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अजय कुमार शर्मा
प्रख्यात खलनायक एवं चरित्र अभिनेता प्राण एक आम भारतीय की तरह हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल खेलने और देखने के तो शौकीन थे ही उनकी अन्य कई रुचियां भी थीं। उनके शौक इतने विविधतापूर्ण थे और एक-दूसरे से ऐसे घुले-मिले थे कि उन सबके मेल से उन जैसे अनोखे व्यक्तित्व का निर्माण होना लाज़िमी था। वह फुर्सत होने पर बागवानी करते, किताबें पढ़ते। कहीं बाहर शूटिंग के लिए जाते तो पाइप और छड़ियां इकट्ठी करते। जानवरों और अच्छी गाड़ियों से भी उन्हें बेहद प्यार था। प्राण और उनकी पत्नी दोनों को ही कुत्तों से बेहद प्यार था। शादी के बाद उनकी पत्नी जब दिल्ली से लाहौर गईं तो उनके ताऊजी की बेटी ने उन्हें एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता उपहार में दिया था ताकि प्राण के काम पर चले जाने के बाद उन्हें घर में अकेलापन न लगे।
विभाजन के चलते यह कुत्ता उन्हें लाहौर छोड़ना पड़ा जिसका दुख उन दोनों को आजीवन रहा। वह कहते थे विभाजन में मुझसे छीनने वाली सबसे मूल्यवान चीजों में से एक मेरे कुत्ते थे। फिर जब से बम्बई में उनका अपना घर हुआ उनके परिवार में हमेशा कुत्ते रहे। बांद्रा में कई अल्सेशियन के साथ उनके पास बोंजो नामक एक गोल्डन रेट्रिवर तथा एक जेट ब्लैक कोकर स्पेनियल तथा सफेद पामेरेनियन भी था जिन्हें वह व्हिस्की और सोडा कहते थे। कुछ समय उनके पास सिल्की सिडनी का जोड़ा था जिसे उन्होंने लैला-मजनूं का नाम दिया था। शूटिंग से लौटने पर यह सारे कुत्ते भौंककर उनका स्वागत किया करते थे। इन सात कुत्तों के लिए उन्होंने अपने घर में एक विशेष कैनल का भी निर्माण कराया था। इतना ही नहीं कई बार वे शूटिंग से भी कई जानवर जैसे तोता, हिरण और बंदर भी घर ले आए। कुछ समय उन्होंने रेस के लिए घोड़े भी पाले।
प्राण को बागवानी का भी शौक था। उन्हें गुलाब का फूल बेहद पसंद था जिसकी अच्छी किस्म लाने के लिए वह पुणे की नर्सरी तक जाते थे। उन्हें कैक्टस का भी शौक था। उनके बगीचे में तीन से चार सौ तरह के कैक्टस थे, 10 - 12 फीट ऊंचे से लेकर दो-तीन इंच छोटे तक। फलों के पेड़ों में चीकू, नींबू ,आम, नारियल, शरीफा तो उनके बगीचे में थे ही वह गन्ना भी उपजाते थे। प्राण को गाड़ियों का बहुत शौक रहा। फिल्मों में काम शुरू करने से पहले लाहौर में उनके पास एक साईकिल और एक तांगा था जिसका जिक्र उर्दू के मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो ने कुछ इस तरह किया है, प्राण काफी सुंदर थे और अपने सलीकेदार फैशनेबल कपड़ों तथा शानदार तांगे के लिए लाहौर में काफी लोकप्रिय थे। उन दिनों वे शाम को तांगे पर सैर किया करते थे। फ़िल्मों में काम शुरू करने के बाद उन्होंने लाहौर में एक मोटर साईकिल भी खरीदी जिसके एक्सीडेंट केस में फंसने पर 25 रुपए का जुर्माना भी हुआ था जिसे मजिस्ट्रेट ने उनकी सुंदर आँखें देखकर 5 रुपए कर दिया था। बम्बई में उनके द्वारा खरीदी गई पहली गाड़ी हिलमैन थी जो उन्होंने 1951 में बहार फिल्म के प्रीमियर से कुछ दिन पहले ही खरीदी थी। उसके बाद उन्होंने 'क्रिस्टल', एम.जी. रोडस्टर और 'शेवरलेट' भी ली। उनके पास 1930 से पहले बनी दो आस्टिन विंटेज कारें भी थीं।
प्राण के पास पाइप का भी विपुल संग्रह था। धूम्रपान छोड़ने पर उन्होंने उन्हें अपने यार-दोस्तों को बांट दिया। उनके पास छड़ियों का भी विशाल संग्रह था। वे जब भी कहीं जाते वहां से अलग-अलग तरह की छड़ियाँ लाने की कोशिश करते।
प्राण का उर्दू शायरी का ज्ञान और उनके शेर पढ़ने की कला भी जगजाहिर थी और इसके चलते वे अपने सह कलाकारों में बेहद लोकप्रिय भी थे। मनोज कुमार ने एक बार बताया था कि प्राण साहब को अनगिनत शेर याद थे। उन्हें असगर गोंडवी, फैज फैज़ अहमद फैज़, फिराक गोरखपुरी और जोश मलीहाबादी जैसे शायरों के कलाम मुँह जुबानी याद थे। प्राण के पास पुस्तकों का भी बेहतरीन संग्रह था और उनकी रुचि भी विस्तृत थी। अनेक उपन्यासों से लेकर अनेक शास्त्रीय ग्रंथ भी उनके संग्रह में थे। अरेबियन नाइटस और द एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के सभी कीमती भाग भी उनके पास थे।
प्राण साहब शराब के भी बेहद शौकीन थे। शूटिंग से घर आने के बाद नहा-धोकर वे नियमित रूप से शराब पीया करते थे। इसलिए उनके पास सैंकड़ों तरह के गिलासों के साथ ही बियर मगों का भी मंहगा और बड़ा संग्रह था। खेलों में हॉकी के लिए दीवानापन छात्र अवस्था से ही था। अपने स्कूल में वह हॉकी खेलते थे। बॉम्बे प्रोविंशियल हॉकी एसोसिएशन के वे सक्रिय सदस्य थे। बेबोर्न स्टेडियम में होने वाले हर बडे क्रिकेट मैच को देखने के लिए वे बॉम्बे क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया के सदस्य बन गए थे। यानी बॉम्बे में होने वाले हर महत्वपूर्ण फुटबॉल, हॉकी और क्रिकेट मैच को देखते थे।
फुटबॉल खेलने का शौक उन्हें नरगिस के बड़े भाई अख्तर हुसैन ने लगाया था। 50 के दशक में प्राण ने राज कपूर के साथ मिलकर एक क्लब भी बनाया जिसका नाम था बॉम्बे डायनामोज फुटबॉल क्लब। इसमें उन्होंने कई भारतीय ओलंपिक खिलाड़ी शामिल किए थे। उन्होंने कई चैंपियनशिप भी जीती। खेलों में शामिल होकर वे अपनी थकान दूर कर तारोताज़ा हो जाते थे। बाद में कई क्रिकेट फुटबॉल के चैरिटेबल मैच खेलकर प्राण ने परोपकार व जन सेवा के लिए खूब धन भी जुटाया।
चलते-चलते
प्राण के अपने समकालीन नायकों से बेहद अच्छे रिश्ते रहे। उन्होंने दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद की तिकड़ी से लेकर बाद के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन तक सभी के साथ काम किया। राज कपूर के साथ उनके रिश्ते पाकिस्तान की पृष्ठभूमि होने के कारण विशेष थे। अपनी चौथी ही फिल्म आह (1953) में राज कपूर ने उन्हें एक भले डॉक्टर की भूमिका के लिए चुना जबकि वह उसे समय एक कामयाब चर्चित और लोकप्रिय खलनायक हो चुके थे। उसके बाद में वे उनकी हर फिल्म का हिस्सा रहे। बॉबी फिल्म तक। बॉबी के निर्माण के समय उनकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। वह मेरा नाम जोकर की असफलता के कारण कर्ज में डूबे हुए थे। राज कपूर जब उन्हें बॉबी फिल्म के लिए साइन करने गए तो संकोच के साथ कहा, मैं इस वक्त आपको कुछ भी नहीं दे सकूंगा। प्राण ने उनसे पूछा क्या आपकी जेब में एक रुपए का सिक्का है? राज कपूर कुछ चकराए तब प्राण ने अपना पूरा वाक्य किया- मेरी फीस बस इतनी ही होगी।