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जयपुर, 28 मार्च (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने चिटफंड मामले में गिरफ्तारी से बचाने के बदले 15 लाख रुपए की रिश्वत लेने के मामले में न्यायिक अभिरक्षा में चल रहे ईडी के प्रवर्तन अधिकारी नवल किशोर मीणा और एक अन्य बाबूलाल मीणा की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं। जस्टिस अनुप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश दोनों आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने दोनों आरोपियों को छूट दी है कि यदि विभाग चार माह में उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति नहीं देता है तो वे पुन: जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि आरोपियों ने गंभीर प्रकृति का अपराध किया है। ऐसे में उनके प्रति नरमी का रुख नहीं अपनाया जा सकता।
जमानत याचिकाओं में कहा गया कि एसीबी ने याचिकाकर्ताओं को गत 2 नवंबर को गिरफ्तार किया था। इसके बाद से वे न्यायिक अभिरक्षा में चल रहे हैं। प्रकरण में अनुसंधान पूरा कर एसीबी ने आरोप पत्र भी पेश कर दिया है, लेकिन विभाग ने अब तक मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति नहीं दी है। ऐसे में बिना अभियोजन स्वीकृति उनके खिलाफ ट्रायल आरंभ नहीं हो सकती। वहीं जिन धाराओं में उनके खिलाफ आरोप लगाए गए हैं, उनमें अधिकतम सात साल तक ही सजा है। ऐसे में उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए। जिसका विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि आरोपी ईडी अधिकारी ने नवल किशोर ने 17 लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी और पन्द्रह लाख रुपए सह आरोपी बाबूलाल मीणा से बरामद हुए थे। ईडी अधिकारी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह इस तरह का अपराध करे। ऐसे में उन्हें जमानत नहीं दी जा सकती। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया। गौरतलब है कि परिवादी ने एसीबी में शिकायत दी थी कि उसके खिलाफ ईडी के इम्फाल कार्यालय में दर्ज चिटफंड से जुडे मामले में गिरफ्तार नहीं करने की एवज में प्रवर्तन अधिकारी नवल किशोर 17 लाख रुपए रिश्वत मांग रहा है। रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए एसीबी ने आरोपी को पन्द्रह लाख रुपए लेते हुए गिरफ्तार किया था।
हिन्दुस्थान समाचार/ पारीक/ईश्वर