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-डीएमके ने की इनवेसिव स्पीशीज को हटाने की वकालत
चेन्नई (तमिलनाडु), 17 अप्रैल (हि.स.)। आज के हालात में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन सबसे गंभीर मुद्दा बनकर उभरा है। बावजूद इसके तमिलनाडु के प्रमुख राजनीतिक दलों ने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र शामिल नहीं किया है। हालांकि आम मंच पर अक्सर नेताओं ने जलवायु परिवर्तन के मसले पर गंभीरता जरूर दिखाई लेकिन भविष्य की योजना को लेकर घोषणापत्र में कोई भी बिन्दु नहीं शामिल किया गया।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने जरूर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को उठाया है। उसका कहना है कि वह मेसो-स्केल स्तर पर भारत-विशिष्ट जलवायु मॉडल विकसित करेगा। वहीं द्रमुख ने हिमालय और पश्चिमी भाग के लिए विशेष मिशन के तहत पर्यावरण के प्रति इनवेसिव स्पीशीज (पर्यावरण लिए हानिकारक प्रजातियों) को हटाने की बात कही है। अब चाहे वो इस पर अमल करें या नहीं, कम से कम वे पर्यावरण के प्रति आक्रामक प्रजातियों को हटाने के बारे में तो बात कर ही रहे हैं।
दूसरी ओर नाम तमिलर काची (एनटीके) के घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन के बारे में विस्तार से इन बातों की चर्चा की गई है और पीएमके भी ऐसा ही पर्यावरण संरक्षण के बारे में कहा है। लेकिन द्रमुक के अलावा इनवेसिव स्पीशीज (पर्यावरण लिए हानिकारक प्रजातियों) को हटाने की बात किसी ने नहीं कही है।
हाल के दिनों में तमिलनाडु के तमाम राजनीतिक दल के नेताओं ने मंच से पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बयान तो दिए हैं लेकिन इनवेसिव स्पीशीज (पर्यावरण लिए हानिकारक प्रजातियों) जैसे गंभीर विषय पर चुप हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 54% युवाओं ने कहा है कि वे जलवायु परिवर्तन पर राजनीतिक पार्टियों के रुख के आधार पर अपना वोट देंगे। वह ऐसी पार्टियों को प्राथमिकता देंगे जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को राजनीतिक पटल पर चर्चा का विषय बनाएगी। तमिलनाडु में इस बार नदी में अपशिष्ट पदार्थ डालने के खिलाफ आवाज उठाने और शक्ति से काम करने का भी वादा किया गया है। तमाम जानकारों का मानना है कि इस बारे में दशकों से बात की जा रही है और नमामि गंगे परियोजना के दौरान भी कोई महत्वपूर्ण काम नहीं हुआ है, लेकिन जानकारों का एक दूसरा संवर्ग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता।
अन्नाद्रमुक ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली प्रजाति -प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा और पल्लीकरनई रिक्लेमेशन के उन्मूलन को छोड़कर अन्य पर्यावरण संबंधी जरूरी मुद्दों पर ज्यादा बात नहीं की है। कांग्रेस, द्रमुक और एनटीके का कहना है कि वे 2023 वन संरक्षण संशोधन अधिनियम को वापस लेंगे और 1980 के अधिनियम को फिर से लागू करेंगे। भाजपा, कांग्रेस और द्रमुक सभी का दावा है कि वे अलग-अलग वर्षों को लक्ष्य बनाकर जलवायु परिवर्तन और कार्बन निष्क्रियकरण की दिशा में काम करेंगे। सबसे लंबा समय कांग्रेस का कार्यकाल है जो 2070 को अपने महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने का लक्ष्य बता रही है। सबसे बड़ी रोचक बात यह है कि कांग्रेस ने जलवायु परिवर्तन और तटीय मुद्दों को संबोधित तो किया है। लेकिन उनके पास सिर्फ घिसा-पिटा विजन-2070 का प्लान है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की बात नदारद है।
अपने संकल्प के माध्यम से सभी दलों ने कहा है कि वे जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए हरित आवरण बढ़ाएंगे लेकिन किसी की घोषणा पत्र में इन बातों की चिंता नहीं की है कि वह इनवेसिव स्पीशीज का सफाया कर देश की पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के मामले में जोड़ देंगे। अन्नाद्रमुक ने केवल पानी, कावेरी और किसानों के मुद्दों के बारे में बात की है और भविष्य के लिए कोई विस्तृत पर्यावरण योजना तैयार नहीं की है। द्रमुक ने पर्यावरण संरक्षण का विस्तृत रूप में काम करने के लिए जलवायु परिवर्तन संबंधी साक्षरता कार्यक्रम, कॉलेजों में जलवायु परिवर्तन सेल की स्थापना करने और पर्यावरण कानूनों/अधिनियमों को वापस लाने का काम करने का वादा किया है। उन्होंने आपदा तैयारियों और पश्चिमी घाट के लिए एक अलग अधिनियम का भी उल्लेख किया है और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कई भविष्यवादी योजनाओं को संबोधित किया है।
हिन्दुस्थान समाचार/डॉ आर.बी. चौधरी/आकाश