गुजरात : ड्रग्स मामले में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को 20 साल कैद की सजा
-पालनपुर कोर्ट ने 1996 के एक मामले में बुधवार को ठहराया था दोषी -गुजरात दंगे में तत्कालीन मुख्यमंत्र
पालनपुर कोर्ट


पूर्व आइपीएस संजीव भट्ट


-पालनपुर कोर्ट ने 1996 के एक मामले में बुधवार को ठहराया था दोषी

-गुजरात दंगे में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के खिलाफ रिपोर्ट को लेकर चर्चा में आए थे

पालनपुर, 28 मार्च (हि.स.)। गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बनासकांठा जिले की पालनपुर की द्वितीय एडिशनल सेशन्स कोर्ट ने 20 साल की कैद और दो लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है।

कोर्ट ने एक दिन पहले बुधवार को भट्ट को दोषी ठहराने के बाद सजा सुरक्षित रख लिया था। भट्ट अभी पालनपुर सबजेल में बंद हैं। गुरुवार को उन्हें फिर कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें सजा सुनाई गई। संजीव भट्ट पर करीब 28 साल पुराने मामले में पालनपुर के होटल में राजस्थान के एक वकील को गलत ढंग से फंसाने के लिए वकील के कमरे में ड्रग्स रखने का आरोप लगाया गया था।

पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ 30 अप्रैल, 1996 को केस दाखिल किया गया था। केस के अनुसार पालनपुर के लाजवंती होटल में एक वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित पर अफीम की खेप लेकर आने की सूचना पर छापेमारी की गई थी। यहां से एक किलो 15 ग्राम अफीम बरामद किया गया था। अफीम बरामदगी को लेकर पुलिस ने राजस्थान के पाली जिले के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को पकड़ा था। बाद में वकीलों ने इस केस को लेकर काफी विरोध प्रदर्शन किया और पूरे मामले को वकील को फंसाने के लिए साजिश करार दिया। इस मामले की जांच सीआईडी क्राइम ने की और वर्ष 2018 में सीआईडी क्राइम ने पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट समेत पालनपुर के तत्कालीन पीआई को वकील के कमरे में ड्रग्स इम्प्लांट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।

गुजरात दंगे में मोदी के खिलाफ सबूत गढ़ने का आरोप

संजीव भट्ट पर तिस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व डीजीपी आर बी श्रीकुमार के साथ मिलकर वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के मामले में सबूत गढ़ने का आरोप भी है। भट्ट पर आरोप था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के लिए सरकार की ओर से गठित एसआईटी पर अविश्वास जताते हुए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका का आरोप लगाया था। आरोपों को एक विशेष जांच दल ने खारिज कर दिया था। इसके बाद भट्ट को वर्ष 2011 में सेवा से निलंबित कर दिया था। बाद में अगस्त 2015 में गृह मंत्रालय ने अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया था।

पहले से काट रहे आजीवन कारावास की सजा

गुजरात हाई कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 9 जनवरी, 2024 को कस्टडी में मौत के मामले में जामनगर सेशन कोर्ट द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा भी बरकरार रखी थी। कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दी थी। साल 1990 के मामले में पहले सेशन कोर्ट ने भट्ट को सजा सुनाई थी। जामनगर में सांप्रदायिक दंगा भड़कने के बाद पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत लगभग 133 लोगों को हिरासत में लिया था।

30 अक्टूबर, 1990 को विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा ने भारत बंद का आह्वान किया था। तत्कालीन भाजपा प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के विरोध में बंद का ऐलान किया गया था। इसी बीच हिरासत में लिए गए व्यक्तियों में से एक प्रभुदास वैश्नानी की हिरासत से रिहा होने के बाद मृत्यु हो गई थी। उनके परिवार ने आरोप लगाया कि भट्ट और उनके सहयोगियों ने उन्हें हिरासत में यातनाएं दी थी। परिवार ने आरोप लगाया कि हिरासत में लिए गए लोगों को लाठियों से पीटा गया और उन्हें कोहनी के बल रेंगने जैसी कुछ हरकतें करने के लिए मजबूर किया गया। आरोप है कि उन्हें पानी तक पीने की इजाजत नहीं दी गई, जिससे विश्नानी की किडनी खराब हो गई थी। वैश्नानी नौ दिनों तक पुलिस हिरासत में थे। जमानत पर रिहा होने के बाद वैश्नानी की गुर्दा फेल होने से मृत्यु हो गई थी।

हिन्दुस्थान समाचार/बिनोद