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हृदयनारायण दीक्षित
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ फिर से निशाने पर है। कर्नाटक सरकार ने पंचायती राज विभाग के कर्मचारी को संघ के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के कारण निलंबित कर दिया है। कर्नाटक सरकार के वरिष्ठ मंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बेटे प्रियंक खरगे ने भी कहा है कि केंद्रीय सत्ता में आने पर वे संघ को प्रतिबंधित कर देंगे। दरअसल केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू सेंट्रल सिविल सर्विसेज कंडक्ट 1964 के अंतर्गत कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में भाग लेने पर प्रतिबंध था। इस आदेश को नौ जुलाई, 2024 को केंद्र द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन में संशोधित किया गया। निषिद्धता में बदलाव हुआ। संघ को अब प्रतिबंधित सूची से हटा दिया गया था। केंद्र और राज्य के कर्मचारियों के सेवा नियम अलग-अलग हैं। कर्नाटक के कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने से रोका गया है। संघ की गतिविधियों को रोकने की यह कोशिश उचित नहीं है। ऐसा प्रयास संविधान विरोधी भी है। नौ जुलाई 2024 के बाद संघ के कार्यक्रम में भाग लेने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं होनी चाहिए।
संघ की गतिविधियों को लेकर हिंदुत्व के विरोधी स्वाधीनता आंदोलन के समय से ही सक्रिय हैं। ऐसे तत्व सेकुलरवाद के नाम पर हिंदू संस्कृति और परंपरा पर हमलावर रहते हैं। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने भी सेकुलरिज्म के नाम पर संघ के पथ संचरण कार्यक्रम पर रोक लगाई थी। स्टालिन सरकार ने संघ के कार्यक्रम को रोकने के लिए रास्ते में मस्जिद और चर्च होने के सामान्य अमान्य तर्क दिए और कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार किया, तब मद्रास उच्च न्यायालय ने उनके इस कृत्य पर कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था, ''संघ को अनुमति देने से मना करने का निर्णय संविधान के विरुद्ध है और लोकतंत्र के भी असंगत है। सरकार का निर्णय मौलिक अधिकारों के भी विरुद्ध है।'' उसके भी एक साल पहले स्टालिन सरकार ने ऐसा ही किया था। संघ ने गांधी जयंती और आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर कार्यक्रम आयोजन की अनुमति मांगी थी। राष्ट्रवाद के विरोधी मुख्यमंत्री स्टालिन ने इसकी भी अनुमति नहीं दी थी। संघ ने तब भी न्यायालय की शरण ली थी। खास बात यह है कि स्टालिन ने सनातन परंपरा को भी मलेरिया, डेंगू, कोरोना आदि बताया था।
संघ 100 साल का हो चुका है। इस अवधि में संघ ने सारी दुनिया में विशेष प्रतिष्ठा हासिल की है। संघ का मूल आधार हिंदुत्व है। सर्वोच्च न्यायपीठ ने हिंदुत्व को भारत की जीवन पद्धति बताया था। हिंदुत्व किसी रिलीजन या उपासना पद्धति का नाम नहीं है। भारत में सुदीर्घ काल से चली आ रही संस्कृति और उस पर आधारित जीवन पद्धति का नाम है हिंदुत्व। संघ इसी विचारधारा को लेकर राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुटा हुआ है। संघ ने पूरे देश में हिंदुत्व का वातावरण बनाने में सफलता पाई है। यह बात छद्म सेकुलरवादियों को खलती है। सेकुलर भारतीय विचार नहीं है। यह विचार यूरोप से आया था। सेकुलर शब्द का अर्थ इहलोकवादी, प्रत्यक्ष, भौतिक और सांसारिक होता है। इसका अर्थ है इस संसार में जो कुछ भी भौतिक दिखाई पड़ रहा है वही सही है। इस विचार के अनुसार हिन्दू आस्था गैर सेकुलर हैं। ईश्वर प्रत्यक्ष नहीं होता। सेकुलरवाद की परिभाषा में ईश्वर भी सेकुलर नहीं है।
संघ दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन है। संघ भी सेकुलरवाद के चश्मे में सांप्रदायिक है, लेकिन घोर सांप्रदायिक कट्टरपंथी मुस्लिम लीग, एआईएमआईएम सेकुलर हैं। ईसाईयत और इस्लामी विश्वास भी सेकुलर हैं। कायदे से दोनों विश्वासों में ईश्वर हैं और जहां ईश्वर है विश्वास है वे सेकुलरवादी नहीं हो सकते। लेकिन छद्म सेकुलरवाद में इस्लामी ईसाई विश्वास सेकुलर हैं। यहां सभी सांस्कृतिक प्रतीक सांप्रदायिक हैं। सरस्वती वंदना भी सांप्रदायिक है। इस्लामी परंपरा के रोजा आदि कार्यक्रमों में राजनेताओं का सम्मिलित होना सेकुलर है। श्रीराम जन्मभूमि सहित सभी आस्था केंद्रों में जाना गैर सेकुलर है और सांप्रदायिकता है। इन्हीं सेकुलरवादियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित योग को भी सांप्रदायिक बताया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की देशभक्ति संस्कृति प्रियता और काम करने की सामान्य पद्धति बहुत लोकप्रिय है। उसके कार्यकर्ता देश और विचार के लिए अपना करियर छोड़ देते हैं। मातृभूमि के लिए किसी भी सीमा तक जाने की भावना रखते हैं। कांग्रेस को संघ अच्छा नहीं लगता। इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए संघ का घोर विरोध किया था। उन्होंने 1975 के आपातकाल के साथ संघ पर प्रतिबंध भी लगाया था। संघ के हजारों कार्यकर्ताओं को लंबी अवधि तक जेल में डाल दिया था। जो जेल नहीं जा सके, उनका भी व्यापक उत्पीड़न हुआ था। कांग्रेस संघ विरोधी है। वह तुष्टिकरण की नीति पर चलती है। हिंदू विचार की निंदा से थोक वोट बैंक लेने की नीति पर चलती है।
कांग्रेस के नेता और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता ने कई बार संघ की आलोचना की है। नेता प्रतिपक्ष होने के पहले उन्होंने संघ से लड़ने की घोषणा की थी। वैचारिक आधार पर संघर्ष करना अच्छी बात है। उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि वह गीता और उपनिषद पढ़कर संघ से निपटेंगे। मैंने उनके इस बयान का स्वागत किया था। गीता, उपनिषद भारतीय संस्कृति और दर्शन के अद्भुत ग्रंथ हैं। ये ग्रंथ संपूर्ण ब्रह्मांड को एक इकाई मानते हैं। सारी दुनिया को परिवार जानने की अनुभूति देते हैं। अफसोस कि राहुल ने अपना यह वादा पूरा नहीं किया।
संघ अपने 100 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में गहन जनसंपर्क अभियान चला रहा है। राष्ट्रीय संकट के प्रत्येक अवसर पर संघ ने सरकार का साथ दिया है। संघ की गतिविधियां भारतीय संविधान के संगत हैं। संविधान के अनुच्छेद 19 में संगठन बनाने और देश की सेवा करने का अधिकार है। संविधान में कहा गया है कि, ''सभी नागरिकों को वाक् स्वातंत्र्य और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी। शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का भी अधिकार होगा।'' यह मौलिक अधिकार है। राज्य कर्मचारी भी भारत के संविधान के अनुसार किसी संगठन की गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए स्वतंत्र हैं। कर्मचारी भी भारत के नागरिक हैं। उनके संवैधानिक अधिकारों को छीना नहीं जा सकता। मुंबई उच्च न्यायालय ने 1962 में कहा था कि किसी सरकारी कर्मचारी का संघ की गतिविधियों में भाग लेना विध्वंसक कार्य नहीं है। उसे इसी आधार पर सरकारी सेवा से नहीं हटाया जा सकता। संघ के निंदक संविधान नहीं मानते। वे कोर्ट के आदेशों का सम्मान नहीं करते। बंगलुरु उच्च न्यायालय ने संघ का सदस्य होने के आधार पर न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति से वंचित रखने को वैध कारण नहीं माना। पटना, चंडीगढ़, भोपाल आदि न्यायालय के तमाम निर्णयों में संघ का सदस्य होना आपत्तिजनक नहीं पाया गया। अच्छा हो कि सरकारें भारत की राष्ट्रवादी विचारधारा का आदर करें और संघ को राष्ट्र निर्माण का कार्य करने दें।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद