Enter your Email Address to subscribe to our newsletters

डॉ. मयंक चतुर्वेदी
लोकतंत्र में विचारों की स्वतंत्रता नागरिकों का अधिकार है, किंतु यह अधिकार तब चिंता का विषय बन जाता है जब उसका प्रयोग राष्ट्रनायकों के अपमान या आतंक के महिमामंडन में बदल जाए। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में जो कहा, उसने यही चिंता फिर से सामने ला दी है। मसूद ने कहा कि “हमास अपनी जमीन के लिए लड़ रहा है, जैसे भगत सिंह लड़े थे।” पहली नजर में यह तुलना इतिहास और नैतिकता के साथ गंभीर खिलवाड़ है।
भगत सिंह की लड़ाई किसी समुदाय के लिए नहीं थी, वह पूरे भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए थी। वे एक विचार का प्रतिनिधित्व करते थे; राष्ट्रनिर्माण का विचार, जिसमें मानवता सर्वोपरि थी। उन्होंने साम्प्रदायिकता और धार्मिक कट्टरता का हमेशा विरोध किया। भगत सिंह ने अपने लेख “सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज” में लिखा था कि धर्म का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए नहीं होना चाहिए। उनका विश्वास इस बात पर था कि देश तभी आगे बढ़ सकता है, जब इंसान को इंसान के रूप में देखा जाए, न कि मजहब की दृष्टि से।
दूसरी तरफ, हमास एक ऐसा संगठन है जिसे दुनिया के अधिकांश राष्ट्र, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और भारत भी शामिल हैं, एक आतंकी संगठन के रूप में जानते हैं। सात अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर हमला किया था, जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गए और 250 से ज्यादा निर्दोष नागरिक बंधक बनाए गए। जवाब में इजरायल ने गाजा पर सैन्य कार्रवाई की, जिसके कारण तब से अब तक अनेकों फिलिस्तीनियों की मौत और डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबरें हैं। ये सब हुआ तो हमास के कारण ही है। यह संघर्ष मानवीय त्रासदी में बदल चुका है, लेकिन इस सच्चाई को भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ना इतिहास का सरलीकरण और राष्ट्रीय भावना की अवमानना है।
कहना होगा कि इमरान मसूद का बयान व्यक्तिगत राय नहीं लगती है; यह उस राजनीतिक सोच का हिस्सा लगता है जो हर मुद्दे को ‘मजहबी दृष्टि’ से देखने की प्रवृत्ति रखती है। जब कोई जनप्रतिनिधि ‘हमास का दर्द’ महसूस करता है लेकिन उन भारतीयों से असहमति रखता है जो उसे आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाते हैं, तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उसके लिए राष्ट्र प्रथम है या बिरादरी। यह पहली दफा नहीं है। कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा पहले भी सावरकर, पटेल और चंद्रशेखर आजाद जैसे नायकों को लेकर विवादित बयान दिए जा चुके हैं।
आज के भारत में यह विमर्श इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि जब एक सांसद अपने शब्दों से इतिहास की गलत तुलना करता है, तो उसका असर सिर्फ राजनीतिक नहीं, वैचारिक भी होता है। यह युवा पीढ़ी के मन में भ्रम पैदा कर सकता है कि क्या हर संघर्ष आतंक बन सकता है, या क्या आतंक भी स्वतंत्रता संग्राम की तरह किसी नैतिक औचित्य का पात्र हो सकता है?
हमें भूलना नहीं चाहिए कि भगत सिंह की क्रांति तर्क, अध्ययन और विचारशीलता पर आधारित थी। उन्होंने खूब पढ़ा और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी वैचारिक लड़ाई को बौद्धिक आधार दिया। जबकि हमास की हिंसा इस्लाम की मजहबी कट्टरता, असहिष्णुता और प्रतिशोध पर खड़ी है। इन दोनों के बीच तुलना करना वैसा ही है जैसे मशाल की लौ को बारूद की आग कहना; दोनों चमकते हैं, पर एक जीवन देता है और दूसरा नाश।
संसद की शपथ लेते समय प्रत्येक सदस्य ‘भारत की संप्रभुता और अखंडता’ की रक्षा का वचन देता है। जब कोई जनप्रतिनिधि ऐसी तुलना करता है जो उस शपथ की भावना के विपरीत जाती है। एक सांसद के रूप में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद को इतना तो पता ही होना चाहिए। हमारे समय में जब नफरत और प्रचार राजनीति का उपकरण बन चुके हैं, तब ऐसे बयान हमें याद दिलाते हैं कि राष्ट्र और धर्म के बीच सही संतुलन बनाए रखना ही सबसे बड़ा राष्ट्रधर्म है।
भगत सिंह ने कहा था, “क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।” आज जब कुछ नेता विचारों की जगह तुलना और उकसावे की राजनीति कर रहे हैं, तो राष्ट्र को यह तय करना होगा कि वह किन विचारों को अपनी सान बनाएगा। भारत के एतिहासिक और सांस्कृतिक गौरव से जुड़े विचार उसके आदर्श होंगे या उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद जैसे नेताओं के द्वारा कहे वचन, जिन्हें इतना भी भान नहीं कि आतंकवादी संगठन की तुलना देशभक्त भारत के क्रांतिवीरों से नहीं की जा सकती है। अब कांग्रेस भी विचार करे कि वो कैसे लोगों को संसद में भेज रही है!
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)-----------
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी