नये युग में भारत और अफगानिस्तान संबंध
नये युग में भारत और अफगानिस्तान संबंध


मृत्युंजय दीक्षित

अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में कोई स्थाई मित्र या शत्रु नहीं होता, सभी राष्ट्र समय और परिस्थितियों के अनुसार पारस्परिक व्यवहार करते हैं। इस समय भारत के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है। तालिबान की पहचान आतंकी संगठन की है किन्तु अफगानिस्तान की तालिबान सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने के लिए वैश्विक जगत से संवाद स्थापित कर रही है। अभी तक तालिबान सरकार को केवल रूस ने ही मान्यता दी है। इस बीच अफगानिस्तान के तालिबान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी सात दिन की भारत यात्रा पर हैं यद्यपि भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है और वह काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।

भारत में मुत्ताकी के अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। वह उप्र में मुसलमानों की संस्था दारुल उलूम देवबंद गए, उनकी दो पत्रकार वार्ताएं भी हो चुकी हैं जिसमें पहली पत्रकार वार्ता में महिला पत्रकारों को प्रवेश न मिलने के कारण विवादों आ गई जिससे अफगानी विदेश मंत्री को दूसरी पत्रकार बुलानी पड़ी जिसमें महिला पत्रकार भी आमंत्रित थीं।

अफगान विदेश मंत्री की इस यात्रा से भारत ने दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के विरुद्ध अपना एक नया समर्थक बनाया है। मुत्ताकी की भारत यात्रा से भारत ने एक कूटनीतिक बढ़त यह प्राप्त कर ली है। संयुक्त बयान में अफगानिस्तान ने अप्रैल में जम्मू -कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा करते हुए भारत की जनता व सरकार के प्रति संवेदना व एकजुटता व्यक्त की है । भारत और अफगानिस्तान के बयान में दोनों पक्षों ने क्षेत्रीय देशों से उत्पन्न सभी आतंकवादी कृत्यों की स्पष्ट रूप से निंदा की और क्षेत्र में शांति स्थिरता एवं आपसी विश्वास को बढ़ावा देने के महत्व पर बल दिया है।

अफगान विदेश मंत्री ने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताया जिससे पाकिस्तान को इतनी चोट पहुंची कि उसने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। फिर अफगानिस्तान ने पलटवार करते हुए पाकिस्तान के 58 सैनिकों को मारने का दावा किया और उनकी कई चौकियों पर कब्जा कर लिया।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी की मुलाकात के बाद बयान जारी किया गया कि भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते सदियों पुराने हैं तथा इन संबंधों को और मजबूत किया जाएगा। भारत ने काबुल स्थित दूतावास फिर से खोलने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। यह वही तालिबान सरकार है जिस पर कभी कोई भरोसा नहीं कर रहा था। जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने और अफगानिस्तान की सत्ता तालिबान को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया था उस समय दक्षिण एशिया में भय, आतंक, चिंता व निराशा का वातावरण उत्पन्न हो गया था कि अब क्या होगा ?

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर चीन और पाकिस्तान बहुत खुश थे। दोनों देशों को लगा कि अब अफगान सरकार उसके कहने पर चलेगी। पाकिस्तान ने सोचा कि वह तालिबान की मदद से जम्मू-कश्मीर को हथिया कर वहां शरिया कानून लागू करा देंगे। किंतु समय बदलने के साथ पाकिस्तान की यह योजना पूरी तरह से धराशायी गयी। आज भारत के तालिबान से सम्बन्ध बेहतर हैं क्योंकि भारत केवल राष्ट्र प्रथम को ध्यान में रख कर चल रहा।

सामारिक, आर्थिक, राजनैतिक व मानवीय दृष्टिकोण से भारत का अफगानिस्तान के साथ रिश्ते सुधारना राष्ट्रहित में है। वहां से हिंदू व सिख समाज के लोग अपना कारोबार, संपत्ति और जायदाद आदि छोड़ कर आए हैं। अफगानी विदेश मंत्री मुत्ताकी से भारत ने यह कहलवा लिया है कि अब कोई भी ताकत अफगान की धरती का उपयोग भारत के खिलाफ नहीं कर सकेगी। इसका स्पष्ट इशारा पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई की ओर था।

तालिबान विदेश मंत्री मुत्ताकी की भारत यात्रा के लिए काफी समय से होमवर्क किया जा रहा था। जनवरी में ही तालिबान शासन और भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ कई दौर की वार्ता हो चुकी थी, जिसके बाद मुत्ताकी ने भारत को अहम क्षेत्रीय और आर्थिक शक्ति बताया था।

यह सर्वविदित तथ्य है कि भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते अत्यंत लंबे समय से प्रगाढ़ रहे हैं और अफगानिस्तान के कठिन समय में भारत ने सदा उसकी सहायता की है। तालिबान शासन आने के बाद भी जब वहां पर विनाशकारी भूकंप आया तब भारत अफगान नागरिकों के साथ खड़ा रहा। अफगान विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात के बाद अफगानिस्तान को 20 एम्बुलेंस देने के साथ ही वहां की आम जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए भारत ने सहायता की घोषणा की है।

यदि भारत अफगानिस्तान में अपना दूतावास खोलता है तो वहां से पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई की गतिविधियों पर सूक्ष्म दृष्टि रख सकेगा। तालिबान शासन से मैत्री इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय भारत के सभी पड़ोसी देश अस्थिरता का शिकार हैं। ऐसे में सामरिक दृष्टिकोण से एक नया मार्ग खोलना अति आवश्यक हो गया है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश