म की वह पवित्र भूमि है, जहां इतिहास अपने में वर्तमान होकर सांस ले रहा है। इसी सांची में एक ऐसा गुप्त तहखाना है, जिसकी कहानी श्रद्धा, विज्ञान, सुरक्षा और विरासत सभी को एक साथ जोड़ती है।

दरअसल, यहां सुरक्षित हैं गौतम बुद्ध के दो परम शिष्यों आचार्य सारिपुत्र और आचार्य महामोद्गलायन के पवित्र अस्थि अवशेष, जिन्हें देखने का अवसर साल में सिर्फ 48 घंटे मिलता है। साल के 363 दिन यह तहखाना बंद रहता है। सिर्फ नवंबर के अंतिम सप्ताह में जब बौद्ध महोत्सव आयोजित होता है तब इस ऐतिहासिक खजाने के दर्शन होते हैं। इसीलिए दुनिया भर से भिक्षु और श्रद्धालु इन पवित्र अवशेषों की झलक देखने के लिए सांची पहुंचते हैं और तब लगता है मानो बुद्धकालीन इतिहास अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ वर्तमान में लौट आया है।

1952 में श्रीलंका से लौटा है ये पवित्र खजाना

सांची के तहखाने में रखा यह खजाना कोई सामान्‍य नहीं है। 2500 वर्ष पहले बुद्ध की उपदेश परंपरा का केंद्र रहता रहा है। सारिपुत्र और महामोद्गलायन दोनों ही बुद्ध के शीर्ष शिष्य थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके अस्थि अवशेष प्राचीन काल में विभिन्न स्थानों पर वितरित किए गए थे। समय के साथ कई अवशेष श्रीलंका में संरक्षित हुए। वर्ष 1952 में भारत की सांस्कृतिक कूटनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण आया, जब श्रीलंका ने इन पवित्र अवशेषों को भारत को सौंपने का निर्णय लिया। उसी वर्ष इन्हें विशेष सुरक्षा के साथ सांची लाया गया। यह अवसर इतना ऐतिहासिक था कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वयं उपस्थित होकर इन अवशेषों को चेतियगिरि विहार में प्रतिष्ठित करने आए।

अस्थि कलशों का प्रतिष्ठापन नवंबर के अंतिम रविवार को हुआ। उसी स्मृति में हर वर्ष नवंबर के अंतिम सप्ताह में सांची बौद्ध महोत्सव आयोजित किया जाता है और इसी दौरान तहखाने के द्वार आम दर्शन के लिए खोले जाते हैं।

साल में सिर्फ 48 घंटे ही क्यों खुलता है तहखाना?

बहुतों के मन में यह प्रश्न उठता है कि इतने महत्वपूर्ण अवशेषों को साल भर क्यों नहीं दिखाया जाता? इसका उत्तर बौद्ध आस्था से लेकर वैज्ञानिक संरक्षण तक फैला हुआ है। पुरातत्व विशेषज्ञ बताते हैं कि 2500 वर्ष पुराने अवशेष अत्यंत संवेदनशील हैं। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है कि तापमान, नमी और प्रकाश पूरी तरह नियंत्रित हों। तहखाने में इन सभी मानकों पर विशेष व्यवस्था है। लंबे समय तक खुले वातावरण में रखने से अवशेषों को नुकसान का खतरा है।

इसके साथ ही बौद्ध परंपरा कहती है कि अस्थि अवशेषों को अनुष्ठानिक समय के अतिरिक्त लंबे समय तक खुले में रखना उचित नहीं। दर्शन के बाद इन्हें वापस उनकी सुरक्षित जगह पर स्थापित किया जाता है। वहीं, इतिहास और धर्म दोनों के लिए अत्यंत मूल्यवान इन अवशेषों को चोरी या क्षति से बचाने के लिए तहखाने की सुरक्षा बहुस्तरीय है। सिर्फ निर्धारित दिन ही अधिकृत व्यक्तियों के साथ अवशेष बाहर लाए जाते हैं।

दो दिनों का अंतरराष्ट्रीय महोत्सव : जब सांची जगमगा उठता है

उल्‍लेखनीय है कि नवंबर का अंतिम सप्ताह आते ही सांची की पहाड़ियां जीवंत हो उठती हैं। बौद्ध भिक्षुओं की शांति से भरी चाल, मंत्रोच्चार की ध्वनि और धम्म के रंग में रंगी हवाओं से वातावरण आध्यात्मिक हो जाता है। महोत्सव के पहले दिन सुबह-सुबह श्रीलंका महाबोधि सोसायटी के वरिष्ठ भिक्षुओं की उपस्थिति में पारंपरिक पूजा के साथ अवशेषों को तहखाने से बाहर निकाला जाता है। इसके बाद पवित्र अस्थि कलशों को 48 घंटे के लिए चेतियगिरि विहार में रखा जाता है।

इन दो दिनों में सांची अंतरराष्ट्रीय धम्म केंद्र बन जाता है। यहां श्रद्धालु आते हैं श्रीलंका, जापान, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, म्यांमार, भूटान और कई अन्य देशों से जहां भी भगवान बुद्ध को माननेवाले रहते हैं। हर कोना बुद्ध की शिक्षाओं करुणा, धैर्य, शांति और मैत्री से भर उठता है। ऐसा लगता है कि इतिहास सजीव होकर वर्तमान से संवाद कर रहा हो।

सांची के बुद्ध जम्बूदीप पार्क में हुए इस वर्ष के दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव का शुभारंभ दीप प्रज्वलन कर किया जा चुका है । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, भारत में श्रीलंका की उच्चायुक्त महामहिम महिशिनी कॉलोन, मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विकास विभाग के राज्यमंत्री नारायण सिंह पंवार, स्वास्थ्य राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल, जिला पंचायत अध्यक्ष यशवंत मीणा, महाबोधि सोसायटी श्रीलंका के प्रमुख वानगल उपतिस्स नायक थेरो। साथ ही इस अवसर पर प्रभारी कलेक्टर तन्मय वशिष्ठ शर्मा और एसपी आशुतोष गुप्ता भी उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश मीना