अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के संकल्प के साथ सम्पन्न हुआ जीवन विद्या सम्मेलन
विदा लेते महिला व पुरुष किसान


बांदा, 2 नवंबर (हि.स.)।

प्रकृति के साथ संतुलन कायम करते हुए प्राकृतिक खेती सहित अन्य व्यवसाय करने की बुंदेलखंड के किसानों की पहल पर बांदा में आयोजित किया गया 27वां जीवन विद्या सम्मेलन मध्यस्थ दर्शन के सूत्र वाक्य अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था को कायम करने के संकल्प के साथ समाप्त हो गया।

बांदा में बडोखर खुर्द गांव स्थित प्रेम सिंह की बगिया में पिछले चार दिनों से चल रहे इस सम्मेलन में नेपाल सहित देश के सभी राज्यों के प्रगतिशील किसान एवं समाजिक काय्रकर्ता शिरकत कर रहे थे। मध्यस्थ दर्शन के प्रणेता श्री ए नागराज की पुण्य स्मृतियों को संजोते हुए सम्मेलन के अयोजक प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने समापन सत्र में संतोषप्रद जीवन की तलाश को पूर्ण बनाने में आवर्तनशीलता, क्रिया पूर्णता ओर आचरण पूर्णता को एकमात्र सूत्र बताया।

उन्होंने इस सम्मेलन को आहूत करने के पीछे मध्यस्थ दर्शन के सूत्रों को ही सबसे बडी ताकत बताया। इस दौरान 28वां जीवन विद्या सम्मेलन छत्तीसगढ के रायपुर में आयोजित करने का फैसला किया गया।

समापन सत्र में वरिष्ठ गांधीवादी विचारक सत्यप्रकाश भारत ने युवा पीढी के मन में मध्यस्थ दर्शन को अपने जीवन में लागू करने के प्रति लगातार बढ रहे रूझान को भविष्य का बेहतर संकेत बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के सम्मेलन से शिक्षा का सही मायने में मानवीकरण हो पाता है। उन्होंने कहा कि अब तक तमाम विचारधाराओं के माध्यम से लोगों की भीड जरूर जुटा ली जाती है। लेकिन इस भीड में मानव का नितांत अभाव साफ झलकता है। उन्होंने कहा कि नागराज का मध्यस्थ दर्शन सही मायने में मानव निर्माण की प्रक्रिया को पूरा कर रहा है। उन्होंने कहा कि इन सम्मेलनों में शिरकत करने वाले युवा मानवीय गुणों से युक्त होते हैं, यही वजह है कि ऐसे सम्मेलन आयोजित करने में आयोजकों को काई मशक्कत नहीं करनी पडती है। मानवीय गुणों से युक्त ये युवा स्वयं अपनी जिम्मेदारी तय करके उसे वहन भी करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कारवां अब आने वाले समय में और अधिक तेज गति से आगे बढेगा।सम्मेलन के आयोजक मंडल के वरिष्ठ सदस्य आशीष प्रधान ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि कार्पोरेट जगत छोडने के बाद गांव में आकर बतौर किसान जीवन यापन करने का फैसला करने के पीछे जीवन विद्या से मिला आत्मबल ही उनकी सबसे बडी ताकत है। प्रधान ने कहा कि मौजूदा दौर में समाज ने संसाधन भरपूर मात्रा में जुटा लिए, लेकिन इनका युक्तिपूर्ण वितरण करने में हो रही चूक के कारण ही सामाजिक असंतोष का सिलसिला अब हर सफल इंसान के जीवन में व्याप्त असंतोष तक पहुंच गया है। संसाधनों की अधिकता का ही परिणाम आज चल रहे युद्ध हैं। युद्ध की विभीषिका में न केवल तमाम देश उलझे हुए हैं, बल्कि हमारे परिवार और समाज में भी अघोषित युद्ध जैसी स्थिति बन गई है। उन्होंने कहा कि वैचारिक समझ के अकाल के इस दौर में मध्यस्थ दर्शन ही उम्मीद की राह दिखाता है।

सम्मेलन में वरिष्ठ गांधीवादी विचारक मृत्युंजय ने कहा कि 20वीं सदी का सबसे बडा योगदान मध्यस्थ दर्शन ही है, जो आज की अशांत दुनिया के लिए संतोषप्रद जीवन जीने की कला का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि 1400 साल पहले योग सूत्र का दर्शन दुनिया को मिला था। इतने लंबे अंतराल के बाद ए नागराज जी द्वारा मध्यस्थ दर्शन का प्रतिपादन होना, भारत की ओर से दुनिया के लिए अमूल्य संचित निधि से कम नहीं है।

आशीष प्रधान ने सम्मेलन की उपलब्धिया का जिक्र करते हुए बताया कि पूरे आयोजन की जिम्मेदारी गांव और समाज के लोगों ने निभाई। यह दर्शाता है कि प्रेम सिंह की बगिया से मध्यस्थ दर्शन के सहअस्तित्व का असर अब गांव और समाज तक पहुंचने लगा है। इस दौरान प्रबोधक रण सिंह आर्य, सुरेन्द्र पाल ने भी इस आयोजन को सफल बताते हुए सभी सहभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / अनिल सिंह